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Ram Mandir Ayodhya Update: दशकों पूर्व देश की राजनीतिक तस्वीर बदल चुके हैं रामलला

Ram Mandir Ayodhya Update राममंदिर निर्माण की बेला में पुख्ता हो रहा रामलला से स्फूर्त राजनीतिक-वैचारिक भरोसा। पांच अगस्त को प्रधानमंत्री रखेंगे राम मंदिर निर्माण की आधारशिला।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Tue, 28 Jul 2020 01:15 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2020 01:15 PM (IST)
Ram Mandir Ayodhya Update: दशकों पूर्व देश की राजनीतिक तस्वीर बदल चुके हैं रामलला
Ram Mandir Ayodhya Update: दशकों पूर्व देश की राजनीतिक तस्वीर बदल चुके हैं रामलला

अयोध्या [रघुवरशरण]। Ram Mandir Ayodhya Update: रामलला की स्वयं की तस्वीर भले आज बदलने को है, पर वे दशकों पूर्व देश की तस्वीर बदल चुके हैं। इस बदलाव का आगाज मंदिर आंदोलन में उभार के साथ हुआ। 1984 में दो सीटों तक सिमट कर रह गयी भाजपा को मंदिर आंदोलन शिरोधार्य करने का पुरस्कार मिला। 1989 के लोस चुनाव में भाजपा शानदार और कुछ हद तक चौंकाऊ प्रदर्शन करती हुई 89 सीटों तक जा पहुंची। इसके बाद मंदिर आंदोलन का शिखर परिभाषित हुआ। 

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वह 30 अक्टूबर एवं दो नवंबर 1990 की तारीख थी, जब मंदिर की कारसेवा के लिए अयोध्या पहुंचे लाखों कारसेवकों को रोकने के लिए पुलिस ने गोली चलायी और इसमें डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों को प्राण गंवाने पड़े। इससे पूर्व भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 25 मार्च 1990 को राममंदिर के साथ राष्ट्रमंदिर के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए गुजरात के ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर से रथयात्रा निकाली। कारसेवा की तय तारीख से एक सप्ताह पूर्व समस्तीपुर में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव ने आडवाणी को गिरफ्तार कर रथयात्रा भले रोक दी, पर तब तक वे हजार से अधिक किलोमीटर का सफर तय कर देश के बड़े हिस्से को मथ चुके थे। 

इसी यात्रा से उपजी प्रेरणा का परिणाम था कि केंद्र की तत्कालीन वीपी सिंह सरकार और उत्तरप्रदेश की मुलायम सिंह सरकार सहित कई प्रदेश सरकारों के कड़े प्रतिबंध के बावजूद लाखों कारसेवक अयोध्या आने में कामयाब रहे। 1991 में जब चुनाव की बेला आयी, तो राममंदिर की चाहत के साथ कारसेवकों के बलिदान का प्रतिकार बैलेट बॉक्स तक जा पहुंचा। इस चुनाव में भाजपा के लोकसभा सदस्यों की संख्या सवा सौ के इर्द-गिर्द तक पहुंची और उत्तर प्रदेश सहित हिमांचल, मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में भगवा ब्रांड की पार्टी सत्ता में आ गयी। इसी बदलाव में मंदिर आंदोलन से उपजे कई किरदार राजनीति के केंद्र में आये। आडवााणी तो शीर्ष पर चमक ही रहे थे। कल्याण सिंह, विनय कटियार, उमाभारती, चिन्मयानंद, बृजभूषणशरण सिंह जैसे लोग सामने आये। 

मजे की संख्या में भगवाधारी भी भाजपा के टिकट पर लोकसभा में पहुंचे। छह दिसंबर 1992 को ढांचा ढहाये जाने के बाद भाजपा को चार प्रांतों में सरकार गंवानी पड़ी। इसके बाद 1993 के चुनाव में गठबंधन करने वाली सपा-बसपा की जुगलबंदी के बावजूद भाजपा ने कड़ी टक्कर दी। 1995 तक कांग्रेस केंद्र की सत्ता में जरूर थी, पर रामलला की पैरोकारी करने वाली भाजपा बराबर विरोधियों को हाशिये पर ढकेल रही थी। 1996 में 13 दिन की, 1998 में 13 महीना की और 1999 में पूरे पांच साल की सरकार चलाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने साबित कर दिया था कि भाजपा को अछूत और सांप्रदायिक कहने तथा सांप्रदायिक तुष्टीकरण की सियासत करने वाली पार्टियां स्वयं अछूत हो जाएंगी। इसके बाद भले दो बार कांग्रेस की सरकार बनी, पर भाजपा सदैव प्रखर प्रतिद्वंदी के तौर पर सामने रही। 

2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही दो बार से राष्ट्रमंदिर के एजेंडे पर सत्ता में आये, पर राममंदिर की ओर ध्यान देने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। राममंदिर के लिए भूमिपूजन करने आ रहे प्रधानमंत्री पांच अगस्त को इतिहास का पुनर्निर्माण करने के साथ उस तस्वीर को पुख्ता कर रहे होंगे, जिस दिशा में बदलाव रामलला की प्रेरणा से स्फूर्त हुआ था।


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