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तीन तलाक अध्यादेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती

रुदौली (फैजाबाद): केंद्र सरकार की तरफ से तीन तलाक पर बनाए गए कानून को नगर के दो मुस्लिम

By JagranEdited By: Published: Sun, 07 Oct 2018 06:06 AM (IST)Updated: Sun, 07 Oct 2018 06:06 AM (IST)
तीन तलाक अध्यादेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती
तीन तलाक अध्यादेश को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती

रुदौली (फैजाबाद): केंद्र सरकार की तरफ से तीन तलाक पर बनाए गए कानून को नगर के दो मुस्लिम युवकों ने सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी है। याचिका संख्या 001253 को उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है। अखिल भारतीय सामाजिक संगठन की तरफ से सैय्यद फारुक अहमद और मोहम्मद सिद्दीक ने संयुक्त रूप से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर अध्यादेश को रद करने की मांग की है। संगठन अध्यक्ष फारुक अहमद ने बताया कि शायराबानो प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने एक ही समय में दिये गए तीन तलाक को निष्प्रभावी घोषित कर दिया था। इसलिए यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को अब एक समय में तीन तलाक देता है तो इससे उसके वैवाहिक संबंधों पर कानूनी रूप से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय की मंशा के खिलाफ जाकर तीन तलाक पर कानून का जो प्रारूप सदन में प्रस्तुत किया, उसमें तलाक देने वाले पति के लिए तीन साल के कारावास का प्रावधान किया गया। लोकसभा में पास होने के बाद बिल राज्यसभा में पारित नहीं हो सका। उनका तर्क है कि ऐसे समय में जब बिल राज्यसभा में लंबित है कुछ संशोधनों के साथ इसे अध्यादेश के रूप में प्रख्यापित कर कानून बनाना दर्शाता है कि बीजेपी इसका इस्तेमाल किसी का भला करने के बजाय राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए कर रही है। अहमद ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय में इसके खिलाफ पिटीशन अपने अधिवक्ता निखिल जैन, फरहान खान और फरहा हाशमी के माध्यम से 27 सितंबर को दाखिल करवाई थी। कोर्ट ने चार अक्टूबर को स्वीकार कर लिया है। आशा जताई कि जल्द ही इस पर सुनवाई शुरू हो जायेगी। उनका मानना है कि जहां यह एक तरफ कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है वहीं दूसरी तरफ इससे संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का हनन भी होगा, क्योंकि जब न्यायलय द्वारा तीन तलाक को पूर्व में ही शून्य घोषित किया जा चुका है, इससे समाज को या किसी को कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं होता और वैवाहिक संबंधों पर भी प्रभाव नहीं पड़ता तो इसे अपराध कैसे बनाया जा सकता है।

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