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मंदिर के लिए सिहोर से अयोध्या पहुंची रथयात्रा

अयोध्या : महाराणा प्रताप युवा संगठन के अध्यक्ष ज्ञान ¨सह बाघेला के नेतृत्व में 19 सितंबर को राज

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 12:16 AM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 12:16 AM (IST)
मंदिर के लिए सिहोर से अयोध्या पहुंची रथयात्रा
मंदिर के लिए सिहोर से अयोध्या पहुंची रथयात्रा

अयोध्या : महाराणा प्रताप युवा संगठन के अध्यक्ष ज्ञान ¨सह बाघेला के नेतृत्व में 19 सितंबर को राजस्थान के सिहोर स्थित ¨चतामणि गणेश मंदिर से निकली रथयात्रा शनिवार को प्रात: रामनगरी पहुंची। बाघेला सहित रथयात्रा में शामिल लखन ¨सह राजपूत, भूपेंद्र ¨सह राजपूत, अनार ¨सह रघुवंशी आदि ने सबसे पहले सरयू तट पर स्थित मंदिर आंदोलन के शलाका पुरुष रामचंद्रदास परमहंस की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

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इस दौरान मीडिया से मुखातिब बाघेला ने कहा, सरकार को राममंदिर के लिए जनादेश मिला था पर वह इस जनादेश की अवहेलना कर रही है। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री ने जिस तरह जीएसटी एवं एससी-एसटी एक्ट के लिए प्रतिबद्धता का परिचय दिया, उसी तरह वे राम मंदिर के लिए प्रतिबद्धता का परिचय दें, अन्यथा उन्हें मंदिर की उपेक्षा की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। परमहंस के शिष्य एवं समाधि की देख-रेख करने वाले आचार्य नारायण मिश्र ने बाघेला एवं उनके साथियों का स्वागत किया तथा कहा, जिन मुद्दों को लेकर महाराणा प्रताप युवा संगठन ने रथ निकाला है, वे सर्वथा न्यायसंगत हैं। मिश्र ने जहां राममंदिर के लिए मोदी सरकार से प्रतिबद्धता की अपेक्षा जताई, वहीं एससी-एसटी एक्ट पर उनकी नाराजगी सामने आई। कहा, यदि सरकार यह समझती है कि सवर्णों से समस्या है, तो उन्हें देश से अलग कर दिया जाय। रथयात्रा सरयू तट से दशरथगद्दी होती हुई रामजन्मभूमि की ओर बढ़ी। दशरथगद्दी में महंत बृजमोहनदास ने यात्रा का स्वागत किया और कहा, देश की आन-बान के लिए राममंदिर जरूरी है और सरकार इस सच्चाई को जितनी जल्दी समझे, उतना ही अच्छा है।

महाराणा प्रताप युवा संगठन के प्रतिनिधियों ने संतों के साथ रामलला का दर्शन करने से पूर्व रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्रदास को छह सूत्रीय मांग-पत्र सौंपा। मांग-पत्र में राममंदिर निर्माण अति शीघ्र होने, गोहत्या पर फांसी की सजा देने, आरक्षण मुक्त भारत के निर्माण, एक देश-एक कानून एवं एससी-एसटी एक्ट के मौजूदा स्वरूप में संशोधन शामिल है। रथयात्रा को आचार्य परमेश्वरदास शास्त्री, संत वरुणदास आदि का भी समर्थन मिला।


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