पांच अगस्त.. विरासत के कैनवास पर सबसे सुंदर तस्वीर
भक्ति में डूबे भक्तों की आंखों को सजल करने वाला रहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साष्टांग दंडवत करना.
अयोध्या : यह विरासत के कैनवस पर सबसे सुंदर चित्र था। परमानंद का। नए युग के सूत्रपात का। अद्भूत और अद्वितीय भी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामलला को साष्टांग दंडवत किया। टीवी और एलइडी स्क्रीन पर विवादों से मुक्त जन्मभूमि के इस ²श्य को देखने वालों के गले भक्ति भाव से रुंध गए। आंखें भर आईं। इस ²श्य ने न केवल प्रधानमंत्री की रामलला के प्रति आस्था को परिभाषित किया, बल्कि लोगों की आंखों को भी सजल कर दिया। घर में टीवी पर अपनी अयोध्या और रामलला की जन्मभूमि का ऐसा नजारा देख लोग परमानंद को प्राप्त कर रहे थे तो एलइडी पर देखने वालों ने कहीं ताली बजाकर पीएम का अभिनंदन किया तो कहीं डांस कर।
पांच सदी के तप के बाद रामजन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण के भूमिपूजन का टीवी से ही दर्शी बनना स्वयं के भाग्यवान होने के एहसास से भर देने वाला रहा। भूमिपूजन के बाद आतिशबाजी करते मिले अनुभव कहते हैं न जाने कितने जन्मों के पुण्य से यह ²श्य देखने को मिल रहा है। वे कहते हैं, हमें कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाने का कोई गम नहीं है। ..परमात्मा राम और भगवती जानकी की कृपा ही है कि इस ²श्य को टीवी पर देखने का सुयोग्य मिला। भूमिपूजन के बाद रिकाबगंज हनुमानगढ़ी पर जयश्रीराम का घोष करते मिले राजीव शुक्ल कहते हैं, हम भाग्यशाली हैं कि अयोध्यावासी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुरीद राजीव कहते हैं, हमें देश के ऐसे नेतृत्वकर्ता भाग्य से मिले हैं, जो बिना झिझक रामलला को साष्टांग दंडवत करते हैं। सिर्फ राजीव और अनुभव ही नहीं, बल्कि मां सरयू भी मुदित दिखीं। अब उत्तरावाहिनी मां सरयू, आग्नेय कोण पर विराजमान हनुमानजी, अयोध्यावासी और श्रद्धावनत साधक अब जल्द अपने रामलला को ऐसे भव्य भवन में विराजमान होते देखेंगे, जिसकी कामना पांच सदी से होती रही.. जय सियाराम। बना दैवीय संयोग
-ऐसी मान्यता है कि त्रेता में जब रामलला के प्राकट्य हुआ तो सूर्यदेव एक माह तक अयोध्या में ही रुके रहे थे। यह दैवीय संयोग बुधवार को भी बनता दिखा। सुबह के वक्त जहां रामनगरी में घने बादलों ने डेरा डाल रखा था और बारिश भी हुई। पर भूमिपूजन से ठीक पहले भगवान भास्कर पूरी चेतना के साथ इस ²श्य के साक्षी बने। परमात्मा राम स्वयं भी सूर्यवंशी हैं तो ऐसे में भला सूर्यदेव का रास्ता रोक भी कौन सकता था। यह दैवीय संयोग इस लिहाज से भी कहा जा रहा है कि भूमिपूजन का कार्यक्रम समाप्त होने और अतिथि के जाने के बाद आसमान में बादलों ने फिर से डेरा डाल दिया। रामचरितमानस में भगवान राम के प्राकट्य के समय के बारे में कहा भी गया है कि 'मध्यदिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक बिश्रामा.।'