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Jagran Special : सात समंदर पार छाई हुनर के धागों से सजी फर्रुखाबादी रजाई

फर्रुखाबाद की रजाई की खूबियों के चलते यूरोपीय और अमेरिकी देशों संग कोरिया में छाने के बाद इस वर्ष जापान और आस्ट्रेलिया से डिमांड आई है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 14 Dec 2018 11:29 AM (IST)Updated: Fri, 14 Dec 2018 11:29 AM (IST)
Jagran Special : सात समंदर पार छाई हुनर के धागों से सजी फर्रुखाबादी रजाई
Jagran Special : सात समंदर पार छाई हुनर के धागों से सजी फर्रुखाबादी रजाई

फर्रुखाबाद [विजय प्रताप सिंह]। गंगा, रामगंगा, कालिन्दी व ईसन नदी के तट पर बसे फर्रुखाबाद ने विश्व में अपनी पहचान बना ली है। फर्रुखाबाद के कारीगरों ने हुनर के धागों से ऐसी रजाई तैयार कर दिखाई जो देखते ही देखते देश-दुनिया में छा गई। वजन में हल्की होने के साथ भरपूर गर्माहट तो इसकी खूबी है ही, उस पर हाथों से उकेरी गई कलाकृतियां भी पहली ही नजर में लोगों को भा जाती हैं।

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फर्रुखाबाद की रजाई की खूबियों के चलते यूरोपीय और अमेरिकी देशों संग कोरिया में छाने के बाद इस वर्ष जापान और आस्ट्रेलिया से डिमांड आई है। फर्रुखाबादी रजाई यानी क्विल्टेड बेड स्प्रेड नि:संदेह प्रीमियम एक्सपोर्ट क्वालिटी का दर्जा हासिल कर चुकी है। इस रजाई का वजन तो 400 से 1400 ग्राम है और इसकी खास कढ़ाई ने करोड़ों लोगों का दिल जीत लिया है। फर्रुखाबाद के हाथों के हुनर ने स्वदेशी उद्यमशीलता को दूर देशों में पहचान दिलाई है। यहां पर विख्यात लिहाफ छपाई का कारोबार मंदा पड़ा तो एक्सपोर्ट क्वालिटी की रजाई बनने लगी हैं। इसमें करीब दस हजार लोगों को रोजगार मिलता है। 

गंगा नदी के किनारे बसा उत्तर प्रदेश का फर्रुखाबाद जिला कभी लिहाफ की छपाई के लिए जाना जाता था। यहां पर समय बीतने के साथ ही लिहाफ की मांग कम होती गई। तब इस काम में लगे उद्यमियों ने तमाम खूबियों से युक्त रजाई बनाने की ओर कदम बढ़ाए। उच्च कोटि की रुई, लिहाफ के लिए कॉटन सिल्क, वेलवेट, लिनेन व वूलन कपड़ों पर आकर्षक रंग के साथ धागे (तगाई) से बनी कलाकृतियां, जब ये सभी खूबियां मिलीं तो जो पैटर्न तैयार हुआ, वह दुनियाभर में पसंद किया जा रहा है। फर्रुखाबाद में 1987 से इस रजाई का निर्माण शुरू हुआ।

अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, आयरलैंड, इंग्लैंड, कोरिया में यह रजाई पसंद की जा रही है। इस बार जापान, आस्ट्रेलिया और थाईलैंड से डिमांड आई है। यहां के व्यापारियों को इसकी कीमत 100 डॉलर (करीब सात हजार रुपये) तक मिलती है। वहां के व्यापारी स्थानीय स्तर पर इसे 200 डॉलर तक में बेचते हैं। जिले में इस रजाई के जरिए करीब 10 हजार लोगों को रोजगार मिला है। महिलाएं धागे से रजाई पर कलाकृतियां उकेरने में ज्यादा कुशल हैं।

कारोबारी गौरव अग्रवाल बताते हैं कि फर्रुखाबाद में सबसे पहले इस रजाई का निर्माण प्रवीण सफ्फड़ ने शुरू किया। अब यह कारोबार फर्रुखाबाद के लोगों को ही नहीं, बल्कि आसपास के जनपदों को भी रोजगार मुहैया करा रहा है। इसमें सर्जिकल कॉटन और रेक्रान फाइबर का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे गर्माहट अधिक होती है। इसका वजन 400 से 1400 ग्राम तक होता है। गर्म, हल्की और आकर्षक कढ़ाई से युक्त होने के कारण विदेश में इसकी खासी डिमांड है।

खासियतों से भरी है रजाई

फर्रुखाबादी रजाई हाथ के हुनर का खूबसूरत कमाल है। इसमें छपे हुए कई कपड़ों को काट कर लिहाफ बनाया जाता है। इसमें सर्जिकल रुई की परतें डाली जाती हैं। इसके बाद हाथ की सिलाई होती है। एक रजाई 15 से 20 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी कीमत 3000 रुपए के करीब आती है। कन्नौज, हरदोई, मैनपुरी, शाहजहांपुर में भी रजाई तैयार होने जाती हैं।

जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक एसएस कटियार ने बताया कि फर्रुखाबाद में अब छपे लिहाफ के बजाए बड़ी मात्रा में क्विल्टेड रजाई बनाई जा रही है। इसका मांग विदेशों में भी काफी हो गई है।  


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