¨हदी का श्रृंगार है उर्दू : जीलानी
नकी सेवाओं को नहीं भुलाया जा सकता। कुतुबुल्लाह रेजींडेट ने कहा कि मुंशीजी हिन्दू थे लेकिन वह हर मजहब की इज्जत दिल व जान से करते थे। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। गुफरान नसीम खान ने कहा कि मुंशी नवल किशोर ने उर्दू पत्रकारिता में लगन, मेहनत एवं निष्ठा से कार्य किया। एडवोकेट आफताब रजा रिजवी ने कहा कि मुंशी नवल किशोर के ¨प्र¨टग प्रेस में कुरान शरीफ भी प्रकाशित होती थी। अशफाक उल्ला खां शहीद शोध संस्
अयोध्या : उर्दू अकादमी लखनऊ के सहयोग से सिविललाइन स्थित एक होटल के सभागार में उर्दू सहाफत और मुंशी नवलकिशोर शीर्षक पर आयोजित सेमिनार में मुख्य अतिथि जीलानी खान अलीग ने कहा, उर्दू जुबान अब भी अपनी खूबियों की वजह से तरक्की कर रही है। यह ¨हदी भाषा का श्रृंगार है। अध्यक्षता अहमद इब्राहीम अलवी लखनऊ ने की। संचालन डॉ. तारिक मंजूर ने किया। प्रारंभ उर्दू प्रेसक्लब के चेयरमैन जलाल सिद्दीकी ने मेहमानों को बुकें भेंटकर किया। अहमद इब्राहिम अलवी लखनवी ने कहा कि मुंशी नवलकिशोर ने लखनऊ में प्रेस एवं प्रकाशक की हैसियत से उर्दू साहित्य का भंडार विस्तृत किया। उनकी सेवाओं को भुलाया नहीं जा सकता। कुतुबुल्लाह रेजींडेंट ने कहा कि मुंशीजी ¨हदू थे, लेकिन वह हर मजहब की इज्जत दिलों-जान से करते थे। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। गुफरान नसीम खान ने कहा कि मुंशी नवलकिशोर ने उर्दू पत्रकारिता में लगन, मेहनत एवं निष्ठा से कार्य किया। आफताबरजा रिजवी ने कहा कि मुंशी नवलकिशोर के ¨प्र¨टग प्रेस में कुरानशरीफ प्रकाशित होती थी। अशफाक उल्ला खां शहीद शोध संस्थान के प्रबंध निदेशक सूर्यकांत पांडेय ने कहा कि उर्दू केवल मुसलमानों की नहीं, बल्कि सभी भारतीयों की जुबान है। मंजर मेंहदी ने कहा कि उर्दू जुबान की नजाकत और मिठास सबको अपनी ओर आकर्षित करती है। अंबेडकरनगर के शिक्षक मो. असलम खान ने कहा कि मुंशी नवलकिशोर ने ब्राह्मण होते हुए भी अखबार के माध्यम से उर्दू साहित्य एवं पत्रकारिता को नया आयाम दिया।
शबाना शेख मुंबई ने कहा कि मुंशी नवलकिशोर के अखबार में सरसैय्यद अहमद खां के लेख छपते थे। हाजरानूर जरयाब ने कहा कि उनका ¨प्र¨टग प्रेस उस समय उर्दू दुनिया में एशिया के दूसरे नंबर पर था। शहीद शोध संस्थान के अध्यक्ष सलाम जाफरी ने कहा कि मुंशीजी ने उर्दू किताबों के साथ गीता, रामायण और महाभारत के अनुवाद को प्रकाशित किया। सेमिनार को मो. तुफैल, संयोजक जलाल सिद्दीकी ने कहा कि उन्हें अंग्रेज सरकार ने कैसर-ए-¨हद की उपाधि देकर उर्दू को उचित स्थान दिया। इस अवसर पर बादशाह खान, मंसूर इलाही, मेराज अहमद, महफूज अहमद वारसी, इरशाद रब्बानी, जमशेद, महेंद्र कुमार, करन प्रजापति, रवींद्र कुमार, मास्टर अहमद अली, तनवीर जलालपुरी, हंजला हिन्दी, ध्यानी आदि लोग उपस्थित रहे।