माला फेरने वाले हाथों ने थामी पर्यावरण संरक्षण की बागडोर
रामनगरी के संतों ने मनोहारी उद्यान विकसित करने से लेकर कुंडों के सहेज-संभाल की छेड़ी मुहिम.
अयोध्या : माला फेरने वाले हाथों ने पर्यावरण संरक्षण की भी बागडोर थाम रखी है। बिदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य, राजकुमारदास, महंत रामदास, मधुकरी संत मिथिलाबहारीदास आदि से यह सच्चाई बखूबी परिभाषित होती है। बंदरों के चलते रामनगरी में उद्यान की सहेज-संभाल आसान नहीं होती, पर पर्यावरण के प्रति सच्चा अनुराग हो तो यह काम असंभव भी नहीं है। आचार्य पीठ दशरथमहल पीठाधीश्वर बिदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य ने असंभव को संभव कर दिखाया है। रामनगरी की शीर्ष पीठों में शुमार दशरथमहल दो प्रमुख प्रखंड में विभाजित है। एक वह जिस विशाल प्रखंड में दशरथमहल के आराध्य धनुर्धारी भगवान विराजमान हैं और दूसरा पीठाधीश्वर का आवासीय प्रखंड, जिसे कोठी कहा जाता है। कोठी के सामने पुराना उद्यान था, बिदुगाद्याचार्य ने इस उद्यान का पूरे यत्न से नवीनीकरण कराया और इसमें रुद्राक्ष सहित धार्मिक, स्थापत्यगत और प्रचुर आक्सीजन उत्सर्जित करने वाले अनेक पौधों का रोपण कराया। धार्मिक साम्राज्य के संचालन में बिदुगाद्याचार्य की दिनचर्या अत्यंत व्यस्त होती है। इसके बावजूद वे कोठी के सामने संरक्षित बजरंग वाटिका के लिए प्राय: समय निकाल लेते हैं। उन्होंने नंदीग्राम, मखौड़ा धाम तथा सुदूर क्षेत्रों में स्थित आश्रम की कई अन्य शाखाओं को भी वन संपदा से समृद्ध कर रहे हैं। एक अन्य शीर्ष पीठ रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास के पास भी आश्रम के दायित्व से जुड़ी व्यस्तता कम नहीं होती, पर रामनगरी की आबो-हवा को मोक्षदायिनी नगरी की गरिमा के अनुरूप पवित्र-पावन बनाने की भावना उन्हें पौराणिक महत्व के बदहाल कुंडों के घाटों तक खींच लायी। उन्होंने नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास जैसे चुनिदा सहयोगियों के साथ श्रमदान के माध्यम से कुंडों की सूरत-सीरत संवारने का अभियान छेड़ा। उनके आह्वान पर अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष एवं हनुमानगढ़ी से जुड़े शीर्ष महंत ज्ञानदास जैसे दिग्गज सहित संतों की पूरी पांत-पीढ़ी भी गले तक पानी में उतर कर कुंडों की सफायी करती नजर आयी। यद्यपि यह मुहिम कुछ महीनों बाद थम गयी, पर इससे पौराणिक कुंडों के कायाकल्प का जो विमर्श छिड़ा, वह अभी भी बरकरार है और ऐसे ही प्रयासों का परिणाम है कि भव्य राम मंदिर के साथ दिव्य अयोध्या के निर्माण में लगी सरकार ने कायाकल्प के लिए 13 कुंडों का चयन किया है। इसी मुहिम के प्रमुख सूत्रधारों में शुमार महंत रामदास तो पौराणिक कुंडों को संरक्षित करने की आवाज बनकर उभरे। उन्होंने भूमाफिया के दबाव को दरकिनार कर कई कुंडों को अतिक्रमण से बचाया, तो भरतकुंड, गिरिजाकुंड, सीताकुंड, खजुहाकुंड जैसे सरोवर की सेहत सुधारने के लिए श्रमदान की सफल मुहिम छेड़ी। पुण्यसलिला सरयू के घाटों सहित शहर के सार्वजनिक स्थलों की साफ-सफाई उनके नियमित अभियान का अंग है। यद्यपि वे हताश हैं और उनका कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के सवाल पर लोग सरकारों और स्वयंसेवियों पर कम से कम निर्भर रहें और जिस दिन पर्यावरण से सरोकार स्वत:स्फूर्त
होगा, उस दिन न केवल आबो-हवा स्वच्छ-शुभ्र होगी, बल्कि रामराज्य की बुनियाद भी बन जायेगी।
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इनके लिए पौधों का संरक्षण किसी साधना से कम नहीं
- मधुकरी संत मिथिलाबहारीदास के लिए पौधों का पर्यावरण संरक्षण किसी साधना से कम नहीं है। सरयू के प्राचीन वासुदेवघाट तट पर उन्होंने अपने आश्रम को 'चित्रकूट' नाम दिया है और चित्रकूट की समृद्ध वानिकी के अनुरूप आश्रम का प्रांगण कमल, चंपा से लेकर गुलाब-गुलदाउदी जैसे मनोहारी पुष्प वृक्षों से सज्जित किया। मिथिलाबिहारीदास के 'चित्रकूट' के आकर्षण में शीर्षस्थ रामकथा मर्मज्ञ मोरीरी बापू भी बंधे हैं। वे अयोध्या के प्रत्येक प्रवास में चित्रकूट आना नहीं भूलते और इसके मनोरम प्रांगण में आसन जमाकर आराध्य श्रीराम को महसूस करते हैं।