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ठुमरी में पिरोए मोती, साहित्य में कृष्ण भक्ति की धारा

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : पांचालधरा में न केवल महीयसी महादेवी वर्मा जैसा साहित्य जगत का नक्ष्

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Sep 2018 10:16 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 10:16 PM (IST)
ठुमरी में पिरोए मोती, साहित्य में कृष्ण भक्ति की धारा
ठुमरी में पिरोए मोती, साहित्य में कृष्ण भक्ति की धारा

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : पांचालधरा में न केवल महीयसी महादेवी वर्मा जैसा साहित्य जगत का नक्षत्र अवतरित हुआ, अपितु ¨हदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की किलकारी भी गूंजी। शहर में जन्मे ललन पिया ने बंदिश की ठुमरी को विश्व भर में प्रसिद्धि तो दी ही, भारतेंदु युग की ¨हदी को नए आयाम देकर छाप भी छोड़ी। ब्रज, कन्नौजी व अवधी के मिश्रण में गुथी उनकी रचनाएं भक्ति काव्य की धरोहर बनी हैं। ऋषि पंचमी पर उनके जन्मदिवस पर इस बार ¨हदी दिवस का भी संयोग बना है।

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बंदिश की ठुमरी में 'बोल बांट' शैली के जन्मदाता पं.नंदलाल सारस्वत ललन पिता का जन्म भाद्र शुक्ल ऋषि पंचमी को फर्रुखाबाद के मित्तूकूंचा मोहल्ले में 1856 में हुआ था। उनकी ठुमरी की रचना में शब्दों का चयन ऐसा कि ठुमरी सुनते लगता कि सितार पर गत बज रही हो और तरानों में ही शब्द रखे हैं। ठुमरी के साथ ही उनका साहित्य सृजन भी खजानों से भरा है। उन्होंने 40 पुस्तकें लिखीं। इनमें ललन प्रकाश 1915 व ललन सागर 1927 में मुंशी नवल किशोर प्रकाशन लखनऊ से प्रकाशित हुई। गजल, गीत, छंद, कवित्त, दोहा, भजन, ध्रुपद व लोक गीत पर भी पुस्तकें लिखीं। कृष्ण को इष्ट मानकर समर्पित रचनाएं

उन्होंने तत्कालीन समय में प्रचलित साहित्य की सभी विधाओं में काव्य रचना की। अधिकांश रचनाएं भगवान कृष्ण को इष्ट मानकर समर्पित की गईं। इनमें गीत में ललन पद्यावली, ललन रस मंजरी, पद व सवैया में ललन कवित्तावली, गजल में ललन सुधाकर, दोहा में ललन विनोद, धनाक्षरी छंद में ललन लतिका, लोकगीत में ललन फाग व ललन कजरी आदि शामिल हैं। साहित्यकार डा. ओमप्रकाश मिश्र कंचन बताते हैं कि ललन पिया ने उस समय रचनाएं लिखीं जब खड़ी बोली का विकास हो रहा था। उस समय की उनकी पुस्तकें उन्हें महाकवि की श्रेणी में पहुंचाती हैं।


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