रामनगरी में रामकथा के साथ कृष्णकथा की सरयू प्रवाहित
सत्य का संग और नित्य सत्संग करने से हमारे भीतर आत्मबल विकसित होता है और सदाचार के पथ पर अग्रसर होने की हमें प्रेरणा मिलती है।
अयोध्या : रामनगरी में रामकथा के साथ कृष्णकथा की सरयू प्रवाहित हो रही है। ग्राम सरायरासी में श्रीहनुमत प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव में पांच दिवसीय रामकथा का प्रारंभ करते हुए जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य ने कहा, सत्य का संग और नित्य सत्संग करने से हमारे भीतर आत्मबल विकसित होता है तथा सदाचार के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है। पूरे समाज के लोग जब एक साथ एकत्रित होकर सत्संग करते हैं या हरि कथा सुनते हैं, तो हृदय की शुद्धता, भक्ति, नैतिकता और मर्यादा का विकास होता है।
आचार्य ने याद दिलाया कि अनादि काल से भारत में चित्र की नहीं, चरित्र की उपासना की जाती रही है। प्रभु श्रीराम ही इस राष्ट्र का चरित्र हैं। चरित्र से ही आप किसी को जीत सकते हैं एवं अपनी सत्यनिष्ठा से ही आप सबको अपना बना सकते हैं। नयाघाट-परिक्रमा मार्ग स्थित हिदूधाम में भागवतकथा के क्रम में शास्त्रज्ञ कथाव्यास डॉ. रामविलासदास वेदांती ने उद्धव की ब्रज यात्रा का विवेचन किया तथा कहा, उद्धव ज्ञान के परिचायक हैं, पर भक्ति की परिचायक गोपिकाओं को सामने पाकर उद्धव की घिग्घी बंध गयी और यह सत्य मात्र ब्रज का नहीं है, बल्कि शाश्वत है। भक्ति का ब्रह्म कमल जब खिलता है, तब ज्ञान का सूर्य उसके सम्मुख नत मस्तक ही हो जाता है। उद्धव और गोपिकाओं का तुलनात्मक विवेचन करते हुए डॉ. वेदांती ने कहा, ज्ञान परम सत्य-परम तत्व-परम ध्येय-परम ज्ञेय को जानने का प्रयास है और भक्ति उस परम प्रकाश का प्रसाद है। इसलिए ज्ञान का आश्रय लेने के साथ परम साध्य-परम आराध्य की प्रतीति करें और इसके लिए मस्तिष्क और ह्रदय में वैसा ही संतुलन-समंवय बनायें, जैसा गोपिकाओं से मिलन के बाद उद्धव के साथ होता है।
नाका बाईपास चौराहा स्थित गुरुदेव पैलेस में भागवतकथा ज्ञानयज्ञ के दौरान मर्मज्ञ कथाव्यास आचार्य राधेश्याम ने रविवार को अजामिल उद्धार की कथा सुनाने के साथ प्रहलाद की भक्ति का विवेचन किया। उन्होंने कहा, अजामिल की कथा से परिचित इस भूल में न रहें कि नारायण का नाम कभी ले लिया और नारायण मिल जाएंगे। यह ठीक है कि अजामिल ने किसी और नारायण को पुकारा, पर पुकार सुनी असली नारायण ने और ऐसा इसलिए संभव हुआ कि उस समय अजामिल अपराधबोध के शिखर पर था और जिस दिन हमें अपने पाप-अपनी चूक-अपनी निरर्थकता का सच में भान हो जायेगा, उसी दिन अहमन्यता मिट जायेगी और जो बचेगा, वह परमात्मा ही होगा। कथाव्यास ने श्रोताओं से सीधा संवाद किया और आह्वान किया कि कुछ नहीं हो सकते, तो अजामिल जैसी दैन्यता के साथ प्रस्तुत तो हो सकते हो और जिस दिन यह दैन्यता अर्पित होगी परम प्रभु स्वयमेव दौड़े आएंगे।