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भगवान की पूजा के लिए ईंट-पत्थर की नहीं हृदयरूपी मंदिर की जरूरतः रामदिनेशाचार्य

जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने भगवान की पूजा के लिए ईंट-पत्थर से बने मंदिर की आवश्कयकता को नकार दिया। उनके मुताबिक इन्हें ईंट-पत्थर के नहीं बल्कि हृदय रूपी मंदिर में बिठाना है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 03 Nov 2018 05:46 PM (IST)Updated: Sat, 03 Nov 2018 09:13 PM (IST)
भगवान की पूजा के लिए ईंट-पत्थर की नहीं हृदयरूपी मंदिर की जरूरतः रामदिनेशाचार्य
भगवान की पूजा के लिए ईंट-पत्थर की नहीं हृदयरूपी मंदिर की जरूरतः रामदिनेशाचार्य

अयोध्या (जेएनएन)। जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने भगवान की पूजा के लिए ईंट-पत्थर से बने मंदिर की आवश्कयकता को नकार दिया। उनके मुताबिक भगवान राम हों या कृष्ण। इन्हें ईंट-पत्थर के नहीं बल्कि हृदय रूपी मंदिर में बिठाना है।

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 भगवान की अनुभूति उनसे तादात्म्य में निहित

रामदिनेशाचार्य रामघाट स्थित अपनी पीठ हरिधाम में सात दिवसीय भागवत कथा ज्ञानयज्ञ का समापन कर रहे थे। उन्होंने कहा, भागवतकथा भगवान का साक्षात विग्रह है और उसके हृदयंगम से सच्चे भक्त के रूप में विकसित होने की संभावना प्रबल होती है। जगद्गुरु के अनुसार जीवन की सार्थकता भगवान की अनुभूति और उनसे तादात्म्य स्थापित करने में निहित है और यह सूत्र भागवत महापुराण में वर्णित भक्तों की कथा पूरी सटीकता और माधुर्य के साथ विवेचित है। 

भक्ति नजारे नहीं नजरिया बदलने की कला

रामदिनेशाचार्य ने कहा कि भक्ति नजारे नहीं नजरिया बदलने की कला है। सामान्य जीव भगवान पर अपनी शर्त थोपता है और अपनी मांग दर मांग से भक्ति को बोझिल करता है पर भक्त का एलान होता है, राजी हैं हम उसी में जिसमें तेरी रजा है। कथा के समापन सत्र में शीर्ष महंत एवं मणिरामदासजी की छावनी के महंत नृत्यगोपालदास एवं प्रतिष्ठित पीठ रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास ने शिरकत की। महंत नृत्यगोपालदास ने स्वामी रामदिनेशाचार्य जैसे तत्वज्ञ के मुख्य से भागवतकथा श्रवण को प्रेरक बताया। जगद्गुरु ने व्यास पीठ से उतरकर महंत नृत्यगोपालदास का अभिनंदन भी किया।


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