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मंदिर आंदोलन की व्यापकता की गवाह हैं रामशिलाएं

अयोध्या : आज जब मंदिर निर्माण की प्रतीक्षा में दिन गिना जा रहा है, तब मंदिर आंदोलन की नींव बनी

By JagranEdited By: Published: Sun, 28 Oct 2018 06:08 AM (IST)Updated: Sun, 28 Oct 2018 06:08 AM (IST)
मंदिर आंदोलन की व्यापकता की गवाह हैं रामशिलाएं
मंदिर आंदोलन की व्यापकता की गवाह हैं रामशिलाएं

अयोध्या : आज जब मंदिर निर्माण की प्रतीक्षा में दिन गिना जा रहा है, तब मंदिर आंदोलन की नींव बनीं रामशिलाओं की ओर गौर करना मौजूं है। रामघाट स्थित रामजन्मभूमि न्यास कार्यशाला के एक कोने में सहेजकर रखी गई रामशिलाएं मंदिर आंदोलन की व्यापकता की साक्षी हैं। उन दिनों मंदिर आंदोलन प्रारंभिक दौर में था। जब मंदिर आंदोलन को प्रभावी बनाने के लिए विहिप नेतृत्व ने संतों के सहयोग से 1987 से 89 के बीच देश के गांव-गांव में रामशिलाओं का पूजन कराया। ग्राम्य स्तर पर धार्मिक समारोह और मंदिर निर्माण के संकल्प से सज्जित शिलापूजन मंदिर आंदोलन में उभार और व्यापकता का गवाह बना।

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शिलापूजन का कार्यक्रम 55 अन्य देशों में चला। किसी पर इंग्लिश में, किसी पर डच, बांग्ला और नेपाली लिपि में अंकित राम नाम की लिपि से यह सच्चाई सहज बयां होती है। शिलापूजन के साथ मंदिर निर्माण के लिए पौने तीन लाख से अधिक ईंटें एकत्रित हुई। इनमें से दो लाख के करीब ईंटें अब भी मंदिर निर्माण की धरोहर के रूप में सहेजकर रखी गई हैं। बाकी ईंटें मंदिर निर्माण के काम आ सकी हैं। कुछ ईंटे तो शिलापूजन की मुहिम के तत्काल बाद 1989 में मंदिर निर्माण के लिए हुए शिलान्यास में प्रयुक्त हुईं। 1992 में विवादित स्थल के करीब समतलीकरण के बाद निर्मित चबूतरे में भी 50 हजार से अधिक पूजित शिलाएं प्रयुक्त हुईं। बाकी शिलाएं विहिप के प्रबंधन में पूरे यत्न से सहेजी जा रही हैं। प्रारंभिक दशक में इन शिलाओं को अधिग्रहीत परिसर से ही लगे फकीरेराम मंदिर में रखी गई थीं। डेढ़ दशक पूर्व इन शिलाओं को रामजन्मभूमि न्यास कार्यशाला में करीने से सज्जित किया गया। न्यास कार्यशाला में मंदिर के लिए तराशे गए पत्थरों का दर्शन करने आने वाले रामभक्त पहले पूजित शिलाओं का अंबार देखकर आश्चर्य में पड़ते हैं, फिर सच्चाई जानकर वे मंदिर आंदोलन की व्यापकता से अवगत होते हैं।

----------------------शिलाओं के साथ मिला अपार समर्थन

- देश के लाखों गांवों में करोड़ों लोगों ने शिलाएं पूजित करने के साथ कम से कम सवा रुपये का सहयोग देकर मंदिर निर्माण का संकल्प लिया। यही वह दौर था, जिसने मंदिर के प्रति अपार समर्थन की ऊर्जा का संचार किया। 30 अक्टूबर एवं दो नवंबर 1990 की कारसेवा और छह दिसंबर 1992 का ज्वार शिलापूजन के दौरान मंदिर के प्रति व्याप्त अपार समर्थन की हाहाकारी अभिव्यक्ति थी।

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युगों तक सहेजने की आस्था

-विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा के अनुसार पूजित शिलाएं मंदिर आंदोलन की धरोहर हैं और इनका उपयोग प्रतीकात्मक तौर पर मंदिर की नींव में किए जाने के साथ धरोहर के रूप में युगों तक सहेजकर रखे जाने के रूप में होगा। ताकि आने वाली पीढि़या मंदिर के लिए किए जाने वाले महती प्रयास और अपूर्व जनसमर्थन से परिचित हो सकें।


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