साहब! परदेस ही नहीं अपनी मिट्टी में भी टूट रहा मुसीबत का पहाड़
लॉकडाउन में फंसे प्रवासी श्रमिकों की मुसीबतें घर वापसी के बाद भी कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सरकार भले ही हर हाथ को काम देने का दावा कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है। बुधवार को शहर से सटे गांव अमेठी कोहना में जागरण ने पड़ताल की तो गरीब की मजबूरी का नजारा दिखा। घर वापसी के बाद श्रमिकों की मुसीबत और बढ़ गई है। जिस घर में एक परिवार का रहना मुश्किल वहां 20 से 25 लोगों का परिवार फूस के छप्पर और एक कमरे में गुजर करने को मजबूर है। काम न होने से ग्रामीणों की मदद से जीवन चल रहा है।
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : लॉकडाउन में फंसे श्रमिकों की मुसीबतें घर वापसी के बाद भी कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सरकार भले ही हर हाथ को काम देने का दावा कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है। बुधवार को शहर से सटे गांव अमेठी कोहना में देखा तो गरीब की मजबूरी का नजारा दिखा। घर वापसी के बाद श्रमिकों की मुसीबत और बढ़ गई है। जिस घर में एक परिवार का रहना मुश्किल वहां 20 से 25 लोगों का परिवार फूस के छप्पर और एक कमरे में गुजर करने को मजबूर है। काम न होने से ग्रामीणों की मदद से जीवन चल रहा है।
कोतवाली के गांव अमेठी कोहना में दो सौ से अधिक लोग बाहर से लौटे हैं। जिसमें अधिकतर लोग मेहनतकश है। ओमपाल राठौर ने बताया कि वह चार भाइयों व उनके बच्चों के साथ नोएडा के सेक्टर दो में तीन कमरे किराए पर लेकर रह रहे थे। सभी भाई मजदूरी कर परिवार का भरणपोषण आराम से कर रहे थे। लॉकडाउन के दूसरे ही दिन उन्होंने स्वजनों सहित घर लौटने का फैसला लिया, लेकिन गांव आकर और फंस गए। छप्पर व एक कमरे में भरापूरा परिवार रह रहा है। गत माह खेत से भूसा ढोने से करीब एक हजार रुपये मिले, फिर काम नहीं मिला। मनरेगा में काम के लिए प्रयास किया तो ग्राम पंचायत सचिव श्वेता अग्निहोत्री ने कहा कि जॉबकार्ड बिना काम नहीं मिल सकता। हालांकि नोएडा में मजदूरी का काम शुरू होने की जानकारी मिली है। अब यदि वापस लौटे तो मकान मालिक तीन माह का बकाया किराया मांगेगा। कमरे में कुछ कपड़े व बर्तन छोड़ आए थे। वह मकान मालिक जब्त कर लेगा। राशन कोटे से अनाज मिला था, उससे किसी तरह गुजर हो रही है। परिवार की चिता बढ़ रही है, यदि यही हाल रहा तो गुजर बसर कठिन हो जाएगी। सब को काम देना संभव नहीं
ग्राम पंचायत अमेठी कोहना की प्रधान विमला देवी के पति देवेंद्र सिंह चौहान ने बताया गांव में दो सौ से अधिक श्रमिक लौटे हैं। इन दिनों मनरेगा से चल रहे काम में 20 श्रमिक लगे हैं। प्रवासी श्रमिकों के पास जॉबकार्ड भी नहीं है। गांव में सबको काम देना संभव नहीं है। जॉबकार्ड पंचायत सचिव चाहें तो बना सकती हैं। फिलहाल लॉकडाउन के बाद जॉबकार्ड नहीं बने।