पर्यावरण को संजीवनी देने वाला रहा लॉकडाउन
न्यूनतम स्तर पर रहा प्रदूषण का आंकड़ा
अयोध्या: लॉकडाउन ने दिक्कतें भलें ही दीं, लेकिन यह अवधि पर्यावरण को संजीवनी देने वाली रही। नतीजे भी चमत्कारिक रहे। ध्वनि व वायु प्रदूषण न्यूनतम स्तर पर आया तो सरयू भी पहले से कहीं अधिक शुभ्र हुईं। प्रकृति का नए सिरे से साजो-श्रृंगार हुआ। इस सच्चाई की तस्दीक अप्रैल-मई माह के आंकड़ें भी करते हैं, जो पर्यावरण के लिहाज से लोगों को हमेशा डराते रहे हैं।
अप्रैल माह में वायु में पीएम 10 (पार्टिकुलेट मैटर या हवा में धूल का कण) औसतन 47.5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रिकार्ड किया गया, जबकि इसका मानक सौ है। मई माह में इसमें थोड़ा इजाफा हुआ, लेकिन मानक से काफी कम रहा। मई माह में पीएम टेन औसतन 54.2 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रिकार्ड किया गया। लॉकडाउन से पहले के दिनों का आंकड़ा 80 से सौ के बीच रहता था, जबकि धुंध आदि छाने पर यही संख्या सौ से अधिक हो जाया करती थी, लॉकडाउन ने वायु प्रदूषण के आंकड़े को न्यूनतम स्तर पर लाकर लोगों को स्वच्छ आक्सीजन भी मुहैया कराई। यह परिवर्तन ध्वनि प्रदूषण में भी आया है। अप्रैल माह में ध्वनि प्रदूषण औसतन आवासीय क्षेत्रों में 44.5 डेसीबल, व्यवसायिक क्षेत्र में 60.4 डेसीबल, शांति क्षेत्र में 41 डेसीबल व औद्योगिक क्षेत्र में 68 डेसीबल रहा। मई में इसमें थोड़ी वृद्धि दर्ज की गई। मई में ध्वनि प्रदूषण का आंकड़ा आवासीय क्षेत्र में 51.6, व्यवसायिक में 62.2, शांति क्षेत्र में 43.6 व औद्योगिक क्षेत्र में 74.8 डेसीबल रिकार्ड किया गया। लॉकडाउन से पहले के दिनों में आवासीय क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण 60 से 65, व्यवसायिक में 90, शांति क्षेत्र में 55 से 60 व औद्योगिक क्षेत्र में 95 से 100 के बीच रहा करता था। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी स्वामीनाथ कहते हैं कि लॉकडाउन पर्यावरण के लिए संजीवनी सरीखा रहा है।
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और शुभ्र हुईं सरयू मैया
- यूं तो सरयू की गणना देश की कुछ चुनिदा स्वच्छ नदियों में होती है, लेकिन प्रदूषण के संक्रमण से सरयू भी नहीं बची थीं। लॉकडाउन में सरयू मैया भी संक्रमण से मुक्त हुई हैं। लॉकडाउन के दौरान सरयू में घुलित आक्सीजन (डीओ) 9 के करीब बनी रही, जबकि बायोलॉजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) 2.3 के करीब बनी रही। यह बदलाव वैज्ञानिक परीक्षण से बिना सामान्य आंखों से भी अनुभूत किया जा सकता है। प्रवाह के मीटर-दो मीटर नीचे तक सरयू की सतह बालू के चमकते कणों के साथ नजर आती है। इसकी मुख्य वजह लाखों यात्रियों के दबाव से मुक्त रामनगरी के उन नालों का सूखना भी रहा, जिसका प्रदूषित पानी बड़ी मात्रा में अपशिष्ट के साथ सरयू में विसर्जित होता था।
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पांच साल में न्यूनतम स्तर पर तापमान
- लॉकडाउन की वजह से जो मई माह चिलचिलाती गर्मी से लोगों को विचलित तक कर देता था, वह भी सुखपूर्वक बीत गया। यह लॉकडाउन का ही असर था कि अप्रैल व मई माह का औसत तापमान पिछले पांच सालों के सबसे न्यूनतम स्तर पर रिकार्ड किया गया। अप्रैल माह में औसत तापमान 27.4 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया। गत वर्ष यह आंकड़ा 28.7, वर्ष 2018 में 28, 2017 में 29.9, 2016 में 32 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया था। इस साल मई माह का औसत तापमान 29.7 डिग्री सेल्सियस रहा। गत वर्ष यह आंकड़ा 32.9, वर्ष 2017 में 31.4 व 2016 में 32 डिग्री सेल्सियस था। नरेंद्रदेव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञानी डॉ. अमरनाथ मिश्र कहते हैं कि लॉकडाउन में प्रदूषण न्यूनतम स्तर पर होने की वजह से यह तब्दीली आई।
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ये वजह बताते हैं विज्ञानी
- डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञानी व अंटार्कटिक अभियान दल का हिस्सा रहे प्रो. जसवंत सिंह कहते हैं, पर्यावरण के लिहाज से जो काम तकनीक नहीं कर सकी, उसे लॉकडाउन ने कर दिखाया है। प्रो. सिंह के मुताबिक प्रदूषण की मुख्य वजह वाहनों से निकलने वाला धुआं, पार्टिकुलेट मैटर्स के रूप में बहुत छोटे धूल के कण, अस्पतालों का बायोमेडिकल वेस्ट, घर से निकलने वाले ठोस अपशिष्ट, ऑटोमोबाइल का खराब तेल, इंडस्ट्रियल कचरा आदि है। लॉकडाउन में इन सबकी मात्रा नहीं के बराबर रही। यही वजह है कि न केवल ध्वनि व वायु प्रदूषण सुधरा बल्कि नदियां भी स्वच्छ हुई हैं।