सात सौ रुपये में माह भर गश्त करते हैं दारोगाजी!
फैजाबाद : शासन पुलिस के आधुनिकीकरण पर जोर दे रहा है, लेकिन महकमे में कुछ व्यवस्थाएं
फैजाबाद : शासन पुलिस के आधुनिकीकरण पर जोर दे रहा है, लेकिन महकमे में कुछ व्यवस्थाएं ऐसी हैं, जो अंग्रेजों के शासनकाल से चली आ रही हैं। इनमें एक है पुलिस का परिवहन भत्ता। आजादी के बाद से कई सरकारें बदल गईं मगर परिवहन भत्ते में अपेक्षित सुधार नहीं आ पाया।
पुलिसकर्मियों को मिलने वाले भत्ते पर गौर करें तो आश्चर्य होता है। फील्ड में सिपाही भले ही बाइक से गश्त करते दिखते हों, लेकिन कागज में ये साइकिल से दौड़ रहे हैं। सिपाहियों को सौ रुपये साइकिल भत्ता दिया जाता है, जबकि एक दारोगा को पहले 350 रुपये प्रतिमाह बाइक चलाने के लिए मिलता था, जो अब सात सौ रुपये कर दिया गया है। इसी तरह सिपाही का साइकिल भत्ता 50 रुपये से बढ़ाकर सौ रुपये कर दिया गया। पिछले कई वर्षों से दारोगा व सिपाही को यही भत्ता मिल रहा है। कागजों में सिपाही साइकिल से जरूर ड्यूटी कर रहे हों लेकिन यह सच्चाई है कि अब कोई सिपाही साइकिल पर दिखाई नहीं देता। यह बात अलग है कि उसमें पेट्रोल उनके खुद के पैसे का पड़ता है या फिर..।
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पुलिसकर्मी का दर्द
फैजाबाद : एक सिपाही की माने तो एक महीने की गश्त में करीब दो से ढाई हजार रुपये का पेट्रोल लग जाता है। विभाग की ओर से महज सौ रुपया प्रतिमाह साइकिल भत्ता दिया जाता है। थाने में बीट कांस्टेबल की डयूटी देने वाले कर्मियों की मजबूरी है कि उन्हें अपने इलाके में घूमना है। वरिष्ठ नागरिकों से मुलाकात हो या किराएदार सत्यापन। इसके लिए उनको 30 से 40 किलोमीटर प्रतिदिन इधर से उधर घूमना पड़ता है। इसमें कॉल आने पर थाने एवं बीट में आना-जाना भी शामिल है। एक बीट कांस्टेबल की मानें तो अपनी जेब से कोई भला कैसे छह से आठ हजार रुपये पेट्रोल व मोटरसाइकिल की मेंटीनेंस में खर्च कर सकता है? जिले में 333 दारोगा व 1691 आरक्षी नागरिक पुलिस तैनात हैं, जिन्हें परिवहन भत्ता मिल रहा है।
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भत्ते का निर्धारण शासनस्तर से होता है। सरकार हमेशा पुलिस कर्मियों के प्रति संवेदनशील रही है। सरकार ने पुलि¨सग में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए भी हैं। -संजय कुमार, एसपी ग्रामीण