नागरिक बोध के भाव से भरे हैं अनुराग व विजय
फैजाबाद : नागरिक बोध। यह सिर्फ शब्द मात्र नहीं, बल्कि कई समस्याओं का निस्तारण भी है। इस बो
फैजाबाद : नागरिक बोध। यह सिर्फ शब्द मात्र नहीं, बल्कि कई समस्याओं का निस्तारण भी है। इस बोध भाव से भरे अनुराग वैश्य व विजय ¨सह बंटी न केवल नागरिक जिम्मेदारियां निभा रहे हैं, बल्कि लोगों को भी सिविक सेंस के प्रति जागरुक कर रहे हैं। सबसे पहले आपको बताते हैं अनुराग वैश्य के बारे में। कुलीन परिवार में पैदा हुए अनुराग वैश्य विधि स्नातक है। उन्होंने समाज कार्य से परास्नातक किया है, लेकिन उन्होंने पढ़ाई को मात्र उपाधि तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे जीवन में भी उतारा।
गांधीवाद से प्रेरित अनुराग वैश्य पिछले 15 वर्षों से सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए हैं। मुख्य रूप से बाल अधिकारों के प्रति संवेदनशील रहने वाले अनुराग वैश्य बच्चों को शोषण से मुक्त कराने के लिए सक्रिय रहते हैं। इसके साथ ही विभिन्न अवसरों पर स्कूली छात्रों को नागरिक होने की जिम्मेदारी के लिए अभियान चलाते हैं। हाल ही में उन्होंने स्कूलों में अभियान चलाकर छात्रों में यातायात नियमों के प्रति जागरूक किया। विद्यार्थियों को नागरिकों के अधिकारों की जानकारी देने के साथ ही जिम्मेदारी के प्रति भी सचेत किया। बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े अनुराग वैश्य अब तक 165 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त करा चुके हैं। गुमशुदा हो चुके 55 बच्चों को उनके परिजनों तक पहुंचाने के साथ लावारिस मिले 66 नवजात बच्चों को बाल कल्याण समिति के माध्यम से संरक्षण में लेकर गोदनामे के बाद परिवारों को सौंपा। भारतीय मानवाधिकार एसोसिएशन, इंडियन रेडक्रास सोसायटी, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी आदि संस्थाओं से जुड़कर अपन इस अभियान को लगातार जारी रखे हुए हैं। अनुराग कहते हैं कि सिर्फ नागरिक जिम्मेदारी का भाव ही आधी से ज्यादा समस्या का समाधान कर देता है।
घायलों के भगवान बने बंटी
-विजय ¨सह बंटी ऐसा नाम है, जो कइयों के भगवान समान हैं। इसकी वजह भी जान लीजिये। बंटी, नर सेवा को ही नारायणसेवा मान अपनी अलग लीग पर चल रहे हैं। कई मौकों पर ऐसे वाक्ये सामने आते हैं, जब लोग घायलों को सड़क पर पड़ा देखकर भी अनदेखी कर आगे बढ़ जाते हैं, जबकि विजय ¨सह बंटी ऐसी शख्सियत हैं, जो घायलों सड़क पर छोड़ कर नहीं जाते, बल्कि अपना दायित्व समझ उन्हें चिकित्सालय पहुंचाते हैं। बंटी अब तक सड़क पर पड़े 28 घायलों को जिला चिकित्सालय पहुंचा चुके हैं। उन्होंने नौ लावारिस लोगों का अंतिम संस्कार भी किया है। रक्तदान में भी वे पीछे नहीं रहते हैं। अब तक 28 बार रक्तदान कर चुके विजय ¨सह बंटी ने मरणोपरांत देहदान का भी संकल्प लिया है। वे कहते हैं जब तक आप स्वयं नागरिक दायित्व के भाव से भरा महसूस नहीं करेंगे, तब तक मानवीय चेतना और संवेदनाओं का विकसित होना कठिन है।