उनके सूत्र से संभव है राममंदिर निर्माण : पुरुषोत्तमाचार्य
समारोह की अध्यक्षता करते हुए जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने साधना-साहित्य के फलक पर उनके अवदान को अप्रतिम बताया और याद दिलाया कि पूर्व मध्यकाल में जब सुप्रसिद्ध रंगनाथ मंदिर पर विधर्मियों के चलते संकट के बादल छाए तब आचार्य
अयोध्या : सुग्रीवकिला में रामानुज परंपरा के दिग्गज आचार्य वेदांतदेशिक की 751वीं जयंती श्रद्धापूर्वक मनाई गई। समारोह की अध्यक्षता करते हुए जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने साधना-साहित्य के फलक पर उनके अवदान को अप्रतिम बताया और याद दिलाया कि पूर्व मध्यकाल में जब सुप्रसिद्ध रंगनाथ मंदिर पर विधर्मियों के चलते संकट के बादल छाए, तब आचार्य वेदांतदेशिक ने आध्यात्मिक ऊर्जा से ओत-प्रोत अभिस्तव नामक ग्रंथ की रचना की। इस रचना के प्रभाव से रंगनाथ मंदिर पर छाए संकट के बादल छंट गए।
स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने कहा, वेदांतदेशिक की आध्यात्मिक ऊर्जा एवं उपासना-परंपरा के अनुवर्तन से रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का मार्ग भी प्रशस्त किया जा सकता है। इससे पूर्व जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य ने आचार्य वेदांतदेशिक की कृति 'पादुका-सहस्स्त्रनाम' का जिक्र किया। कहा, आचार्य का दास्य भाव अत्यंत प्रेरक है। मर्मज्ञ कथाव्यास आचार्य रत्नेश ने बताया कि वेदांतदेशिक को भगवान का घंटावतार माना जाता है। इस मान्यता से स्पष्ट है कि भगवान के साथ उनकी घंटियां भी मानवता का उद्धार करती रही हैं। वे हाल ही में पाकिस्तानी रेलमंत्री की उस गीदड़भभकी के प्रबल प्रतिकार जैसे हैं, जिसमें पाकिस्तानी मंत्री ने कहा था कि भारत के मंदिरों में घंटियां नहीं बज सकेंगी। आचार्य रत्नेश ने कहा, ऐसे लोगों को यह जान लेना चाहिए कि भारत की घंटियां भी इतनी चिन्मय-चैतन्य हैं कि उन पर कु²ष्टि डालने वालों का हश्र पाकिस्तान जैसा ही होगा। हनुमानगढ़ी से जुड़े महंत कृष्णकुमारदास ने कहा, वेदांतदेशिक के माध्यम से उत्तर-दक्षिण का समंवय गौरवपूर्ण है। गोष्ठी का संचालन जगदगुरु रामानुजाचार्य डॉ. राघवाचार्य ने किया। इस मौके पर महंत हरिसिद्धशरण, महंत ऊद्धौशरण सहित कांची पीठ से आए श्रीनिवास, मुकुंदन, सुंदरवर्धन आदि संतों ने विचार रखे। ----------------इनसेट----------
भक्ति के शीर्ष आचार्य
- वेदांतदेशिक को रामानंदाचार्य के बाद भक्ति का शीर्ष आचार्य माना जाता है। उन्होंने शताधिक ग्रंथों की रचना की।