अब नहीं जाएंगे गुजरात, घर रह कर करेंगे खेत में मेहनत
लॉकडाउन के चलते घर लौट रहे प्रवासी श्रमिकों ने परदेश की दुश्वारियों पर खुलकर बात की। अधिकतर युवक अब वापस जाने से तौबा कर रहे थे। साथ ही यहां काम मिलने के प्रति आशंका जताकर सरकार से रोजगार देने की मांग भी कर रहे हैं। वहीं कुछ युवकों ने घर रह कर खेत में मेहनत करने की इच्छा जताई।
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : लॉकडाउन के चलते घर लौट रहे प्रवासी श्रमिकों ने परदेस की दुश्वारियों पर खुलकर बात की। अधिकतर युवक अब वापस जाने से तौबा कर रहे थे। साथ ही यहां काम मिलने के प्रति आशंका जताकर सरकार से रोजगार देने की मांग भी कर रहे हैं। वहीं कुछ युवकों ने घर रह कर खेत में मेहनत करने की इच्छा जताई।
थाना कंपिल के गांव नरायनपुर जिजौटा पड़ापुर निवासी राजीव सिंह चौहान अपने छोटे भाई आदित्य के साथ शनिवार दोपहर शहर के एनएकेपी डिग्री कॉलेज क्वारंटाइन सेंटर पर घर जाने को रोडवेज बस की प्रतीक्षा कर रहे थे। भरी दोपहरी में बिजली न होने से वहां ठहरे प्रवासी श्रमिकों का गर्मी में हाल बेहाल था। पसीने से तरबतर बच्चों व महिलाओं ने राशन के गत्ते फाड़कर उनका इस्तेमाल पंखे के रूप में किया। परेशान प्रवासियों ने बताया कि शुक्रवार रात भी बिजली की आंखमिचौली जारी रही। जनरेटर की व्यवस्था नहीं थी। क्वारंटाइन सेंटर की परेशानी भरी यह रात हमेशा याद रहेगी। राजीव सिंह चौहान ने बताया कि वह गुजरात के जनपद गांधीनगर के पलौला स्थित प्लास्टिक की बोरी बनाने वाली फैक्ट्री में भाई आदित्य के साथ काम करते थे। दोनों भाइयों को दस-दस हजार रुपए मिलते थे। लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई। गुजरात में कोरोना मरीजों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही थी। खाने के लाले पड़ गए। जिससे घर लौटने का निर्णय लिया। पिता मित्रपाल सिंह ग्राम प्रधान रह चुके हैं। चार भाइयों के बीच पिता के पास करीब पैंतीस बीघा जमीन है। दोनों भाई अब खेत में मेहनत करेंगे। सरकार को भी घर लौट रहे श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए। अन्यथा परदेश के खराब अनुभव के बावजूद लोग फिर वापस लौटने को मजबूर होंगे। लेखपाल रोशनलाल ने बताया कि बच्चों सहित कुल 72 प्रवासी श्रमिक रात में रुके थे। शहर व आसपास के श्रमिक सुबह थर्मल स्क्रीनिग के बाद राशन व भोजन लेकर चले गए। कंपिल व कायमगंज के श्रमिकों को रोडवेज बस से भेजा गया।