Move to Jagran APP

पुरातत्व विभाग के रिकार्ड में दर्ज होकर रह गईं ऐतिहासिक विरासतें

जागरण संवाददाता फर्रुखाबाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का विश्व धरोहर सप्ताह कागजों तक

By JagranEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 10:38 PM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 10:38 PM (IST)
पुरातत्व विभाग के रिकार्ड में दर्ज होकर रह गईं ऐतिहासिक विरासतें
पुरातत्व विभाग के रिकार्ड में दर्ज होकर रह गईं ऐतिहासिक विरासतें

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का विश्व धरोहर सप्ताह कागजों तक ही सीमित है। हकीकत यह है कि पुरातत्व विभाग ने कई साल पहले गांव पखना व बिहार के बीच बौद्ध बिहार स्थल नाम से जगह को चिह्नित कर संरक्षित क्षेत्र घोषित किया था। वहीं गांव पखना के निकट स्थित एक टीले को भी संरक्षित कर अपने अधीन ले लिया था। दोनों जगह अधिग्रहण के बोर्ड लगाए गए थे। बाद में विभाग ने इधर मुड़ कर भी नहीं दिखा। टीले का तो बोर्ड ही गायब हो गया। अधिकांश भाग पर लोग कब्जा जमाए हैं।

loksabha election banner

19 से 25 नवंबर तक चलने वाले विश्व धरोहर सप्ताह का हाल यह है कि पुरातत्व विभाग संरक्षित ऐतिहासिक विरासतों के बारे में आसपास के गांवों में भी जानकारी नहीं दे पा रहा है। ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण तो दूर उनकी देखरेख तक नहीं हो रही है। बौद्ध तीर्थ स्थल संकिसा से करीब 12 किलोमीटर दूर जिस स्थान को बौद्ध बिहार स्थल के रूप में विभाग की ओर से चिह्नित किया गया था, उसके महत्व के बारे में ग्रामीणों को पता तक नहीं है। वहां मात्र बोर्ड लगा है। जबकि मेरापुर थाना क्षेत्र के गांव पिलखना स्थित विस्तृत टीले को ग्रामीण भोगी का टीला के नाम से जानते हैं। पुरातत्व विभाग की ओर से वहां लगाया गया बोर्ड अब गायब है। गांव बिराहिमपुर निवासी भंवर सिंह यादव ने बताया कि वह लोग टीले के महत्व के बारे में नहीं जानते। बुजुर्ग बताते थे कि यह भोगी का टीला है जो ब्रिटिश हुकूमत से पहले का है। विभाग का कोई व्यक्ति यहां आता-जाता नहीं है। टीले के नीचे लोग कंडे पाथते हैं। वृक्ष और घास खड़ी होने के कारण मवेशी ही टीले पर आते-जाते हैं। राजघाट संकिसा स्थित शाक्य मुनि बिहार के अध्यक्ष डॉ.धम्मपाल थैरो ने बताया कि संकिसा का पूर्वी द्वार 12 किलोमीटर दूर बिहार व पखना गांव के बीच जिस जगह था, उसी स्थान को प्राचीन बौद्ध बिहार स्थल के नाम से जाना जाता है। भगवान बुद्ध से दीक्षा लेने श्रावस्ती से 500 भिक्षु संकिसा आए थे तो सारपुत्र ने इसी द्वार पर भिक्षुओं की अगवानी की थी। इस कारण इस स्थान का महत्व बौद्धों के लिए खास है, लेकिन पुरातत्व विभाग ने वहां भी मात्र बोर्ड लगाकर मुंह फेर लिया। बौद्ध भिक्षु वहां आते-जाते हैं। पुरातत्व विभाग कन्नौज के कनिष्ठ संरक्षण सहायक शैलेंद्र सिंह ने बताया कि विभाग की ओर से सर्वे कर ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित किया जाता है। जिला प्रशासन के सहयोग से स्थलों का संरक्षण होता है। विभाग के उच्च अधिकारियों के निर्देश पर संरक्षित स्थलों को विकसित करने के संबंध में निर्णय लिया जाएगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.