गंगा दशहरा के अवसर पर पंचाग्नि साधना को विश्राम
अयोध्या तपस्या की भूमि है यहां पर अनेक साधु संत हुए हैं जिन्होंने अपने जप तप के बल पर पूरी दुनिया में अपने प्रभुत्व को स्थापित किया है। पंचाग्नि साधना में महात्यागी संत अपने चारों तरफ गौ माता के गोबर के कंडे का गोला बनाकर खप्पर में अग्नि रखकर सिर पर रख लेते हैं और खुले आसमान सूर्य के धूप में घंटों बैठकर जप तक करते है। यह साधना बसंत पंचमी से प्रारंभ होकर गंगा दशहरा तक चलती है।
अयोध्या : अयोध्या तपस्या की भूमि है, यहां पर अनेक साधु संत हुए हैं, जिन्होंने अपने जप तप के बल पर पूरी दुनिया में अपने प्रभुत्व को स्थापित किया है। पंचाग्नि साधना में महात्यागी संत अपने चारों तरफ गौ माता के गोबर के कंडे का गोला बनाकर खप्पर में अग्नि रखकर सिर पर रख लेते हैं और खुले आसमान सूर्य के धूप में घंटों बैठकर जप तक करते है। यह साधना बसंत पंचमी से प्रारंभ होकर गंगा दशहरा तक चलती है। जो महात्मा पंचाग्नि तपस्या का संकल्प लेता है, उसे यह तपस्या 18 वर्षों तक लगातार करनी होती है। गंगा दशहरा की यह परंपरा बाईपास मार्ग स्थित संकटमोचन हनुमानकिला में बखूबी परिलक्षित हुई। यहां पंचाग्नि का विश्राम हवन-पूजन के साथ किया गया। इसके बाद रुदौली के भाजपा विधायक रामचंद्र यादव के नेतृत्व में पुण्यसलिला सरयू का अभिषेक किया गया। उन्होंने कहा कि अयोध्या संतों और साधकों की धरती है, भगवान राम ने सबको साथ लेकर विकास की जो रेखा खींची है, उसी पर हम आगे चल रहे हैं। हनुमानकिला के महंत पंचाग्नि साधक परशुरामदास ने बताया कि लगभग दर्जन भर संतों ने इस साधना को विश्राम दिया। इस दौरान कोरोना के शमन के लिए भी पंचाग्नि साधकों ने यज्ञ कुंड में आहुति डाली। इस मौके पर महंत रामाज्ञा दास, महंत मंगलदास, महंत विजयराम दास, वरिष्ठ भाजपा नेता विकास सिंह, शिक्षक नेता राजमणि सिंह, एमपी यादव, विपिन सिंह बबलू, अमर सिंह, हरिहर यादव, ललित यादव, श्रीचंद्र यादव आदि प्रमुख रूप से मौजूद रहे। गंगा दशहरा पर भेर से ही आस्था छलकी। हालांकि कोरोना संकट के चलते इक्का-दुक्का श्रद्धालु ही सरयू स्नान के लिए पहुंचे।