'नमामि गंगे' की नारेबाजी, शहर के नालों से हो रही 'गंगा मैली'
गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए नमामि गंगे और गंगा स्वच्छता के नारे तो खूब लग रहे हैं लेकिन धरातल पर इस दिशा में काम करने में किसी की रुचि नहीं दिख रही। हद तो यह है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का बंदी आदेश कपड़ा छपाई कारखानों पर लागू नहीं हो सका। कारखाने धड़ल्ले से चल रहे हैं। शहर की गंदगी और कारखानों का केमिकल युक्त पानी नालों से होकर सीधे गंगा में ही गिर रहा है।
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 'नमामि गंगे' और 'गंगा स्वच्छता' के नारे तो खूब लग रहे हैं, लेकिन धरातल पर इस दिशा में काम करने में किसी की रुचि नहीं दिख रही। हद तो यह है कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का बंदी आदेश कपड़ा छपाई कारखानों पर लागू नहीं हो सका। कारखाने धड़ल्ले से चल रहे हैं। शहर की गंदगी और कारखानों का केमिकल युक्त पानी नालों से होकर सीधे गंगा में ही गिर रहा है।
शहर भर की गंदगी समेटे नाला अमेठी कोहना के पास भैरव घाट पर गंगा में दशकों से गिरता है। नाले में नगर वासियों की गंदगी के अलावा छपाई कारखानों का केमिकल युक्त पानी भी गंगा में ही जाता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से ईटीपी लगवाने वाले मात्र पांच कारखानों को ही अभी तक एनओसी मिली है। अन्य कारखानों पर बंदी का आदेश प्रभावी है। इसके बावजूद शहर में लगभग तीन सैकड़ा छोटे-बड़े कारखानों में कपड़ा छपाई चल रही है। नालों को टैप कर भैरव घाट पर ही एसटीपी लगाने का प्रस्ताव वर्षों से कहीं फाइलों में ही डंप है।
माघ में पांचालघाट पर रामनगरिया मेला लगता है। कल्पवासी व साधु-संत हर बार गंगा में नाले गिरने का विरोध करते हैं। तभी प्रशासनिक अमला और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी नाले को अस्थाई रूप से रोकने के लिए बालू भरी बोरियां डलवाकर टेपिग की कवायद करते हैं। कारखानों पर भी कुछ सख्ती की जाती है। मेला समाप्त होते ही फिर गंगा को नालों के रहम-ओ-करम पर छोड़ दिया जाता है। कारखानों में बंदी आदेश लागू है। इस संबंध में जिला प्रशासन को कई बार लिखा जा चुका है। प्रशासन के सहयोग से शीघ्र ही छपाई कारखानों पर कार्रवाई की जाएगी।
-फरेश कुमार, अवर अभियंता, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कानपुर