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सरकार करे निर्यात का इंतजाम, देंगे एक्सपोर्ट क्वालिटी का आम

संवाद सहयोगी कायमगंज बागों के क्षेत्रफल व आम उत्पादन में मलिहाबाद के बाद दूसरा स्थान रखने व

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 10:32 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 06:06 AM (IST)
सरकार करे निर्यात का इंतजाम, देंगे  एक्सपोर्ट क्वालिटी का आम
सरकार करे निर्यात का इंतजाम, देंगे एक्सपोर्ट क्वालिटी का आम

संवाद सहयोगी, कायमगंज : बागों के क्षेत्रफल व आम उत्पादन में मलिहाबाद के बाद दूसरा स्थान रखने वाले कायमगंज के आम उत्पादकों का कहना है कि सरकार निर्यात का इंतजाम कराए तो वह कायमगंज क्षेत्र में अलफांसो, हापुस, केसरी, बादाम, नीलम, आम्रपाली व स्वर्ण रेखा जैसे उच्च गुणवत्ता वाले एक्सपोर्ट क्वालिटी के आम का उत्पादन करने में सक्षम हैं।

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कायमगंज क्षेत्र आम, अमरूद, बेल, बेर, शरीफा, पपीता, करौंदा, कटहल आदि की बागवानी के लिए मशहूर रहा है, लेकिन बाजार की कठिनाइयों व मांग में गिरावट से आम व बेल के अलावा अन्य फलों का उत्पादन कम होता चला गया। यहां के देशी, दशहरी, बंबइया, टिकारी, लंगड़ा, तैमूरिया, गोपालभोग, चौसा आदि वैरायटी के आम देश भर में प्रसिद्ध रहे हैं। आम के बागवान गंगवार बंधु बताते हैं कि पिता के समय पैतृक 40 बीघा खेती में पांच बीघा में ही आम के बाग थे। एग्रीकल्चर से एमएससी करने वाले दिनेश गंगवार ने अपनी कृषि तकनीकी कुशलता व बड़े भाई उमेश गंगवार के व्यापारिक कौशल से अब करीब 125 बीघा में आम के बाग हैं व नर्सरी है। फल व नर्सरी कारोबार से करोड़ों का टर्नओवर है। यह तो गांव बरझाला के एक परिवार की बानगी है। यहां करोड़ों के टर्नओवर वाले अनेक बागवान हैं। फल पट्टी घोषित हो, तभी हो सकेगा निर्यात

फल पट्टी घोषित न होने से कायमगंज क्षेत्र में आम की बागवानी का विकास नहीं हो सका। करीब तीन दशक पहले एनडी तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में यह चर्चा हुई थी, लेकिन राजनीतिक एप्रोच न होने यह क्षेत्र फ्रूट बेल्ट न बन सका। लखनऊ के पास होने से मलिहाबाद में राजनीतिक असरदारों का आवागमन रहता है, इसलिए वह क्षेत्र तो इस श्रेणी में आ गया, लेकिन सभी मानकों पर खरा होने के बावजूद कायमगंज का नंबर नहीं आया। इस क्षेत्र में आम व अन्य फलों का विकास तभी संभव है कि यह क्षेत्र फल पट्टी घोषित हो।

- उमेश गंगवार, ग्राम बरझाला। एक्सपोर्ट क्वालिटी के आम अलफांसो, हापुस आदि गुणवत्ता में तो बहुत बेहतर होते हैं। छिलका मोटा होने के कारण टिकाऊ बहुत होते हैं। दशहरी, बंबई, चौंसा व अन्य प्रचलित आमों की तुलना में प्रति पेड़ इनकी उत्पादन संख्या बहुत कम होती है। इस कारण यह आम महंगे बिकते हैं। जिसकी स्थानीय स्तर पर बिक्री कम होती है। यदि सरकार इसके निर्यात की व्यवस्था कर किसान को उसकी फसल की सही कीमत दिलाए तो यहां की मिट्टी व जलवायु प्रत्येक किस्म का आम उत्पादन करने में सक्षम है।

- दिनेश गंगवार, ग्राम बरझाला। बागवानी, फल उत्पादन व हरियाली फैलाने वाले नर्सरी कारोबार के क्षेत्र कायमगंज को फल पट्टी घोषित कराना तो दूर, यहां कोई कृषि या फल आधारित उद्योग लगाने का सार्थक प्रयास नहीं किया गया। कायमगंज के गांव पितौरा में यूपी स्टेट एग्रो की एक फल संरक्षण फैक्ट्री थी। जहां फलों का जूस, मुरब्बा, जेम, जेली आदि का उत्पादन होता था। यह यूनिट भी तीन दशक पहले बंद कर दी गई। आम के बागवानों को उनकी फसल का वाजिब मूल्य दिलाने व किसानों की आय बढ़ाने के लिए आम के निर्यात की व्यवस्था होनी चाहिए।

- अंबुज बाथम, कायमगंज।


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