नए साल में धार्मिक स्थलों को जोड़ने की श्रृंखला में बढ़ेगा सरकार का एक और कदम
रामनगरी को विश्व पर्यटन मानचित्र पर उभारने के दावे के तहत अयोध्या को मिलने वाले तोहफे से रामनगरी से बाबा विश्वनाथ की धरती तक सफर सुहाना हो जाएगा।
जेएनएन, अयोध्या। रामनगरी को विश्व पर्यटन मानचित्र पर उभारने के दावे के तहत चुनाव से पहले केंद्र सरकार अयोध्या को एक और तोहफा देने वाली है। इससे रामनगरी से बाबा विश्वनाथ की धरती तक सफर सुहाना हो जाएगा। केंद्र सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना अयोध्या-काशी फोरलेन मार्ग के निर्माण को स्वीकृति मिल चुकी है। स्टेट हाइवे के बजाय परियोजना को अब नेशनल हाइवे की श्रेणी में लाया गया है। नववर्ष के जनवरी में अयोध्या-टू-काशी फोरलेन परियोजना का शिलान्यास संभावित है। इससे इतर अयोध्या के कई राजकीय उद्यान विकास के बजाय अपविकास की गर्त में जा रहे हैं। इनकी लुभावन आभा नष्ट होती जा रही है।
धार्मिक स्थलों से जोडऩे की घोषणा का अंश
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकारी अयोध्या में इस योजना की आधारशिला रख सकते हैं। सांसद लल्लू सिंह की ओर से केंद्रीय मंत्री गडकरी को निमंत्रित करने के लिए उनसे पेशकश की है। जनवरी में गडकरी का आना लगभग तय माना जा रहा है। परियोजना के मूर्त रूप में आने के बाद अयोध्या से बनारस का सफर काफी सुगम होगा। परियोजना को केंद्र सरकार की अयोध्या को भिन्न धार्मिक स्थलों से जोडऩे की घोषणा से जोड़ कर देखा जा रहा है। अयोध्या से काशी तक नए मार्ग के निर्माण को लेकर सांसद ने पहला पत्र जून वर्ष 2014 में लिखा था, लेेकिन प्रदेश सरकार से सामंजस्य नहीं बन सका।
योगी सरकार में परियोजना को काफी गति
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद परियोजना को काफी गति मिली। लोकनिर्माण मंत्री केशवप्रसाद मौर्य ने परियोजना में दिलचस्पी दिखाई। स्टेट हाइवे के रूप में इस परियोजना का जो खाका खींचा गया था, उसमें जिले की मया व गोसाईंगंज बाजार के वजूद संकट था, लेकिन सांसद के प्रयास से फोरलेन बनने की वजह से ये बाजारें अब सुरक्षित होंगी। 180 किलोमीटर लंबे इस फोरलेन के निर्माण पर छह हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। सांसद लल्लू सिंह ने कहा कि अयोध्या से काशी तक फोरलेन निर्माण कार्य की डीपीआर अंतिम चरण में है। जनवरी में परियोजना का शिलान्यास होगा। 180 किलोमीटर लंबे फोरलेन की आधारशिला केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी करेंगे।
पर्यटन विकास को ठेंगा दिखा रहा एक उद्यान
पर्यटन विकास के दावे के विपरीत अयोध्या का ऋषभदेव राजकीय उद्यान लंबे समय से दिन बहुरने की बाट जोह रहा है। सरयू के प्राचीन राजघाट तट पर यह उद्यान यूं तो नैसर्गिक आभा से युक्त है फिर भी समुचित देखरेख के अभाव है। प्रवेश करते ही उद्यान की आभा के अनुरूप लताओं से आच्छादन के लिए प्रवेश मार्ग के ऊपर लगी जाली सूनी दिखाई पड़ती है। दाहिनी ओर बढऩे पर किसी जमाने में फूलों की घाटी का नजारा पेश करने वाला हिस्सा गिनती के पौधों तक सिमट गया है। घाटीनुमा इसी हिस्से के मुहाने पर तीन दशक पूर्व उद्यान की स्थापना के समय से ही रोपित मौलश्री के पौधों की कतार एक समय बेहद लुभावन थी, पर अब कतार की आधे से अधिक मौलश्री का पौधा नष्ट हो गया है। मौलश्री की इसी कतार के सम्मुख ब'चों के लिए लगाए गए भांति-भांति के झूले में से कुछ टूट गए हैं।
ऋषभदेव की प्रतिमा से भी न्याय नहीं
उद्यान के केंद्र में स्थापित भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा से भी न्याय नहीं हो पा रहा है। बरसात, धूप आदि से बचने के लिए कुछ अर्सा पूर्व दो बरामदे तो निर्मित कराए गए थे पर उन बरामदें की टिन की छत का बड़ा हिस्सा उखड़ गया है। आस-पास उखड़ी टिन की चादरें उदासीनता का अतिरेक बयां करती हैं। इसी टिन शेड के पृष्ठ में उद्यान की पश्चिमी और उत्तरी सीमा से साबका पड़ता है, जिसकी रेलिंग कब की टूट चुकी है। टूटी रेलिंग छुट्टा मवेशियों से उद्यान की वन संपदा के साथ पर्यटकों की सुरक्षा को चिढ़ाती है। टूटी रेलिंग के चलते पर्यटकों की जरा सी चूक उन्हें गहरी खाई में गिरा सकती है।