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निसिचर हीन करहुं महि भुज उठाय प्रन कीन्ह...

लक्ष्मणकिला में सितारों से सज्जित रामलीला का पांचवां दिन. वन गमन के दौरान श्रीराम की मुनियों से भेंट खर-दूषण का वध एवं सीता हरण का मंचन.

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Oct 2020 01:11 AM (IST)Updated: Thu, 22 Oct 2020 05:02 AM (IST)
निसिचर हीन करहुं महि  भुज उठाय प्रन कीन्ह...
निसिचर हीन करहुं महि भुज उठाय प्रन कीन्ह...

अयोध्या : पुण्य सलिला सरयू के तट पर स्थित शीर्ष पीठ लक्ष्मणकिला परिसर में चल रही नौ दिवसीय रामलीला के पांचवें दिन नाट्य के रोमांच का शिखर परिभाषित हुआ। छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक छाप छोड़ने वाले शाहबाज खान रावण और राजेश पुरी सुतीक्ष्ण के किरदार में नजर आये। पारंपरिक गणेश वंदना के बाद मंच पर सुतीक्ष्ण के आश्रम का ²श्य उपस्थित होता है और कुछ ही पलों में श्रीराम पत्नी सीता एवं अनुज लक्ष्मण के साथ मुनि के आश्रम में प्रवेश करते हैं। श्रीराम की भूमिका में सोनू डागर, सीता की भूमिका में कविता जोशी एवं लक्ष्मण की भूमिका में लवकेश धालीवाल मुनि के सामने पूरी विनम्रता का परिचय देते हैं। प्रणाम के प्रत्युत्तर में मुनि उन्हें पूरी करुणा और उदारतापूर्वक आशीर्वाद देते हैं। सुतीक्ष्ण की भूमिका में छोटे पर्दे के दिग्गज कलाकार राजेशपुरी रामलीला के मंच पर भी पहचान के अनुरूप अपनी प्रतिभा का परिचय देते हैं। वन में आगे बढ़ते हुए श्रीराम पत्नी और अनुज के साथ ऋषि अगस्त्य के आश्रम में पहुंचते हैं। ..और यहां तक पहुंचते-पहुंचते श्रीराम के वनवास का एक और हेतु स्पष्ट होने लगता है। मुनियों के आश्रम में जाकर उनसे भेंट के साथ श्रीराम को राक्षसों के अत्याचार के बारे में ज्ञात होता है और पिता की आज्ञा पालन के साथ अयोध्या का वैभवशाली राज्य छोड़कर विनम्रता एवं त्याग की प्रतिमूर्ति श्रीराम अप्रतिम शौर्य से युक्त प्रतीत होने लगते हैं। रामचरितमानस के कथानक के अनुरूप इसी दौरान वे निसिचर हीन करहुं महि भुज उठाय प्रन कीन्ह का संकल्प लेते हैं। इसी के साथ ही जहां श्रीराम का पंचवटी में प्रवास सुनिश्चित होता है, वहीं राक्षसों से सामना भी होने लगता है। पंचवटी में ही वेश बदल कर सूर्पनखा श्रीराम और लक्षण को लुभाने आती है, पर जितेंद्रिय श्रीराम और लक्ष्मण उसे छद्म को पहचान लेते हैं। नाक-कान कटने के बाद घायल सर्पिणी की भांति सूर्पनखा खर-दूषण जैसे बलवान राक्षसों के दरबार में प्रस्तुत होती है और राम-लक्ष्मण के वध के लिए ललकारती है। हालांकि खर-दूषण श्रीराम को हल्के में लेने की भूल करते हैं और किचित प्रयास के साथ श्रीराम एवं लक्ष्मण खर-दूषण का वध करते हैं। अगले ²श्य में मंच पर रावण का दरबार सजा होता है। रावण की भूमिका में शाहबाज खान यद्यपि पूरे दंभ का परिचय दे हे होते हैं, पर अपने ही समान बलवान खर-दूषण के वध की खबर से एक बार को उनके नीचे की जमीन सरक जाती है। दंभ केसाथ भय का समावेश कैसा हो सकता है, इसे रावण की भूमिका में शाहबाज खान ने बखूबी अंजाम दिया। घबराया रावण एक पल की देर किये बिना श्रीराम के विरुद्ध साजिश रचना शुरू करता है। अगले ²श्य में वह मारीच के महल में होता है। मारीच रिश्ते में रावण का मामा और कुटिल राक्षस ही नहीं है, बल्कि श्रीराम के वैशिष्ट्य से परिचित अनुभवी और समझदार भी है, पर रावण की जिद के आगे उसे झ़कना पड़ता है और स्वर्ण मृग का वेश बनाकर सीता एवं श्रीराम को धोखा देने के लिए तैयार होता है। मंच पर स्वर्ण मृग और उसका पीछा करते श्रीराम का ²श्य संयोजित करना चुनौतीपूर्ण था, पर आयोजकों ने कुशल तकनीक और सटीक निर्देशन से इस ²श्य को बखूबी जीवंत किया। श्रीराम के साथ लक्ष्मण भी मारीच के पीछे भागते हैं, उधर घोर वन में स्थित अपने आश्रम में सीता अकेले होती हैं। किचित अनिष्ट की आशंका से आकुल। यद्यपि लक्ष्मण रेखा में वे स्वयं को सुरक्षित पा रही होती हैं। साधु का वेश धारण कर रावण कुटिलता का पर्याय बनकर प्रस्तुत होता है और भिक्षा मांगने के बहाने लक्ष्मण रेखा से बाहर निकाल सीता का पूरी निर्लज्जता और ढिठायी से अपहरण करता है। शाहबाज खान जहां अनाचार का पर्याय बनकर रावण की भूमिका को जीवंत करते हैं, वहीं कविता जोशी सीता की भूमिका पतिव्रत और विवशता को जीवंत करती हैं। कथानक के अनुरूप जटायु की गीधराज के रूप में साज-सज्जा और रावण से मुकाबिल होने की उसकी न्यायप्रियता बरबस प्रेरित करती है। मारीच को मार कर पंचवटी लौटे श्रीराम पर्णकुटी में सीता को न पाकर विलाप करते हैं। शबरी को दिया नवधा भक्ति का उपदेश

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- श्रीराम नर के साथ नारायण भी हैं। यह सत्य कथाक्रम में शबरी के आश्रम से विवेचित होता है। जो राम शोकाकुल होकर पत्नी की खोज कर रहे होते हैं, उनके दर्शन के लिए भक्ति की मूर्ति पूरा जीवन समर्पित किये होती हैं। श्रीराम और शबरी का मिलन भक्त और भगवान के मिलन का विश्वास ²ढ़ करने के साथ श्रीराम की करुणा, उनका औदार्य और शील प्रतिष्ठापित करता है। इसी के साथ ही श्रीराम शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देते हैं, जो युगों बाद भी आराध्य की भक्ति में लीन लोगों के लिए महान प्रेरक है।


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