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विपरीत दिशा में ज्ञानेंद्रियों का गमन है गणिका : बापू

गणिकाओं की स्वीकार्यता-अस्मिता पर आधारित नौ दिवसीय रामकथा महोत्सव मानस-गणिका का आठवां पुष्प अर्पित करते हुए मोरारी बापू ने समुद्र मंथन और अहिल्या उद्धार के प्रसंग का विवेचन किया। शनिवार को बापू ने शुरुआत भगवान राम की विश्वामित्र के साथ जनकपुर की यात्रा के

By JagranEdited By: Published: Sat, 29 Dec 2018 11:29 PM (IST)Updated: Sat, 29 Dec 2018 11:29 PM (IST)
विपरीत दिशा में ज्ञानेंद्रियों का गमन है गणिका : बापू
विपरीत दिशा में ज्ञानेंद्रियों का गमन है गणिका : बापू

अयोध्या : गणिकाओं की स्वीकार्यता-अस्मिता पर आधारित नौ दिवसीय रामकथा महोत्सव मानस-गणिका का आठवां पुष्प अर्पित करते हुए मोरारी बापू ने समुद्र मंथन और अहिल्या उद्धार के प्रसंग का विवेचन किया। शनिवार को बापू ने शुरुआत भगवान राम की विश्वामित्र के साथ जनकपुर की यात्रा के निरूपण से की। रामचरितमानस में वर्णित पंक्ति-धनुषयज्ञ सुनि रघुकुलनाथा/ हरषि चले मुनिवर के साथा.. का गान करते हुए बापू कथा की ओर केंद्रित हुए। इस पंक्ति में विश्वामित्र को मुनिवर कहे जाने की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए बापू ने कहा, मुनि वह जो अपने हित के अनुष्ठान में लगा हो और मुनिवर वह, जो अहिल्या रूपी शोषिताओं के मंगल अनुष्ठान में लगा हो।

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वाल्मीकि को उद्धृत करते हुए बापू बताते हैं, भगवान के साथ जनकपुर जाते समय विश्वामित्र ने अनेक कथाएं सुनाईं। इनमें समुद्र मंथन की भी कथा है। समुद्र मंथन में शामिल सुर और असुर की ओर कर इशारा कर बापू अनादि काल से मानवीय एकता की संभावना तलाशते हैं। समुद्र मंथन में निकले विष का पान करने के लिए शिव की साम‌र्थ्य-संवेदना को नमन करते हुए बापू समुद्र मंथन में निकली अप्सराओं का आंकलन करते हैं। वे अप्सरा को अप यानी जल और सरा यानी रस या काव्य, लालित्य, भक्ति, कला आदि का समन्वय बताते हैं और उनकी वृत्तियों का जिक्र करते हैं। कहते हैं, विपरीत दिशा में गमन करने पर ज्ञानेंद्रियां गणिका बन जाती हैं। जैसे स्वादेंद्रिय परम सत्य का स्वाद छोड़ दे। श्रवणेंद्रिय परमात्मा के ज्ञान का श्रवण छोड़ दे। ..तो हमारी गति गणिका की हो जाएगी। इसके बावजूद रामकथा, वह कथा है, जो हमारे उद्धार का मार्ग प्रशस्त करती है। यह कहते हुए बापू मानस-गणिका के लिए चयनित रामचरितमानस की यह पंक्ति पूरे राग से दोहराते हैं- पाई न के¨ह गति पतितपावन राम भज सुन सठमना गनिका अजामिल व्याध गीध सकल अघ तारे घना। बापू ने अहिल्या-उद्धार का प्रसंग विवेचित करते हुए वाल्मीकि और तुलसी की ²ष्टि में भेद बताया और मानस की इस पंक्ति की ओर ध्यान आकृष्ट कराया, चरन कल रज चाहति/ कृपा करहुं रघुवीर। बापू ने कहा, यहां विश्वामित्र अहिल्या के हक में खड़े नजर आते हैं और यही उनके मुनिवर होने का प्रमाण है कि वे पीड़िता के हक में खड़े होते हैं।

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प्रवचन संग्रह का विमोचन

- आठवें दिन की कथा के दौरान लखनऊ में बापू के प्रवचन मानस-अरण्य एवं ठाणे के प्रवचन मानस-किन्नर को पुस्तक की शक्ल में लोकार्पित किया गया। इन पुस्तकों का लोकार्पण बापू ने पूर्व सांसद डॉ. रामविलासदास वेदांती के साथ किया। पुस्तक के संपादक नितिन भाई बड़कामा ने बापू के कथन का सार पेश करते हुए बताया, बापू की नजर में प्रेम उद्यान नहीं अरण्य है और अरण्य की लीला श्रृंगार, सत्संग एवं संहार की लीला है। किन्नर समाज पर केंद्रित बापू के प्रवचन को बड़कामा ने किन्नर समाज को प्रतिष्ठित करने का पाटोत्सव बताया।

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अयोध्या में होगी मानस-अयोध्या

- बापू का रामनगरी में नौ दिवसीय अनुष्ठान रविवार को समाप्त होगा पर आठवें दिन ही उन्होंने अयोध्या में पुन: रामकथा करने का वादा किया। विषय होगा, मानस-अयोध्या। बापू ने उम्मीद जताई कि दो वर्ष तक तो मौका नहीं है पर इसके बाद जब भी मौका मिलेगा, मानस-अयोध्या संवाहित होगी। शुरुआत अयोध्या से होगी। दो दिन अयोध्या में कथा के बाद मानस-अयोध्या तीसरे दिन तमसा तट, चौथे दिन श्रृंगवेरपुर, पांचवे दिन प्रयाग, छठवें दिन वाल्मीकि आश्रम, सातवें दिन चित्रकूट में सजेगी। आठवें दिन मानस-अयोध्या का गान पुन: अयोध्या में एवं नौवें दिन नंदीग्राम में होगी।

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दुनिया से प्रामाणिक दूरी

- बापू ने अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, मैं संस्था का आदमी नहीं हूं, व्यासपीठ का आदमी हूं और दुनिया भर से प्रामाणिक दूरी बनाकर चलता हूं।

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बेइमानी पर ¨चता

- बापू ने वैवाहिक समारोह की बेइमानी पर ¨चता जताई। कहा, एक ओर सप्तपदी कराते हुए पंडित टूट जाता है, दूसरी ओर वैदिक संस्कारों को ठेंगा दिखाते हुए हमारी शादियों में शराब उड़ेली जाती है और न जाने क्या-क्या खाया जाता है। ऐसा करने वाले हमारे सामने कौन सा मुंह लेकर आएंगे।

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बांध बांधों पर बहने भी दो

- वाल्मीकि से भिन्न अहिल्या के प्रति अतिरिक्त सम्मान देने के लिए तुलसीदास को नमन करते हुए बापू ने कहा, तुलसी ने गजब का काम किया है और शास्त्रों में समय-समय पर संशोधन होता भी रहना चाहिए। यह प्रवाही परंपरा है। उन्होंने भारतीय संस्कृति को प्रवाही बताया तथा कहा, जितना बांध बांधना है बांधों पर उसे बहने भी दो। बहे बिना वह निष्प्राण हो जाएगी।

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कर्म प्रधानमंत्री-कृपा राष्ट्रपति

- अहिल्या सहित गणिकाओं, अजामिल, ब्याध, गीध आदि के उद्धार का विश्वास दिलाते हुए बापू ने कहा, कर्म प्रधानमंत्री है पर राष्ट्रपति कृपा है और उसकी कृपा से कर्म का हिसाब किताब किए बिना अपात्रों को भी सद्गति मिलती है।

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सुनें अधिक-बोलें कम

- बापू ने सुनें अधिक और बोलें कम का सूत्र दिया। कहा, इस सूत्र से हजारों आफतों से बचे रहेंगे।

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..आंसुओं को जुबां बनाया करो

- बापू ने ऊपर वाले से मोहब्बत परिभाषित करते हुए मीर की गजल पेश कर पूरे पंडाल को मोहब्बत की तासीर से भिगोया। हाले दिल उनको सुनाया न करो/ आंसुओं को जुबां बनाया करो।

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अयोध्या की आंख में मोतिया¨बद न होने पाए

- अहिल्या को इंद्र ने धोखा दिया, गौतम ने श्राप दिया पर अयोध्या के राम और विश्वामित्र ने उसकी ओर ध्यान दिया। सही भी है, अहिल्या को अयोध्या की आंख न देखे तो देखे कौन। हमें यह सोचना होगा कि अयोध्या की आंख में मोतिया¨बद न होने पाए।

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संतों के 15 शील

- बापू ने संतों के 15 शील का विवेचन किया। मौनशील, वचनशील, विनयशील, कृपाशील, बलशील, मरणशील, अध्ययनशील, कर्मशील, धर्मशील, नमनशील, करुणाशील, स्वरशील, वैराग्यशील, ध्यानशील एवं रसशील।

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कलियुग में हरिनाम उपयोगी

- बापू ने अपने आठवें दिन के प्रवचन में भी ओशो का उल्लेख किया। कहा, आराध्य से जुड़ने के चार मार्ग हैं, ध्यान, यज्ञ, पूजा-अर्चा एवं हरिनाम। बापू ने कहा, ओशो ने ध्यान को अपूर्व प्रतिष्ठा दिलाई पर सहज यह है कि कलियुग में हरिनाम उपयोगी है।


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