सुग्रीव से मित्रता, बालि वध और लंकादहन का मनोहारी मंचन
चित्र- 43 से 46 संवादसूत्र अयोध्या रामलीला युगों से प्रवाहमान है पर हर प्रस्तुति दर्शकों को अनुभव के नये आकाश का एहसास कराती है। कुछ प्रसंग उन्हें आह्लादित करते हैं और कुछ से प्रेरित हो वे जीवन की दिशा प्रशस्त करते हैं। यदि सशक्त निर्देशन हो प्रसंगों को जीवंत करने वाले कलाकार हों और त्रेतायुगीन ²श्यों को साकार करने वाली सज्जा हो तो रामलीला का यह वैशिष्ट्य और भी प्रभावी हो जाता है। विश्वास न हो तो पुण्यसलिला सरयू के तट पर स्थित शीर्ष पीठ लक्ष्मणकिला परिसर में सितारों से सज्जित रामली
अयोध्या : रामलीला युगों से प्रवाहमान है, पर हर प्रस्तुति दर्शकों को अनुभव के नये आकाश का एहसास कराती है। कुछ प्रसंग उन्हें आह्लादित करते हैं और कुछ से प्रेरित हो वे जीवन की दिशा प्रशस्त करते हैं। यदि सशक्त निर्देशन हो, प्रसंगों को जीवंत करने वाले कलाकार हों और त्रेतायुगीन ²श्यों को साकार करने वाली सज्जा हो, तो रामलीला का यह वैशिष्ट्य और भी प्रभावी हो जाता है। विश्वास न हो, तो पुण्य सलिला सरयू के तट पर स्थित शीर्ष पीठ लक्ष्मणकिला परिसर में सितारों से सज्जित रामलीला की प्रस्तुति देखिए। मंच पर सीता की खोज में किष्किधा पर्वत की ओर बढ़ते श्रीराम और लक्ष्मण नजर आते हैं। श्रीराम की गरिमा के अनुरूप सोनू डागर मुश्किल घड़ी में भी धीर-गंभीर नजर आते हैं, तो किचित उद्विग्न और आवेशित लवकेश धालीवाल लक्ष्मण की छवि से न्याय करते प्रतीत होते हैं। अगले पल उनके सम्मुख हनुमान जी प्रस्तुत होते हैं। बिदु दारा सिंह हनुमान जी के किरदार के अनुरूप बलिष्ठता के साथ सौम्यता से समाविष्ट नजर आते हैं और दोनों राजकुमारों से इस तरह वन में विचरण करने का कारण जानना चाहते हैं। यद्यपि श्रीराम से हनुमान का यह प्रथम मिलन है, पर उनके बीच वार्तालाप में इतनी आत्मीयता छलकती है, जैसे वे युगों पुराने रिश्ते से बंधे हों। हनुमान जी दोनों राजकुमारों के बारे में सुग्रीव को बताते हैं और इसी के साथ राम-सुग्रीव की मित्रता का प्रसंग निरूपित होता है। राज्य से वंचित और भय से कातर सुग्रीव को देखना अभिनय के किसी अध्याय का अनुशीलन प्रतीत होता है। अगला ²श्य दर्शकों को रोमांच से सराबोर करता है। श्रीराम के बल पर सुग्रीव बालि को युद्ध के लिए ललकारता है, तो बल-विक्रम का पर्याय बनकर सामने आया बालि पूरे वेग और मद से सुग्रीव की ललकार पर आगे बढ़ता है। शुरुआती भिड़ंत अपेक्षा के अनुरूप होती है और पिटा सुग्रीव भागता हुआ श्रीराम के पास आता है। श्रीराम बताते हैं कि युद्ध के दौरान सुग्रीव और बालि में भेद करना कठिन था, दोनों एक जैसे ही नजर आ रहे थे। ऐसे में वे किस पर प्रहार करें, यह तय नहीं कर पा रहे थे और पहचान स्पष्ट करने के ही लिए श्रीराम सुग्रीव को मणियों का हार पहनाते हैं, जो जल्दी ही उसकी विजय सुनिश्चित कराने वाला होता है। सुग्रीव पुन: मैदान में आते हैं और बालि को युद्ध के लिए चुनौती देते हैं। बालि युद्धरत होता है और अगले पल श्रीराम के बाण से घायल हो वह मृत्यु की तैयारी कर रहा होता है। यद्यपि श्रीराम बालि के भी प्रति करुणायुक्त हैं और बालि भी श्रीराम के प्रति सम्मान प्रकट करता है। श्रीराम से तात्विक और आत्मीय संवाद के बीच निष्प्राण होते बालि के साथ दर्शकों की आंखें नम होती हैं। अगले ²श्य में सुग्रीव का राज्याभिषेक हो रहा होता है और अंगद युवराज के रूप में अभिषिक्त हो रहे होते हैं। युवराज की भूमिका में जाने-माने गायक एवं सांसद मनोज तिवारी अपने मंजे अभिनय की अनुभूति कराते हैं। प्रसंग विस्तार के साथ माता सीता की खोज आगे बढ़ती है और वह ²श्य उपस्थित होता है, जब हनुमान जी समुद्र पार कर लंका पहुंचते हैं और माता सीता से भेंट करने के पूर्व लंकिनी एवं विभीषण से भेंट करते हैं। विभीषण की भूमिका में छोटे पर्दे के बड़े अभिनेता राकेश बेदी जान डाल रहे होते हैं। अगला ²श्य अभिनेताओं की परीक्षा लेने वाला होता है और इस परीक्षा में वे कामयाब होते हैं। रावण की भूमिका में शाहबाज खान राजसी ठसक और दंभ से आगे बढ़ता हुआ अशोक वाटिका में शोकाकुल सीता के सम्मुख पहुंचता है और अपना प्रस्ताव स्वीकार करने के लिए सीता पर दबाव बनाता है। रावण के सामने असहाय कितु पतिव्रत धर्म से परिपूर्ण सीता की भूमिका में कविता जोशी पहली नजर में ही आदर की पात्र नजर आती हैं। रावण के लौटते ही सीता के सम्मुख हनुमान जी प्रकट होते हैं। रामदूत के रूप में पूरी विनम्रता से माता सीता को धीरज बंधाते हैं, तो अगले पल वे रौद्र रूप धारण कर रावण की वाटिका को क्षति पहुंचाते हैं तथा रोकने आये रावण के पुत्र अक्षयकुमार का वध करते हैं। अगला ²श्य रावण के दरबार का होता है। राजधर्म की मर्यादा के विपरीत रावण हनुमान जी से दुर्व्यवहार करता है। विभीषण उसे रोकने का प्रयास करते हैं, पर रावण नहीं सुनता और हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का उसका दांव उल्टा पड़ता है, जब पूंछ में लगी आग से हनुमान जी पूरी लंका को आग के हवाले कर देते हैं। कुंभकर्ण की भूमिका से पहले किया रामलला का दर्शन
- दिल्ली के वरिष्ठ भाजपा नेता मुखिया गुर्जर कुंभकर्ण की भूमिका निभाने के लिए गुरुवार को ही रामनगरी पहुंचे। उन्होंने आते ही रामलला का दर्शन किया और बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी पहुंच कर दर्शन-पूजन किया। यूं तो दिल्ली की रामलीला में तीन दशक से कुंभकर्ण की भूमिका निभाते हैं, पर रामनगरी में रामलीला का पात्र बनने को लेकर उनके उत्साह की सीमा नहीं है। उन्होंने निर्देशक प्रवेशकुमार के मार्गदर्शन में रिहर्सल भी किया। मुखिया के पुत्र परविदर रामलीला में शत्रुघ्न की भूमिका कर रहे हैं।