आज के ही दिन शंकर ने त्रिपुरासुर का किया था वध
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अयोध्या: वह कार्तिक माह की पूर्णिमा ही थी, जब भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का वध किया था। त्रिपुरासुर जैसे भयंकर असुर का वध करने के बाद ही भगवान शंकर का नाम त्रिपुरारी पड़ा। स्कंद पुराण और कुछ अन्य पुराणों के ही अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार ग्रहण किया और शंखासुर का वध करते हुए वेदों की रक्षा की। इस प्रसंग का अयोध्या से स्पर्शित पुण्य सलिला सरयू से भी जुड़ाव परिभाषित होता है। आनंद रामायण में कथा मिलती है कि शंखासुर से वेद को बचाने की लड़ाई में भगवान विष्णु अत्यधिक भावुक हो गए थे और उन्होंने वेद को बचा कर जब ब्रह्मा जी को सौंपा, तो उनकी आंख से आंसू छलक पड़े। विष्णु के चिन्मय-चैतन्य अश्रु ¨बदुओं को ब्रह्मा ने जमीन पर गिरने से पूर्व अपने कमंडल में भर लिया और उचित समय पाकर उसे मानसिक संकल्प से निर्मित सरोवर मानसरोवर में संरक्षित कर दिया। कालांतर में गुरु वशिष्ठ के आह्वान पर मानसरोवर में संरक्षित भगवान विष्णु की अश्रु राशि सरयू नदी के रूप में रामनगरी पहुंची। खगोलविदों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ग्रह-नक्षत्र अमूमन शुभ योग में होते हैं और इस दिन किया जाने वाला जप-तप, पुण्य, पवित्र नदियों में स्नान विशेष फलदायी होता है।
यहां स्नान से होती है संतान की प्राप्ति
महबूबगंज: कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सरयू के श्रृंगीऋषि घाट पर स्नान करने वाले दंपति को संतान की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा स्नान पर्व से एक दिन पूर्व से ही श्रद्धालु श्रृंगीऋषि के पौराणिक आश्रम में डेरा जमा लेते हैं। यहां स्नानार्थियों की बड़ी भीड़ उमड़ती है।
रामनगरी में पूर्व संध्या से ही उमड़े श्रद्धालु
अयोध्या: कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या से ही रामनगरी की ओर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा। नगरी के प्रमुख मार्गो सहित मठ-मंदिर, धर्मशाला एवं होटल श्रद्धालुओं से सराबोर हैं। शनिवार को पौ फटते ही श्रद्धालु पुण्य सलिला सरयू में स्नान की प्रतीक्षा में हैं। स्नान पर्व के लिए आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की भीड़़ के मद्देनजर प्रशासन की ओर से व्यापक तैयारी की गई है।

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