Move to Jagran APP

रामभक्तों के सम्मुख मुस्लिम शासक वर्ग भी था नतमस्तक

दिल्ली सल्तनत ने आचारी मंदिर के लिए वक्फ की थी एक हजार बीघा भूमि और एक लाख स्वर्ण मुद्राएं

By JagranEdited By: Published: Fri, 10 Sep 2021 11:44 PM (IST)Updated: Fri, 10 Sep 2021 11:44 PM (IST)
रामभक्तों के सम्मुख मुस्लिम शासक वर्ग भी था नतमस्तक
रामभक्तों के सम्मुख मुस्लिम शासक वर्ग भी था नतमस्तक

अयोध्या (रघुवरशरण): रामभक्त संतों के सम्मुख मुस्लिम शासक वर्ग नतमस्तक था। इसकी तस्दीक अनेक मंदिरों और उनके आचार्यों से होती है। आचारी मंदिर के युवा महंत विवेक आचारी के पास 1241ई. का दस्तावेज है। दिल्ली सल्तनत के शीर्ष प्रतिनिधि मलिक साहब अलदीन की ओर से जारी यह दस्तावेज फारसी में है। इस दस्तावेज में जो उल्लिखित है, उसके अनुसार दिल्ली सल्तनत ने आचारी मंदिर के लिए एक हजार बीघा भूमि और एक लाख मुद्राएं वक्फ की थीं। यह समृद्धि आचारी मंदिर से आज भी परिलक्षित होती है। मंदिर के वर्तमान महंत के अनुसार दिल्ली सल्तनत का यह अनुग्रह मंदिर के दूसरे आचार्य छत्रू स्वामी की सिद्धि-साधना के चलते था और उस समय की दिल्ली सल्तनत छत्रू स्वामी के आध्यात्मिक चमत्कार की कायल थी। रामलला के दर्शन मार्ग पर स्थित रामकचहरी मंदिर के बारे में मान्यता है कि इस मंदिर का नवनिर्माण अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने कराया था। महंत शशिकांतदास के अनुसार मंदिर के संस्थापक बाबा अंबरदास पहुंचे संत थे और उनकी रूहानियत से प्रभावित होकर नवाब ने मंदिर के खर्च के लिए प्रचुर भूमि दान की थी। रामकचहरी के कुछ ही फासले पर स्थित रामगुलेला मंदिर की भी विरासत अवध के नवाब से अनुप्राणित है। रामगुलेला मंदिर के संस्थापक आचार्य अंबरदास के ही समकालीन थे और उन्हीं की तरह आध्यात्मिक प्रताप-पराक्रम से युक्त थे। नवाब ने रामगुलेला मंदिर के लिए तो एक रियासत ही वक्फ कर दी थी।

loksabha election banner

बहरहाल, नवाब की आस्था से अनुप्राणित रामकचेहरी मंदिर की सांस्कृतिक विरासत शताब्दियों से प्रवाहमान है। सावन की दस्तक के साथ पूरे माह झूलनोत्सव इसी परंपरा का परिचायक है। यहां झूले पर मां सीता एवं भगवान राम के साथ हनुमानजी का विग्रह भी स्थापित किया जाता है। रामकचहरी की उत्सवधर्मिता झूलनोत्सव के साथ अन्य आयामों में भी ढलती है और इसी के साथ नवाब की आस्था के स्मारक की धार्मिक-सांस्कृतिक विविधता भी परिभाषित होती है। मंदिर में पुरी के आराध्य भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र का विग्रह भी स्थापित है और जगन्नाथपुरी की परंपरा के अनुरूप यहां से भी प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को रथयात्रा निकलती है। रामनगरी पर केंद्रित शोधपूर्ण कृतियों के लेखक डॉ. देशराज उपाध्याय की मानें तो मंदिरों के प्रति नवाबों का सरोकार मात्र दान तक सीमित नहीं था। वे संतों की रूहानियत के साथ धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियों एवं प्रतीकों के अनुरागी थे और रामकचहरी की परंपरा में इसके संकेत निहित हैं।

नवाब ने कराया था हनुमानगढ़ी का निर्माण

- बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी से नवाबों का मंदिरों के प्रति अनुराग परिलक्षित है। मान्यता है कि 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अवध के तत्कालीन नवाब मंसूर अली हनुमानगढ़ी के मुख्य अर्चक संत अभयरामदास की साधना सिद्धि से प्रभावित थे। मान्यता है कि संत के आशीर्वाद से नवाब के बेटे को असाध्य रोग से मुक्ति मिली थी। इसके जवाब में नवाब ने विनम्र आग्रह के साथ मिट्टी के टीले के रूप में सिमट गए त्रेतायुगीन इस स्थल को किले के रूप में निर्मित कराया। इसी के साथ उन्होंने मंदिर के इर्द-गिर्द 52 बीघा भूमि भी वक्फ कर दी। हनुमानगढ़ी में नवाब का फरमान ताम्रपत्र के रूप में आज भी विद्यमान है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.