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रामनगरी के पौराणिक कुंडों को मुख्यमंत्री से आस

अयोध्या : प्राकृतिक जलस्त्रोत के रूप में कुंडों-तालाबों को संरक्षित किए जाने संबंधी मुख्यमंत्री योग

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 11:29 PM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 11:29 PM (IST)
रामनगरी के पौराणिक कुंडों को मुख्यमंत्री से आस
रामनगरी के पौराणिक कुंडों को मुख्यमंत्री से आस

अयोध्या : प्राकृतिक जलस्त्रोत के रूप में कुंडों-तालाबों को संरक्षित किए जाने संबंधी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घोषणा रामनगरी के वजूद खोते पौराणिक कुंडों के लिए आक्सीजन साबित हो रही है। सन 1902 में एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा की ओर से नगरी के पौराणिक स्थलों की पहचान सुनिश्चित करते हुए 148 शिलापट लगवाए गए थे और इनमें से चार दर्जन कुंड थे, जो महज जलस्त्रोत ही नहीं पौराणिक कथाओं के संवाहक भी थे। भरतकुंड, दशरथकुंड, सूर्यकुंड, लक्ष्मीसागर, दंतधावनकुंड, वशिष्ठकुंड, विभीषणकुंड, विद्याकुंड, सीताकुंड, स्वर्णखनिकुंड, हनुमानकुंड, अग्निकुंड आदि गिनती के कुंड अपवाद हैं। न केवल उनका अस्तित्व सलामत है बल्कि शासन की ओर से यदा-कदा उनके सुंदरीकरण का भी प्रयास होता रहा है। अधिकांश कुंड नाम-मात्र तक सिमट कर रह गए हैं। मिसाल के तौर पर उर्वशी कुंड है।

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उर्वशीकुंड का शिलापट आज भी साकेत महाविद्यालय के सामने के नाले में बदहाली की चुगली करता है और शिलापट के बगल जिस स्थल पर कुंड होना चाहिए था, वहां साकेत महाविद्यालय का भवन खड़ा है। रुक्मिणीकुंड, सागरकुंड, सुग्रीवकुंड, खजुहाकुंड, गणेशकुंड, कौसल्याकुंड, सुमित्राकुंड, शक्रकुंड, दुर्भसरकुंड, महाभरसरकुंड, वृहस्पतिकुंड, धनयक्षकुंड, वैतरणीकुंड, नरकुंड, नारायणकुंड, रतिकुंड, कुसुमायुधकुंड, निर्मलीकुंड, योगिनीकुंड, भैरवकुंड, सप्तसागर, क्षीरसागर आदि में से अनेक का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। या वे उपेक्षा और अतिक्रमण के चलते अंतिम श्वांस गिन रहे हैं। कुंडों को बचाने की मुहिम से जुड़े अयोध्या प्रकाशिका समिति के अध्यक्ष आचार्य रामदेवदास शास्त्री कहते हैं, कुंडों को बचाया जाना कठिन होता जा रहा है पर यदि सरकार संकल्पित हो तो पौराणिक कुंडों को बचाना असंभव भी नहीं है।

संत चला रहे हैं कुंडों के संरक्षण की मुहिम

- एडवर्ड तीर्थ विवेचनी सभा के अध्यक्ष राजकुमारदास, महासचिव महंत रामदास, आंजनेय सेवा संस्थान के अध्यक्ष महंत शशिकांतदास, डांड़िया मंदिर के महंत गिरीशदास आदि श्रमदान के माध्यम से कुंडों के संरक्षण का प्रयास करते रहे हैं। विभिन्न वर्गों के साथ श्रमदान से भरतकुंड, सीताकुंड, खजुहाकुंड आदि की सेहत सुधारने का प्रयास करने वाले महंत रामदास कहते हैं, कुंडों से रामनगरी का गौरव प्रतिपादित है और पौराणिक विरासत से न्याय करने के लिए उन्हें बचाना होगा।


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