फाइबर केबल नेटवर्किंग में करोड़ों का बजट भूमिगत, डाटा आफलाइन
जागरण संवाददाता फर्रुखाबाद डिजिटल इंडिया के नाम पर गांव-गांव तक फाइबर केबल बिछाने की
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : डिजिटल इंडिया के नाम पर गांव-गांव तक फाइबर केबल बिछाने की कवायद में सरकार की ओर से अरबों रुपये का बजट खपा दिया गया। जनपद के पांच ब्लाकों को योजना में शामिल किया गया। इसके बावजूद अभी तक जनपद के किसी भी गांव में इसका उपयोग नहीं हो सका है। अधिकांश गांवों में तो वाई-फाई नोड ही स्थापित नहीं हो सका है। जहां है भी वहां इसका उपयोग नहीं हो रहा है। भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के अधिकारी योजना के क्रियान्वयन के लिए चयनित संस्था विहान नेटवर्क लिमिटेड (वीएनएल) को जिम्मेदार ठहराकर पल्ला झाड़ लेते हैं। जबकि फाइबर केबल के बंडल बीएसएनएल कार्यालय परिसर में पड़े धूल फांक रहे हैं।
आय, जाति, मूल निवास आदि राजस्व विभाग से संबंधित प्रमाण पत्रों को छोड़ भी दें तो भी विधवा पेंशन से लेकर गेहूं व धान खरीद तक के लिए आनलाइन पंजीकरण की अनिवार्यता है। 'आनलाइन' आवेदन की अनिवार्यता के नाम पर लाभार्थियों का जनसेवा केंद्रों पर भी शोषण होता है। प्रदेश में भी 27 सेवाओं की लिस्टिंग कर ई-गवर्नेस का ढिढोरा पीटा जा रहा है, लेकिन वास्तव में यह आंकड़ा 4-5 सेवाओं से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। विभिन्न योजनाओं के आवेदकों को जनसेवा केंद्रों के चक्कर लगाने होते है। वहां पर निर्धारित 20 रुपये की फीस के स्थान पर 50 से 100 रुपये तक वसूले जाते हैं। ऑनलाइन आवेदन के बाद लाभार्थी को उसकी हार्डकापी के साथ संलग्नकों की प्रमाणित प्रति संबंधित विभाग में जाकर अभी भी जमा करनी होती है। यहीं से शुरू होता है 'बाबुओं का खेल'। आज साहब नहीं है, कल कंप्यूटर आपरेटर नहीं आया, इस समय नेट नहीं चल रहा, तुम्हारा आवेदन वेबसाइट पर 'शो' नहीं हो रहा। ऐसे बहानों की लंबी फेहरिस्त है। इस दौरान लाभार्थी कई बार संबंधित कंप्यूटर सेंटर पर भी चक्कर काट चुका होता है। आखिर हार मानकर उसे करना 'वही' पड़ता है जो बाबू 'चाहता' है।
गांव-गांव तक फाइबर नेटवर्क के माध्यम से हाई स्पीड इंटरनेट की उपलब्धता के लिए सरकार की ओर से अरबों रुपये खर्च किए गए। जनपद के ब्लाक बढ़पुर और अमृतपुर को छोड़कर शेष पांच ब्लाकों के 394 गांवों को फाइबर केबल से कनेक्टिविटी देने के लक्ष्य के सापेक्ष अभी तक मात्र पचास फीसद गांवों में ही नेटवर्क कनेक्टिविटी हो सकी है। जहां कनेक्टिविटी है भी वहां पर वाइ-फाई सेटअप नहीं लगा है। जबकि योजना के तहत गांव में ही लोगों को इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराने थी। गांव में पंचायत सचिवालय स्थापित करने और उसकी डिजिटल उपस्थिति की व्यवस्था जैसी योजनाएं अभी हसीन सपने की तरह ही हैं।
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बीएसएनएल के सहायक महाप्रबंधक अनूप बाजपेयी बताते हैं कि चिह्नित ब्लाकों के सभी गांवों तक केबल पहुंचा चुका है। इसके लिए कार्यदायी संस्था के तौर पर विहान नेटवर्क लिमिटेड कंपनी को शासन स्तर से चुना गया था। वाई-फाई नोड स्थापना तक का काम कार्यदायी संस्था का ही है। इसकी मानीटरिग भी बीएसएनएल के पास नहीं है। हमारा काम तो कनेक्टिविटी देना है। बीएसएनएल के स्तर पर कोई काम लंबित नहीं है। वहीं जनसेवा केंद्र संचालकों का कहना है कि शासन की ओर से निर्धारित 20 रुपये की फीस में से उन्हें मुश्किल से डेढ़ रुपया ही मिलता है। दस रुपये सरकार के खाते में जमा हो जाते हैं व शेष पैसा सर्विस प्रोवाइडर कंपनी रख लेती है। ऐसे में कंप्यूटर, इंटरनेट, विद्युत बिल और कर्मचारियों के वेतन के लिए कुछ अतिरिक्त पैसा लेना मजबूरी है।