मेला भ्रमण को निकली संतों की सवारी
पौष पूर्णिमा स्नान के साथ शुरू हुआ मेला रामनगरिया अब अपनी रौ में आता जा रहा है। शनिवार को धूप खिली तो रामनगरिया का वैभव भी निखर उठा। संतों की सवारी मेला भ्रमण को निकली। उन्होंने व्यवस्था का जायजा लेकर कल्पवासियों को भी दर्शन दिए। प्रमुख अखाड़ों में कहीं चिलम की फाका मस्ती में संत डूबे दिखे तो कहीं धूनी रमाकर ईश्वर की आराधना में लगाया ध्यान।
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : पौष पूर्णिमा स्नान के साथ शुरू हुआ मेला रामनगरिया अब अपनी रौ में आता जा रहा है। शनिवार को धूप खिली तो रामनगरिया का वैभव भी निखर उठा। संतों की सवारी मेला भ्रमण को निकली। उन्होंने व्यवस्था का जायजा लेकर कल्पवासियों को भी दर्शन दिए। प्रमुख अखाड़ों में कहीं चिलम की फाका मस्ती में संत डूबे दिखे तो कहीं धूनी रमाकर ईश्वर की आराधना में लगाया ध्यान।
पांचालघाट पर गंगा की रेती पर सजी रामनगरिया घंटा, घड़ियाल की धुन पर मानो झूम रही है। कहीं श्रीमछ्वागवत की कथा की गूंज तो कहीं रामचरित मानस की चौपाइयां वातावरण में मिश्री घोल रहीं। पतित पावनी गंगा की कल-कल बहती धारा श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर रही है। कोई पुण्य की डुबकी लगा रहा तो कोई घाट पर सत्यनारायण की कथा श्रवण में लगा। मन्नत पूरी होने पर पहनावन के कार्यक्रम भी चल रहे। संतों के डेरे का नजारा ही अलौकिक है। मेला रामनगरिया में मिनी कुंभ की अनुभूति
प्रमुख संत सत्यगिरि के क्षेत्र में हाथीपार्क लखनऊ आश्रम के महंत श्यामगिरि का आगमन हुआ है। संत महात्माओं व श्रद्धालुओं से घिरे श्यामगिरि बेहद मृदुभाषी हैं। वह चिलम की दम लगाकर अपनी ही मस्ती में डूबे नजर आए। जागरण से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो महंत श्यामगिरि ने अपने जीवन के बारे में खुलकर जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उनका जन्म 1942 में जनपद मैनपुरी के गांव पैड़त जखैया में हुआ था। वे आठ साल के थे तब पांचालघाट पर परिवार के साथ गंगा स्नान करने आए थे। शिक्षाग्रहण करने के बाद वह आर्मी की मेडिकल कोर में नौकरी करने लगे। वर्ष 1982 में वह लखनऊ से सेना से सेवानिवृत्त हुए। उसी दिन पेंट-शर्ट उतारकर भगवा वस्त्र धारण कर पेड़ के नीचे बैठ गए। गृहस्थ जीवन से मोह त्याग दिया। हालांकि उनके तीन पुत्रों के साथ भरापूरा परिवार है। एक पुत्र संत बन गया है। उन्होंने बताया कि वह रामनगरिया में पहली बार आए हैं। यह मिनी कुंभ है। तपोनिधि पंचायती आनंद श्रीदिगंबर अखाड़ा सारनाथ वाराणसी के महंत बुद्धगिरि ने बताया कि वह पहली बार रामनगरिया आए हैं। इससे पहले वह ढाईघाट पर अपना क्षेत्र लगाते थे। यहां का नजारा ही अछ्वुत है। 22 जनवरी से संत महात्माओं का ऐसा जमघट लगेगा जो दर्शनीय होगा। उन्होंने कहा कि 108 कलश जल से प्रतिदिन महात्मा स्नान करेंगे। फूलों से सजे तांगे पर मेला भ्रमण को संतों की सवारी निकली तो राह चलते लोगों के सिर श्रद्धा से झुक गए।