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रघुकुल का जलता दीप बुझा अब आरता बार कर लायी है

श्रीराम यदि मानवता के महान प्रेरक हैं तो उनकी लीला

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 11:57 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 05:10 AM (IST)
रघुकुल का जलता दीप बुझा अब आरता बार कर लायी है
रघुकुल का जलता दीप बुझा अब आरता बार कर लायी है

अयोध्या : श्रीराम यदि मानवता के महान प्रेरक हैं, तो उनकी लीला नाट्य की दृष्टि से बेजोड़ है। उसमें विभिन्न भावों और रसों का सम्यक एवं मनोहारी समावेश है तथा प्रसंग विस्तार के साथ रोमांच से भरे निर्णायक मोड़ हैं और यदि इस लीला को जीवंत करने वाले मंजे कलाकार हों, तो कहना ही क्या। यह सच्चाई पुण्य सलिला सरयू के तट पर स्थित शीर्ष पीठ लक्ष्मणकिला के परिसर में आयोजित सितारों से सज्जित रामलीला में परिभाषित हो रही होती है।

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पारंपरिक गणेश वंदना का गीत-संगीत थमते ही मंच पर जनकपुर का दृश्य उपस्थित होता है। माता सीता चारों बहनों सहित विदा हो रही होती हैं। जनक सहित संपूर्ण जनकपुर बेटियों की विदायी से कातर हो रहा है। पा‌र्श्व में बाजार फिल्म का यह मार्मिक गीत बज रहा होता है, काहे को ब्याही विदेश/ अरे लखि बाबुल मोरे..। इसी के साथ मौके पर मौजूद दर्शकों की आंखें नम होती हैं और संभवत: उन सबकी भी आंखें नम होती हैं, जो रामलीला का लाइव प्रसारण देख रहे होते हैं। अगले दृश्य में बेटियों की विदायी से आहत जनकपुर के वियोग के विपरीत अवध का उल्लास बयां हो रहा होता है। रामकथा के इस वर्णन के ठीक अनुरूप, भूपति भवन कोलाहलु होई/ जाइ न बरनि समउ सुख सोई। राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के साथ जनकपुर से विदा होकर आईं माता सीता, मांडवी, उर्मिला और श्रुतिकीर्ति के स्वागत में मंच त्रेता के उस युग की याद दिला रहा होता है, जब यह घटनाएं अपने वास्तवित स्वरूप में घट रही होंगी।

श्रीराम की भूमिका में सोनू डागर, भरत की भूमिका में सांसद एवं भोजपुरी फिल्मों के स्टार रविकिशन, लक्ष्मण की भूमिका में लवकेश धालीवाल तथा शत्रुघ्न की भूमिका में परविदर गुर्जर पूरी लय और सहज प्रवाह में नजर आते हैं। अगले दृश्य में राजा दशरथ मंत्रणा कक्ष में गुरु वशिष्ठ और मंत्री सुमंत के साथ मंत्रणा करते हैं और अपनी बढ़ती उम्र का वास्ता देकर श्रीराम के राज्याभिषेक का निर्णय करते हैं। राम के राजतिलक की घोषणा से अवध में उत्सव का शिखर प्रवाहित होता है। मंथरा को यह बर्दाश्त नहीं होता और वह केकई को भांति-भांति से राम के राज्याभिषेक का विरोध के लिए भड़काती है। अंतत: वह केकई को भड़काने में कामयाब होती है और राम राज्याभिषेक के विरोध स्वरूप केकई कोपभवन की ओर प्रस्थान करती हैं। केकई की चुनौतीपूर्ण भूमिका से अभिनेत्री ऋतु शिवपुरी पूरा न्याय करती प्रतीत होती हैं, तो कोपभवन में केकई की मनुहार करते हताश और किकर्तव्य विमूढ़ दशरथ की भूमिका में प्रवेश कुमार जान डाल रहे होते हैं और केकई की शर्त पूरी करते-करते पूरी जीवंतता से अपनी जान गंवाते हैं।

अवध में अगले पल अपूर्व मातम पसरा होता है। पिता के आदेश के अनुसार श्रीराम भ्राता लक्ष्मण एवं सीता के साथ अवध को आकुल-व्याकुल छोड़ वन के लिए प्रस्थान करते हैं, उधर अपशकुन की आहट पा भरत और शत्रुघ्न नाना के यहां से अयोध्या पहुंचते हैं। अवध की दशा देख और घटनाओं से अवगत हो उनके क्षोभ का ठिकाना नहीं होता। भरत अपने स्वभाव के अनुरूप सारा दुख शिव के विषपान की भांति पी रहे होते हैं, पर अनुज शत्रुघ्न स्वयं को रोक नहीं पाते और अपने स्वागत में आरती की थाल लेकर आगे आयी मंथरा पर पहले इन पंक्तियों से प्रहार करते हैं, चल निकल यहां से जनमजली/ क्यों हमें जलाने आयी है/ रघुकुल का जलता दीप बुझा/ अब आरता बार कर लायी है। इसी के साथ ही शत्रुघ्न का पारा सातवें आसमान पर पहुंचता है और वे बिजली की तरह आगे बढ़कर मंथरा को धक्का देते हैं। भारतीय परंपरा में स्त्री पर प्रहार स्वीकृत नहीं रहा है, पर मंथरा के साथ शत्रुघ्न का व्यवहार इसका अपवाद होता है। शत्रुघ्न की भूमिका में परविदर गुर्जर जिस त्वरा से इस पटकथा का पालन करते हैं, वह राम वनवास से अवध ही नहीं सामने मौजूद दर्शकों के आहत मन को एक पल के लिए हौसला देता है। ---------------------इनसेट------------

पुत्र शत्रुघ्न तो पिता कुंभकर्ण की भूमिका में

मंगलवार को शत्रुघ्न की भूमिका में जान डालने वाले परविदर गुर्जर के पिता मुखिया गुर्जर बुधवार को कुंभकर्ण की भूमिका में जान डालेंगे। मूलत: मेरठ के रहने वाले मुखिया लंबे समय से दिल्ली में रहते हैं। वे कई स्कूल संचालित करते हैं, पर रामलीला के प्रति अनुराग उनका जुनून है। तीन दशक पूर्व दिल्ली की कृष्णानगर की रामलीला में कुंभकर्ण का अभिनय करने वाले मुखिया आज इस भूमिका के पर्याय हैं। मात्र 26 वर्ष की उम्र में भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले मुखिया पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली के स्थापित भाजपा नेताओं में शुमार हैं। उनके दूसरे पुत्र कुलविदर सिंह मात्र 25 साल की उम्र में मेरठ के जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गये हैं। रामलीला के साथ भाजपा की राजनीति ही नहीं रहन-सहन की शुचिता भी इस परिवार को विरासत में मिली। मुखिया बताते हैं, हमारा भाइयों सहित संयुक्त परिवार है, पर मांस-मदिरा परिवार में पूरी तरह निषिद्ध है।


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