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भगवान कृष्ण ने कराया था कनकभवन का जीर्णोद्धार

राम जन्मोत्सव से दुनिया भर के करोड़ों रामभक्तों का सरोकार है पर इस अवसर पर आस्था के केंद्र में रामनगरी होगी और रामनगरी के केंद्र में कनकभवन। कनकभवन रामभक्तों की शीर्ष पीठ होने की गरिमा से यूं ही नहीं विभूषित है। इसके मूल में कनकभवन का सुदीर्घ शानदार एवं सतत प्रवाहमान अतीत है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जनकपुर में वर माला धारण करने के साथ ही भगवान राम यह सोचने लगे कि अयोध्या में देवी सीता

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 11:52 PM (IST)Updated: Fri, 12 Apr 2019 11:52 PM (IST)
भगवान कृष्ण ने कराया था कनकभवन का जीर्णोद्धार
भगवान कृष्ण ने कराया था कनकभवन का जीर्णोद्धार

अयोध्या : रामजन्मोत्सव से दुनिया भर के करोड़ों रामभक्तों का सरोकार है पर इस अवसर पर आस्था के केंद्र में रामनगरी होगी और रामनगरी के केंद्र में कनकभवन। कनकभवन रामभक्तों की शीर्ष पीठ होने की गरिमा से यूं ही नहीं विभूषित है। इसके मूल में कनकभवन का सुदीर्घ, शानदार एवं सतत प्रवाहमान अतीत है।

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पौराणिक मान्यता के अनुसार जनकपुर में वरमाला धारण करने के साथ ही भगवान राम यह सोचने लगे कि अयोध्या में देवी सीता की गरिमा के अनुरूप दिव्य भवन होना चाहिए। भगवान राम की ही प्रेरणा से केकई ने राजा दशरथ से दिव्य भवन निर्मित कराने का आग्रह किया। दशरथ के आग्रह पर देवराज इंद्र ने भवन निर्मित करने के लिए विश्वकर्मा को अयोध्या भेजा और शीघ्र ही यह भवन तैयार हो गया। भवन की स्वर्णिम आभा के फलस्वरूप इसे कनकभवन नाम दिया गया। राजा दशरथ ने यह भवन केकई को प्रदान किया और केकई ने सीता को मुंह दिखाई में भेंट कर दिया। समय के साथ कनकभवन की दिव्यता कुछ धूमिल भी पड़ी। कनकभवन में महाराज विक्रमादित्य के जमाने की एक शिला संरक्षित है, उसके अनुसार जरासंध का वध करने के बाद तीर्थों का भ्रमण करते हुए भगवान कृष्ण अयोध्या भी आए और उस कनकभवन को देखा, जो उनके समय तक टीले की शक्ल में सिमट कर रह गया था। शिला पर उत्कीर्ण श्लोक के अनुसार भगवान कृष्ण ने उस टीले पर अत्यंत आनंद का अनुभव किया। इस श्लोक की व्याख्या के आधार पर माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने कनकभवन का जीर्णोद्धार कराया और मूर्तियों की स्थापना कराई। यह मूर्ति आज भी कनकभवन में स्थापित है। इसी शिलालेख में आगे वर्णन मिलता है कि कृष्ण के युगों बाद युधिष्ठिर संवत 2431 की पौष कृष्ण द्वितीया यानी लगभग दो हजार वर्ष पूर्व गंधर्वसेन के पुत्र नृपतिलक विक्रमादित्य ने कनकभवन का जीर्णोद्धार कराया। विक्रमादित्य के समय कनकभवन को जो वैभव हासिल हुआ, वह सहस्त्राब्दियों के सफर में पुन: विगलित हो उठा। मध्यकाल में कनकभवन आक्रांताओं का भी निशाना बना। उत्तर मध्यकाल तक कनकभवन को पुनगररव प्रदान करने की ललक पुन: जागी। इस ललक को चार-चांद लगाया ओरछा की महारानी वृषभानु कुंवरि ने। रामभक्ति की मिसाल रानी कनकभवन के निर्माण में उदारता की भी मिसाल बनकर प्रतिष्ठित हुईं। आज भव्य और मनोहारी स्थापत्य के रूप में जो कनकभवन है, उसका निर्माण सवा सौ वर्ष पूर्व वृषभानु कुंवरि ने ही कराया।


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