गम की घटाओं में तलाश लिया खुशी का चांद
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : 'इन्हीं गम की घटाओं में खुशी का चांद निकलेगा, अंधेरी रात
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद :
'इन्हीं गम की घटाओं में खुशी का चांद निकलेगा, अंधेरी रात के पर्दे में दिन की रोशनी भी है।' अख्तर शीरानी की इन पंक्तियों को जीती जिंदगी हैं एहतिशाम। हाथ-पैर से दिव्यांग एहतिशाम के इरादे मजबूत थे। जिंदगी में संघर्ष के दरिया को पार कर भविष्य को ऐसे किनारे पर ले आए, जहां वह तमाम भविष्य गढ़ रहे हैं। उन्होंने भी गम की घटाओं में खुशी का चांद तलाश लिया है। ट्यूशन पढ़ाकर जहां वह घर का सहारा बन गए हैं, वहीं पांचवीं तक के बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाते हैं।
विधि पाठ्यक्रम की परीक्षा दे रहे शहर की कांशीराम कालोनी हैबतपुर गढि़या के एहतिशाम हैदर जब चार वर्ष के थे तो प्रकृति ने उन्हें दोनों हाथ-पैरों से दिव्यांग बना दिया। पांच वर्ष उम्र में दाएं पैर में पेन फंसाकर लिखने का अभ्यास करने लगे। शुरुआत में कठिनाई हुई, पर हार नहीं मानी। परिवार की आर्थिक तंगी से जूझते हुए वह आगे बढ़े तो सफलता कदम चूमने लगी। अच्छे नंबरों से हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और फिर गणित से विज्ञान स्नातक बने। वह इस समय एलएलबी प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा दे रहे।
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परिवार का उठा रहे बोझ, सेवा की भी साधना
चार वर्ष पूर्व एहतिशाम के पिता का देहावसान हो गया। बड़ी बहन के साथ मिलकर वह परिवार के खेवनहार बन गए। चार छोटी बहनों व एक भाई को बेहतर शिक्षा दिलाने के संकल्प परवान चढ़ रहे। घर खर्च के लिए वह घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे।
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मेहनत व लगन को राज्यपाल का सलाम
एहतिशाम कहते हैं कि विशेष बच्चों की शिक्षा व उन्हें रोजगार से जोड़ने के मौजूद उपाय नाकाफी हैं। इस ओर अभी और ध्यान देना होगा। वर्ष 2016 में दिव्यांगजन सशक्तीकरण दिवस पर राज्यपाल राम नाईक ने भी उनकी मेहनत व लगन को सलाम कर सम्मानित किया।