निकल पड़ी चीख, छा गया सन्नाटा, भाग निकले प्रधानाचार्य
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है। इनका दर्द देखकर बड़ों का मन
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है। इनका दर्द देखकर बड़ों का मन सिहर जाता है। फिर चाहे कुछ भी हो बड़ों के मन में एक ही विचार आता है कि किसी तरह उनके आंसू थम जाएं और प्यारी सी मुस्कान उनके चेहरे पर आ जाए। शुक्रवार को जब बिर्राबाग कादरीगेट मोहल्ले में संचालित हो रहे गैर मान्यता प्राप्त विद्यालय की बाउंड्रीवॉल के संग करीब दस बच्चे गिरे तो उनकी चीखें निकल पड़ीं और कुछ देर के लिए सन्नाटा छा गया। यह नजारा देख प्रधानाचार्य बच्चों का इलाज कराने के भागते दिखे। बच्चे दर्द से कराहते रहे। यह देख कुछ शिक्षिकाओं व लोगों का दिल पसीजा और उन्हें इलाज के लिए निजी क्लीनिक लेकर पहुंचे। तब तक बच्चों के अभिभावक भी मौके पर पहुंच गए।
जनपद में शहर से लेकर गांव की गलियों में गैर मान्यता के विद्यालयों का संचालन हो रहा है। इसके बाद भी शिक्षा विभाग के अफसर इन पर कार्रवाई करने से कतराते रहे। वहीं कुछ विभागीय कर्मी गैर मान्यता विद्यालयों के प्रबंधकों बचाव के तरीके बताकर उनसे 'मिठाई' लेते नजर आते हैं। इन विद्यालयों में बाहरी शान दिखाकर बच्चों का दाखिला प्रबंधक व प्रधानाचार्य बढ़ी आसानी से अभिभावकों को गुमराह कर करा लेते हैं, लेकिन शैक्षिक गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है। वहीं गैर मान्यता स्कूलों में पंजीकृत छात्रों को कई बार मान्यता प्राप्त स्कूलों में दाखिला तक नहीं मिलता। इससे उनका भविष्य बर्बाद हो जाता है और अभिभावक न्याय के लिए जिलाधिकारी, डीआइओएस व बीएसए दफ्तर के चक्कर काटते रहते हैं। पानी की टंकी में पड़ी मिली छिपकली
अभिभावक सीमा ने बताया कि वह स्कूल में बच्चों को भोजन देने आई थीं, लेकिन स्कूल में अंदर नहीं जाने दिया गया। पता नहीं क्यों, अभिभावकों को बाहर से ही लौटा दिया जाता है। बताया कि कुछ दिन पहले बच्चों के पीने के पानी की टंकी में छिपकली गिर गई थी। बच्चों ने घर में बताया तो शिकायत की गई। इस पर स्कूल संचालक ने बच्चे का स्कूल से नाम काट देने की धमकी दी। बस नोटिसों तक सीमित रहती कार्रवाई
गैर मान्यता स्कूलों की खबरें प्रकाशित होने के बाद कुछ दिनों तक शिक्षाधिकारी प्रबंधकों व प्रधानाचार्यो को नोटिस देने की कार्रवाई करते हैं। मामला ठंडा पड़ते ही विद्यालयों का संचालन शुरू हो जाता है और अफसरों भी सब कुछ जानकर चुप बैठे रहते हैं। सुबह स्कूल, रात में घर तो कभी गोदाम
जनपद में कुछ ऐसे भी विद्यालय हैं, जिनकी पहली बिल्डिंग में किराए पर लोग रहते हैं। दूसरी बिल्डिंग में विद्यालय का संचालन किया जाता है। वहीं तीसरी मंजिल या फिर अन्य कमरों को किसी अन्य कार्य के लिए गोदाम के रूप में प्रयोग किया जाता है। ऐसी दशा में देश के कर्णधार कहे जाने वाले बच्चों का भविष्य चंद रुपये कमाने के चक्कर में 'काला' कर दिया जाता है।