स्वरूपानंद का शिलान्यास राग नया नहीं
ध्या में लाखों कारसेवक लाने में कामयाब हुई और दर्जन भर से अधिक कारसेवकों की बलि देकर विवादित इमारत के शिखर पर भगवा पताका फहराया गया। उधर, स्वरूपानंद मंदिर मुद्दे पर अपनी भूमिका तलाशते रह गए। उन्हें तब मौका मिला, जब विहिप नेतृत्व छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा के ध्वंस का जश्न मनाने लगी। ध्वंस के बाद निर्माण का दावा लेकर पेश हुए स्वरूपानंद ने कहा कि मंदिर निर्माण विहिप की ओर से प्रायोजित रा
अयोध्या : 21 फरवरी को राममंदिर के शिलान्यास की घोषणा करने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद का शिलान्यास राग नया नहीं है। उन्होंने सात मई 1990 को भी शिलान्यास का एलान किया था और शंकराचार्य अपने कुछ शिष्यों के साथ अयोध्या की ओर कूच भी कर गए थे पर पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले चुनार के किले में नजरबंद कर दिया था। स्वरूपानंद उस वक्त मंदिर आंदोलन को चरम की ओर ले जाने का प्रयास कर रही विहिप को चुनौती देना चाहते थे। विहिप 30 अक्टूबर 1989 को ही मंदिर का शिलान्यास करा चुकी थी और मंदिर आंदोलन तत्कालीन प्रदेश एवं केंद्र सरकार के लिए चुनौती बनता जा रहा था। एक ओर शंकराचार्य नजरबंदी के बाद स्वयं को नए सिरे से सहेजने में लगे, दूसरी ओर विहिप मंदिर आंदोलन को निरंतर प्रभावी बनाने में लगी थी। 30 अक्टूबर और दो नवंबर 1990 की कारसेवा रोकने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम ¨सह यादव ने कहा था कि अयोध्या में प¨रदा भी पर नहीं मार सकता और इस घोषणा पर अमल के लिए अयोध्या में ऐतिहासिक किलेबंदी की गई। इसके बावजूद विहिप अयोध्या में लाखों कारसेवक लाने में कामयाब हुई और पुलिस बल की गोलीबारी के बावजूद विवादित इमारत के शिखर पर भगवा पताका फहराया गया। उधर, स्वरूपानंद मंदिर मुद्दे पर अपनी भूमिका तलाशते रह गए। उन्हें तब मौका मिला, जब विहिप नेतृत्व छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा के ध्वंस का जश्न मनाने लगा। ध्वंस के बाद निर्माण का दावा लेकर पेश हुए स्वरूपानंद ने कहा कि मंदिर निर्माण विहिप की ओर से प्रायोजित रामजन्मभूमि न्यास की बजाय उनके संरक्षण वाला रामालय ट्रस्ट करेगा। वे एक दशक पूर्व भी रामनगरी में नमूदार हुए और रामकोट की परिक्रमा भी की पर शिलान्यास की दावेदारी स्थगित रखी।
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ताकत और प्रासंगिकता का एहसास कराने की चाहत
- साकेत महाविद्यालय में मनोविज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुधीर राय के अनुसार स्वामी स्वरूपानंद की सक्रियता कुछ खास किस्म के लोगों में रहने वाली महत्वाकांक्षा की प्रवृत्ति है। यह सभी को बखूबी ज्ञात है कि मंदिर आंदोलन विहिप की देन है, इसके बावजूद वे अलग राग अलाप कर अपनी ताकत और प्रासंगिकता का एहसास कराना चाहते हैं।