जड़ों से जुड़ाव की बेला में फल-फूल रही गुरुकुल की परंपरा
रामनगरी में पीढि़यों से सहेजी जा रही यह परंपरा तो तीन वर्ष पूर्व एक नया प्रयोग भी कर रहा चमत्कृत
अयोध्या (रघुवरशरण): रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के साथ रामनगरी त्रेतायुगीन विरासत से रोशन हो रही है। सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव की बेला में गुरुकुल की परंपरा भी फल-फूल रही है। रामनगरी ने पठन-पाठन से जुड़ी गुरुकुल की परंपरा को पीढि़यों से सहेज कर रखा था। उस दौर में जब अंग्रेजियत के साथ मैकाले के शिक्षण प्रबंध का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा था, तब भी रामनगरी ने गुरुकुल की परंपरा को पूरे यत्न से सहेजे रखा। मिसाल के तौर पर अयोध्या-फैजाबाद मार्ग पर स्थित निश्शुल्क गुरुकुल महाविद्यालय है। यहां प्राथमिक से आचार्य तक की पढ़ाई होती है और ब्रह्मचारियों को बुनियादी शिक्षा दिए जाने के बाद उन्हें वेद, व्याकरण में विशेषज्ञता प्रदान की जाती है। गुरुकुल की स्थापना प्रख्यात आर्यसमाजी विचारक स्वामी त्यागानंद ने 1925 में की थी। स्थानीय संत-महंत एवं समाजसेवी इस धरोहर को पूरी निष्ठा से सहेज रहे हैं। आज इस विद्यालय में न केवल 150 ब्रह्मचारी अध्ययनरत हैं, बल्कि 25 बीघा के परिसर में उनकी उन्नत आवासीय व्यवस्था भी है। गुरुकुल का जिक्र आने पर गुरु वशिष्ठ गुरुकुल चमत्कृत करता है। 2018 में शीर्ष पीठ रामवल्लभाकुंज के अधिकारी राजकुमारदास ने गुरु वशिष्ठ गुरुकुल के लिए भूमि-भवन के साथ संरक्षण प्रदान किया, तो अविवि के तत्कालीन कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित एवं समाजसेवी डॉ. दिलीप सिंह जैसों के सतत प्रयास से गुरु वशिष्ठ गुरुकुल का प्रयोग जल्दी ही सफलता का संकेत देने लगा। भारतीय शिक्षण मंडल की योजना के अनुरूप गुरु वशिष्ठ गुरुकुल में वेद, वैदिक गण्णित, व्याकरण, कला, साहित्य, ज्योतिष, कृषि, संगीत, धनुर्विद्या जैसे विषय के साथ ब्रह्मचारियों को कंप्यूटर की भी शिक्षा दी जाती है। गुरुकुल में प्रवेश के लिए लंबी वेटिग लिस्ट है। मिसाल के तौर पर इस वर्ष के प्रांरभ में ज्योतिष के अध्ध्ययन के लिए रिक्त पांच स्थानों के सापेक्ष तीन सौ बच्चों ने प्रवेश परीक्षा दी। गुरुकुल में फिलहाल 60 ब्रह्मचारी हैं, जिन्हें शिक्षित-संस्कारित किए जाने के साथ उनके आवास, भोजन, खेल, मनोरंजन आदि की भी समुचित व्यवस्था सुनिश्चित है। गत तीन वर्षों में गुरुकुल के 20 विद्यार्थी गुरुकुल की योजना के अनुसार देश के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग विधा की शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजे गए हैं। ढाई एकड़ परिसर में गुरु वशिष्ठ गुरुकुल के नवीन भवन का निर्माण भी पूर्णता की ओर है।
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संस्कृत विद्यालयों से भी परिभाषित हो रहे गुरुकुल
-गुरुकुल की पारंपरिक शिक्षा रामनगरी के दो दर्जन संस्कृत विद्यालयों से भी परिभाषित है। एक अनुमान के अनुसार इन विद्यालयों में पांच हजार छात्र वैदिक शिक्षा संस्कृत माध्यम से प्राप्त करते हैं। यह संस्कृत विद्यालय प्राय: मंदिरों की ओर से संचालित हैं, जहां इन विद्यालयों में अध्ययनरत ब्रह्मचारियों को आवासीय सुविधा के साथ गुरुकुल का परिवेश भी मिलता है।
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सामाजिक सहयोग के पर्याय
- गुरुकुल की व्यवस्था में शासकीय सहयोग के साथ सामाजिक सहयोग अहम भूमिका अदा करते हैं। गुरु वशिष्ठ गुरुकुल का प्रयोग तो शत-प्रतिशत सामाजिक सहयोग पर निर्भर है एवं सफलता-समृद्धि का परिचायक भी है। जबकि अन्य गुरुकुल आंशिक तौर पर वित्त पोषित होने के बावजूद सामजिक सहयोग के आकांक्षी रहते हैं और उनकी यह अपेक्षा सहज ही पूर्ण भी होती है। मिसाल के तौर पर हनुमत हरिरामसदन के महंत रामलोचनशरण जैसे संत हैं, जो गुरुकुल के ब्रह्मचारियों को प्राय: आमंत्रित कर उन्हें भोजन एवं दक्षिणा प्रदान करते हैं। गुरुकुल महाविद्यालय के प्रबंधन से जुड़े हनुमानगढ़ी के पुजारी रमेशदास कहते हैं, 150 ब्रह्मचारियों का नित्य भोजन स्वयं में बड़ा व्यय है, कितु वर्ष में तकरीबन सौ दिन ब्रह्मचारियों को मिलने वाले भोजन के निमंत्रण से इस व्यय का भार काफी कम हो जाता है।