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वक्त ही नहीं, गांव भी ले रहा प्रवासियों की परीक्षा

अयोध्या प्रवासियों की परीक्षा सिर्फ वक्त ही नहीं बल्कि गांव भी ले रहा है। प्रवासी श्रमिक गांव पहुंचे भी तो भी परिवार से अलग हैं। खेत में। खुले आसमान के नीचे समय बिता रहे हैं। परिवार के लोग वहीं भोजन पानी उपलब्ध करा देते हैं। खेत में ही नित्य क्रिया पूरी करनी पड़ती है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 28 May 2020 11:06 PM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 07:35 AM (IST)
वक्त ही नहीं, गांव भी ले रहा प्रवासियों की परीक्षा
वक्त ही नहीं, गांव भी ले रहा प्रवासियों की परीक्षा

अयोध्या: प्रवासियों की परीक्षा सिर्फ वक्त ही नहीं, बल्कि गांव भी ले रहा है। प्रवासी श्रमिक गांव पहुंचे भी तो भी परिवार से अलग हैं। खेत में। खुले आसमान के नीचे समय बिता रहे हैं। परिवार के लोग वहीं भोजन पानी उपलब्ध करा देते हैं। खेत में ही नित्य क्रिया पूरी करनी पड़ती है। वजह, घर के नाम पर सिर्फ छप्पर है, जिसमें परिवार के बाकी सदस्य रहते हैं। ये दर्द उन प्रवासियों का है, जिन्होंने कोलकाता से घर तक का सफर साइकिल से तय किया। इस उम्मीद के साथ ही कि कम से कम गांव पहुंच कर सुरक्षित तो हो जाएंगे।

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हैदरगंज संवादसूत्र के मुताबिक विकासखंड तारुन की ग्राम पंचायत जानाबाजार, उमापुर, कैथवलिया, मयनदीपुर, पंडित का पुरवा सहित अन्य गांवों में बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक आए हैं। साइकिल से चलकर 24 मई को गांव पहुंचे सीताराम व रोशन ने बताया कि उनके पास सिर्फ घर के नाम पर सिर्फ छप्पर है, जिसमें बच्चे व महिलाएं रहती हैं। इसलिए घर में नहीं रह सकते। मजबूरी में गांव से दूर बाग में ही उन्हें क्वारंटाइन की अवधि बितानी पड़ रही है। उमापुर, कैथवलिया के ही घनश्याम, भवानीफेर, अंकुर, रामलाल, विजय कुमार, पुत्तीलाल का दर्द भी यही है। बाग में खुले आसमान के नीचे समय बिता रहे हैं। अब तक किसी ने इनका हाल चाल भी नहीं लिया है, जबकि ग्राम निगरानी समिति के सदस्य भी इनसे दूरी बनाए हुए हैं। लॉकडाउन हुआ तो पहले किसी भी तरह गांव पहुंचने की जद्दोजहद से गुजरना पड़ा और अब काम भी नहीं है। चिता यह है कि काम नहीं होगा तो जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन कहां से आएगा। जिले में लौटे तमाम प्रवासियों को इसी दर्द से गुजरना पड़ रहा है। परिवार, रिश्ते-नाते और दोस्त, जो पहले गांव आने पर गले लगा लेते थे, अब वे दूरी बनाए हैं।


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