निरूपित किया जा रहा भगवान राम का वैशिष्ट्य
अयोध्या : राम जन्मोत्सव की तिथि निकट आने के साथ ही रामनगरी की उत्सवधर्मिता चरम की ओर है।
अयोध्या : राम जन्मोत्सव की तिथि निकट आने के साथ ही रामनगरी की उत्सवधर्मिता चरम की ओर है। जगह-जगह रामकथा के माध्यम से भगवान राम के वैशिष्ट्य का निरूपण किया जा रहा है। ¨हदूधाम में संचालित रामकथा का क्रम आगे बढ़ाते हुए वशिष्ठ पीठाधीश्वर डॉ. रामविलासदास वेदांती ने बताया, सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाने के बाद भगवान राम प्रवर्षण गिरि पर आध्यात्मिक साधना के लिए लक्ष्मण के साथ निवास करने लगे। यहां प्रवास के दौरान श्रीराम ने लक्ष्मण को भक्ति, विरक्ति और राजनीति की जो शिक्षा दी, वह चु¨नदा सांस्कृतिक धरोहर से कम नहीं है। भगवान राम ने लक्ष्मण को बताया, आकाश में जो दामिनी चमक रही है, वह स्थिर नहीं है। मेघों से जल की वर्षा को देखते हुए राम ने कहते हैं, वर्षा का ये जल नदियों के माध्यम से जैसे समुद्र में जाकर स्थिर हो जाता है वैसे ही यह जीवात्मा परमात्मा से मिलकर अचल हो जाता है।
कोशलेशसदन के सभागार रामानुजीयम में नौ दिवसीय रामकथा के अंतर्गत बुधवार को जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य विद्याभास्कर ने भगवान राम और उनके प्रिय अनुज भरत के दिव्य प्रेम का समीकरण परिभाषित किया। जगद्गुरु ने समुद्र मंथन के प्रसंग की याद दिलाते हुए कहा, अमृत के पूर्व विष पैदा होने की परंपरा बहुत पुरानी है और इस अग्नि परीक्षा से राम एवं भरत का प्रेम भी गुजरा। राम और भरत के बीच का प्रेमामृत पैदा होने से पूर्व वियोग का विष पैदा हुआ, जिसे भरत ने पूरे धैर्य और ²ढ़ता से पान किया। जगद्गुरु ने कहा, राम के वियोग रूपी मथानी से भरत ने समुद्र रूपी हृदय का मंथन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भरत की यह तपस्या भगवान राम को मनाने चित्रकूट जाते समय ¨कचित बयां भी होती है, जब भरत कहते हैं कि हमें धर्म, अर्थ, काम या मोक्ष नहीं जन्म-जन्म राम के कदमों में अनुराग चाहिए। उन्होंने कहा, भरत से सीख लें और भीषण कठिनाई में भी परम प्यारे से अनुराग की लौ मद्धिम न पड़ने दें।
अशर्फीभवन के माधव सभागार में कथाव्यास ने जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य ने बुधवार को कथा का प्रारंभ महर्षि विश्वामित्र के अयोध्या आगमन से किया। महाराज दशरथसभा में अपने चारो पुत्रों के लिए श्रेष्ठ वधुओं की खोज के लिए चर्चा कर रहे थे, उसी समय विश्व के मित्र महर्षि विश्वामित्र राज भवन में उपस्थित होते हैं। दशरथ ¨सहासन से उठकर ऋषि चरणों में प्रणिपात करते हैं। विश्वामित्र ने भगवान राम एवं लखन को वन ले जाने के लिए दशरथ से याचना की पर दशरथ इसके लिए तैयार नहीं होते और स्वयं यज्ञ की रक्षा के लिए वन जाने का प्रस्ताव दिया। कुल गुरु वशिष्ठ के समझाने पर दशरथ राम एवं लखन को विश्वामित्र के साथ वन में भेज देते हैं। रामवल्लभाकुंज में प्रख्यात रामकथा मर्मज्ञ संत प्रेमभूषण भी रामकथा रस की वर्षा कर रहे हैं।
कथा क्रम में सटीक ²ष्टांतों के साथ कर्णप्रिय भजन से वे समां बांध रहे हैं। आचार्य दशरथमहल बड़ास्थान में ¨बदुगाद्याचार्य स्वमाी देवेंद्रप्रसादाचार्य के कृपापात्र युवा कथाव्यास रामशंकरदास ने भगवान के वन गमन का विवेचन किया और कहा, जीवन तत्वत: अरण्य की तरह है और अरण्य से गुजरे बिना जीवन का सार नहीं जाना जा सकता। यह सही है कि जीवन रूपी अरण्य का अनुभव हासिल करने में कई जन्म लग सकते हैं पर भगवान राम के वनगमन का प्रसंग जी लेने से जीवन के सार से परिचित होने के साथ जन्म-जन्मांतर की यात्रा से मुक्त हो परम विश्राम को उपलब्ध हुआ जा सकता है।
लक्ष्मी-नारायण का अभिषेक आज
-अशर्फीभवन में विराजमान भगवान लक्ष्मीनारायण का गुरुवार को 73वां वार्षिकोत्सव मनाया जाएगा। प्रात: आठ बजे से भगवान का पंचरात्र आगम पद्धति से दाक्षिणात्य विद्वानों महाभिषेक करेंगे। मध्याह्न 12:00 बजे भगवान लक्ष्मी नारायण का दिव्य श्रृंगार, दर्शन व आरती की जाएगी।
स्वामी भरत व्यास का प्रवचन 26 से: श्री साकेतधाम चैरिटेबल ट्रस्ट के संयोजन में रामवल्लभाकुंज के रामार्चन मंडपम में 26 मार्च से चार अप्रौल तक रामकथा ज्ञानयज्ञ प्रस्तावित है। कथाव्यास स्वामी भरत व्यास होंगे। रामकथा सहित अन्य शास्त्रों के क्रांतिकारी व्याख्याता माने बिल भरत व्यास के प्रवचन को लेकर संतों एवं श्रद्धालुओं में उत्साह है। रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास के संरक्षण में प्रस्तावित कार्यक्रम के आयोजन समिति से महामंडलेश्वर गिरीशदास, रघुवंश संकल्प सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष दिलीपदास त्यागी, महंत मनीषदास आदि प्रमुख तौर पर जुड़े हैं। बुधवार को डांडिया मंदिर में आयोजन समिति से जुड़े लोगों ने स्वामी भरत व्यास के साथ समीक्षा बैठक की।