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जरदोजी कलस्टर के 'पंख' फाइलों में कैद

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद: अंतरराष्ट्रीय बाजार में उड़ान भरने के लिए 10 साल पहले ही तैयार जरद

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Aug 2018 09:49 PM (IST)Updated: Mon, 20 Aug 2018 09:49 PM (IST)
जरदोजी कलस्टर के 'पंख' फाइलों में कैद
जरदोजी कलस्टर के 'पंख' फाइलों में कैद

जागरण संवाददाता, फर्रुखाबाद: अंतरराष्ट्रीय बाजार में उड़ान भरने के लिए 10 साल पहले ही तैयार जरदोजी कलस्टर योजना के 'पंख' फाइलों में ही कैद हैं। जिला उद्योग केंद्र की ओर से इसे लेकर जोरशोर से तैयारी की गई, लेकिन अफसरों की लापरवाही से यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी। इस व्यवसाय से जुड़े एक लाख परिवारों के सपने बिखर गए।

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जिले में जरदोजी व्यवसाय कुटीर उद्योग की हैसियत रखता है। इससे करीब एक लाख परिवारों की रोजी-रोटी जुड़ी है। शहर में दर्जनों बड़े कारखानों में कारीगर हाथ से कपड़े पर जरदोजी का काम करते हैं। वहीं, शहर के अलावा गांवों में भी काफी संख्या में महिलाएं घरों में भी काम करती हैं। हालांकि फर्रुखाबाद में तैयार जरदोजी के कपड़े अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी देशों सहित कई अन्य मुल्कों में भी जाते हैं, लेकिन एक्सपोर्ट का काम कुछ बड़े कारखाना मालिकों और दिल्ली में बैठे एक्सपोर्ट हाउसों तक ही सीमित है। इसका लाभ छोटे कारीगर और व्यवसाइयों को नहीं मिल पाता है। ऐसे में स्थानीय जरदोजी उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थान दिलाने और विदेशी खरीदारों तक सीधी पहुंच बनाने के लिए करीब दस साल पहले जिला उद्योग केंद्र ने जरदोजी कलस्टर की योजना बनाई थी।

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योजना के लिए चिह्नित जमीन पर दोबारा हो गया कब्जा

इस योजना के लिए लालसराय पानी की टंकी के सामने नगर पालिका की जमीन को चुना गया। तत्कालीन उद्योग राज्यमंत्री व उद्योग सचिव भी यहां आए और योजना को आगे बढ़ाने का भरोसा दिया। जमीन पर हुए कब्जे को अधिकारियों ने हटवा भी दिया। हालांकि बाद में योजना ही ठंडे बस्ते में चली गई। जमीन पर दोबारा अतिक्रमियों ने कब्जा कर लिया। जरदोजी व्यवसायियों ने योजना को अमल में लाने के लिए कई बार मांग की, लेकिन अभी तक यह धरातल पर नहीं उतर सकी।

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योजना से अधिकारी अनजान

एक साल से जिले में अपनी सेवा दे रहे जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त सुरेंद्र सिंह को योजना के बारे में जानकारी ही नहीं है। उनकी जानकारी में जरदोजी कलस्टर से संबंधित कोई पत्रावली लंबित नहीं है। अब इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अधिकारी इस योजना को लेकर कितना गंभीर हैं।


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