सावधान! होली की गुझिया में लग रहा मिलावट का 'तड़का'
जागरण संवाददाता फर्रुखाबाद होली पर मेहमाननबाजी की शुरुआत गुझिया से होती है। एक जमाना
जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद : होली पर मेहमाननबाजी की शुरुआत गुझिया से होती है। एक जमाना था जब गुली (आटा) की गुझिया खासी पसंद की जाती थी, लेकिन जायके के चक्कर में अब खोवा की गुझिया लोगों की पहली पसंद बन गई। इसी के चलते दूध की मांग बढ़ी और मिलावट का दौर शुरू हो गया। बाजार में शुद्ध दूध मिलना कठिन हो गया है। आधे बाजार पर तो दूधिया कब्जा जमाए हैं। शहर की एकमात्र पराग डेरी दुर्दिनों से गुजर रही है।
गुझिया बनाने को खोवा की आवश्यकता होती है। बाजार में दूध जहां 40 से 55 रुपये लीटर तक बिक रहा है। वही खोवा 200 रुपये किलो है। इसमें भी शुद्धता की गारंटी नहीं ली जा सकती। यह सिर्फ विश्वास का मामला है। दूध में जहां पाउडर, अरारोट व पानी मिलाया जाता है। वहीं कुछ दूधियों का दावा है कि दूध में गड्ढे का पानी मिलाने से उसके फैट मशीन भी नहीं पकड़ पाती। वही खोवा है, जिसमें शकरकंद, पाउडर आदि की मिलावट की जाती है। इससे लागत कम और मुनाफा अधिक होता है। हालांकि आकड़ों पर गौर करें तो जनपद में दूध का उत्पादन कम नहीं है। खोवा व दूध बेचने को पड़ोसी जनपद एटा, कासगंज, शाहजहांपुर, हरदोई के लोग भी शहर आते हैं। पांचालघाट स्थित पराग दूध डेयरी कर्मचारी प्रेमप्रकाश दुबे बताया कि वर्ष 2010-11 में डेयरी 80 हजार लीटर दूध खरीदती थी। 155 से अधिक समितियां थीं। अब समितियों की संख्या घटकर करीब 55 रह गईं और लगभग 1850 लीटर दूध ही आ रहा है। बाजार से करीब आठ निजी डेरियां दूध खरीद रही है। विदित है कि शहर में अधिकांश होटल व घरों में दूध की सप्लाई दूधिए ही करते हैं। अधिकांश बाजार पर दूधियों का ही कब्जा है। जिससे मिलावट की संभावना अधिक रहती है। दूध को गाढ़ा करने वाला पाउडर शहर की बूरावाली गली में सालों से बिक रहा है। मिलावटी खाद्य सामग्री पर रोक के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है। नमूने भी लिए जा रहे हैं।
सतीश कुमार, जिला अभिहित अधिकारी