राममंदिर अदालत का विषय नहीं, सरकार संसद में कानून लाए : शिवसेना
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के बाद कहा कि रामजन्मभूमि अदालत का विषय नहीं है। मंदिर के लिए सरकार अध्यादेश लाए।
फैजाबाद (जेएनएन)। केंद्र की भाजपा सरकार का रुख एससी-एसटी एक्ट और तीन तलाक जैसे मुद्दों पर लगा है ऐसे में शिवसेना ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की पैरवी शुरू कर दी है। उसका मानना है कि मंदिर अदालत का विषय नहीं है। यदि इस बारे में भाजपा संसद में कानून लाएगी तो शिवसेना साथ खड़ी नजर आएगी। मंदिर निर्माण से जुड़ी गतिविधियों को गति देने शिवसेना प्रमुख ऊद्धव ठाकरे नवंबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में अयोध्या आने वाले हैं। शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने आज अयोध्या पहुंचकर कर इसके लिए माहौल बनाना शुरू कर दिया है।
रामजन्मभूमि अदालत का विषय नहीं
राउत आज अयोध्या में रामलला के दर्शन के बाद मीडिया से मुखातिब हुए और कहा कि रामजन्मभूमि अदालत का विषय नहीं है। मंदिर निर्माण के लिए सरकार अध्यादेश लाए। उन्होंने कहा, राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक में भाजपा का बहुमत है। राष्ट्रपति भवन तक उसका कब्जा है, जिसे रामभक्तों ने अपने वोटों से वहां तक पहुंचाया। इसके बावजूद भाजपा सरकार एससी-एसटी एक्ट और तीन तलाक के लिए अध्यादेश पारित कराती है पर राममंदिर की अनदेखी करती है। शिवसेना प्रवक्ता ने इशारों में भाजपा नेतृत्व को चेतावनी दी। कहा, भाजपा सरकार यदि 2019 के पूर्व राम को वनवास से नहीं मुक्त कराती तो जनता भाजपा को वनवास दे देगी।
शिवसेना पूरी जिम्मेदारी से उठाएगी मुद्दा
संजय राउत ने राममंदिर के संबंध में जहां बालासाहब ठाकरे के समय से शिवसेना की प्रतिबद्धता का स्मरण कराया वहीं भाजपा पर मंदिर मुद्दे की अनदेखी का आरोप लगाया। राउत ने कहा, यदि भाजपा मंदिर के प्रति ईमानदार हो, तो वह 24 घंटे के भीतर मंदिर निर्माण का अध्यादेश पारित करा सकती है। राउत के मुताबिक निकट भविष्य में शिवसेना इस मुद्दे को पूरी जिम्मेदारी से उठाएगी और नवंबर के दूसरे-तीसरे सप्ताह तक सेना प्रमुख ऊद्धव ठाकरे रामलला दर्शन करने और मंदिर निर्माण की मांग बुलंद करने के लिए अयोध्या आ सकते हैं।
ज्ञानस्वरूप की मौत की सीबीआइ जांच हो
एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने अविरल गंगा-निर्मल गंगा के लिए 113 दिन तक अनशन करने के बाद पुलिस अभिरक्षा में अस्पताल ले जाए जा रहे स्वामी ज्ञानस्वरूप के निधन पर दुख व्यक्त किया और उनके निधन के मामले की सीबीआइ से जांच कराने की वकालत की।
मंदिर मुद्दे से शिवसेना का प्रेम पुराना
राम मंदिर के प्रति शिवसेना का अनुराग नया नहीं है। छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ध्वंस के मामले में भी शिवसैनिकों का नाम प्रमुखता से आया था। ढांचा ध्वंस की जिम्मेदारी के सवाल पर जब और कोई मुंह नहीं खोल रहा था, तब शिवसेना के तत्कालीन प्रमुख बाला साहब ठाकरे ने ध्वंस की जिम्मेदारी ली थी और कहा था कि ढांचा चुङ्क्षनदा शिवसैनिकों ने तोड़ा था। बाला साहब का यह दावा महज जुबानी ही नहीं था बल्कि जमीनी स्तर पर भी इस दावे की हकीकत बयां हो रही थी। ध्वंस के मामले में सीबीआइ ने जिन लोगों को आरोपी बनाया था, उनमें पड़ोस की अकबरपुर सीट से शिवसेना के तत्कालीन विधायक पवन पांडेय और फैजाबाद जिला में शिवसेना की अलख रोशन रखने वाले संतोष दुबे प्रमुख थे।
ढांचा ध्वंस विहिप के एजेंडे में नहीं था
इसमें कोई संदेह नहीं कि छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवकों का आह्वान विश्व हिंदू परिषद ने किया था पर यह सच्चाई भी असंदिग्ध है कि ढांचा ध्वंस विहिप के एजेंडे में नहीं था जबकि शिवसेना की ओर से यदा-कदा ढांचा ध्वंस की चेतावनी जारी होती रही। ऐसे में ध्वंस के बाद शिवसेना मंदिर की प्रबल समर्थक के तौर पर प्रतिष्ठापित हुई। ध्वंस के बाद यदि मंदिर मुद्दे की गर्माहट में अवरोह शुरू हुआ, तो शिवसेना भी मंदिर मुद्दे की चिंता छोड़कर अपनी मांद महाराष्ट्र की ओर सिमटती नजर आई। हालांकि कभी ऐसा भी नहीं हुआ कि सेना मंदिर मुद्दे के प्रति सर्वथा विमुख हुई हो। मौका पडऩे पर शिवसैनिक मंदिर मुद्दे की अनिवार्य रूप से टोह लेते रहे।
शिवसेना से संभव भाजपा से उपजी शून्यता की भरपाई
साढ़े चार वर्ष पूर्व दिल्ली में और पौने दो वर्ष पूर्व लखनऊ में भाजपा सरकार की ताजपोशी के साथ शिवसेना नए सिरे से मंदिर की ओर उन्मुख हुई है। शायद इस रणनीति के तहत कि सत्ता पाने के साथ मंदिर मुद्दे के प्रति भाजपा के रक्षात्मक होने से उपजी शून्यता की भरपाई शिवसेना कर सकती है। इस बीच सेना के प्रदेश अध्यक्ष अनिल सिंह की बार-बार अयोध्या यात्रा एवं सेना के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय राउत की साल भर के भीतर दूसरी बार अयोध्या यात्रा से इस रणनीति की पुष्टि होती है। नवंबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह में सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का आगमन मंदिर मुद्दा हथियाने की चिर तड़प को ही परिभाषित करेगा। इसी के साथ ही यह देखना भी दिलचस्प होगा कि मंदिर मुद्दे पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए भाजपा नेतृत्व किस करवट बैठेगा।