किशोर कुणाल का रामनगरी से है गहन सरोकार
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अयोध्या : सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई के दौरान सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने जिस नक्शा को फाड़ा, उसके पब्लिशर किशोर कुणाल का रामनगरी से गहन सरोकार है। वे न केवल विवादित स्थल से चंद कदम के फासले पर अमावा राज मंदिर से धार्मिक-आध्यात्मिक प्रकल्प संचालित करते हैं बल्कि उनकी कृति 'अयोध्या रिविजिटेड' मंदिर-मस्जिद विवाद पर केंद्रित प्रतिनिधि रचना मानी जाती है। इस कृति में किशोर कुणाल ने यह मान्यता प्रतिपादित की है कि रामजन्मभूमि पर बना मंदिर 1528 में बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने नहीं, 1660 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर अवध के गवर्नर फिदाई खान ने तोड़ा था। अयोध्या रिविजिटेड के अनुसार बाबर धर्मांध नहीं था और ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता, जिससे यह कहा जाय कि उसने स्वयं या उसके आदेश पर कोई मंदिर तोड़ा गया हो़। जबकि औरंगजेब धर्मांध था। उन्होंने अपनी कृति में इटालियन यात्री मनूची का जिक्र किया है, जो अपने यात्रा वृत्तांत में लिखता है कि औरंगजेब ने भारत के अगणित मंदिरों को तोड़ा था, इनमें काशी का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि, अयोध्या का राम मंदिर और हरिद्वार का एक मंदिर प्रमुख था। किशोर कुणाल का मानना है कि औरंगजेब ने मंदिरों को तोड़ने का अभियान 1658 में गद्दी पर बैठने के साथ ही शुरू किया, वह गद्दी के एक अन्य दावेदार दारा शिकोह से बुरी तरह चिढ़ा हुआ था। दारा ने उपनिषदों का अनुवाद कराया और उसकी भूमिका में उसने स्वप्न में दो तेजस्वी पुरुषों के देखे जाने की बात बताई, इसमें से एक गुरु वशिष्ठ थे और दूसरे भगवान राम थे। दारा के ऐसे विवरण से क्षुब्ध औरंगजेब ने भगवान राम की उपासना के सबसे बड़े केंद्र राम जन्मभूमि पर बने राममंदिर को निशाना बनाया हो, इसमें कोई अचरज नहीं है। किशोर कुणाल मंदिर-मस्जिद विवाद के मर्मज्ञ माने जाते हैं। 1991 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने अयोध्या मसला हल करने का प्रयास किया, तब वे प्रधानमंत्री के विशेष दूत के रूप में इस मसले के समाधान की ओर उन्मुख हुए।
गुजरात के एडीजी रहते स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद उन्होंने समरसता और राममंदिर से जुड़े इतिहास पर केंद्रित कृतियों की रचना के साथ रामनगरी को केंद्र बनाकर आध्यात्मिक प्रकल्प भी संचालित कर रखा है।