Ayodhya: ओटीटी के दौर में फ्लाप हो रहीं बड़े बजट की फिल्में, नवरात्र में रामलीला आज भी सुपर हिट
Ramlila in Ayodhya अयोध्या में लल्ली देवी गेस्ट हाउस और कोठापार्चा की रामलीला में जमकर उमड़ रही भीड़। कोठापार्चा की रामलीला में अंग्रेजी माध्यम से संचालित शहर के नामचीन विद्यालय द कैंब्रियन के कक्षा दस के छात्र अंश कपूर रावण की भूमिका निभा रहे हैं।
अयोध्या, [नवनीत श्रीवास्तव]। न तो किसी को परमात्मा राम की बाल लीला भूली है और न ही गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के शिष्य के रूप में उनका स्वरूप।... फिर परमानंद का अनुभव कराती भगवती जानकी और परमात्मा के विवाह का प्रसंग भी कौन विस्मृत कर सकता है। कौन भूल सकता है पाषाण बन चुकी अहिल्या के उद्धार को... कौन भूल सकता है वनवासी राम के ‘निसिचर हीन करऊं महि भुज उठाई पन कीन्ह....’ प्रण को। सीता जी के हरण को। रावण वध, सबरी प्रसंग को और भरत मिलन को। ...भला कौन विस्मृत कर सकता है दैहिक, दैविक भौतिक ताप से रक्षा का विश्वास जगाते परमात्मा राम के राज्याभिषेक के प्रसंग को। ...फिर भी रामलीला के प्रति आकर्षण न कम हुआ है, न कलाकारों में ऊबन आई और न ही यह चिंता कि धन की व्यवस्था कैसे होगी। तब जब ओटीटी के दौर में बड़े बजट की फिल्में भी औंधें मुंह गिर जाती हैं और नवरात्र में होने वाली रामलीला प्रत्येक वर्ष सुपर हिट होती है। न विश्वास हो तो आप लल्ली देवी गेस्ट हाउस में हो रही रामलीला को देख लीजिए। कोठापार्चा की रामलीला को देख लीजिए। फतेहगंज, वजीरगंज जप्ती अथवा साहबगंज में हो रहा रामलीला मंचन देख लीजिए।
पीढ़ियां सजेह रहीं रामलीला की परंपरा
कोठापार्चा में होने वाली रामलीला को ले लीजिए। अंग्रेजी माध्यम से संचालित शहर के नामचीन विद्यालय द कैंब्रियन के कक्षा दस के छात्र अंश कपूर रावण की भूमिका में दर्शकों के सामने आए, यह कहते हुए कि ‘अरे जब वे काटे नाक और कान तो जिंदा रहे जमाने में, टूटे बीस भुजा मेरी, लानत है शस्त्र उठाने में, रे बहन तू धीरज धर, मैं दंडक वन को जाता हूं, इस नाक-कान काटने का बदला दोनों से अभी चुकाता हूं...’। अंश ही नहीं, उनके पिता शोभित कपूर भी रामलीला में किरदार निभा चुके हैं।
शोभित कुंभकरण, सूर्पनखा, मंथरा जैसी भूमिकाएं निभा चुके हैं, जबकि शोभित के पिता दिवंगत रतनलाल कपूर और बाबा दिवंगत राम रघुवर लाल कपूर भी श्रीरामयश कीर्तन सभा में किरदार निभाते थे। अंश कहते हैं कि उन्हें फिल्मों से ज्यादा रामलीला में आनंद आता है। कहते हैं, रामलीला की बात ही अलग है। अंश बताते हैं कि जन्माष्टमी से ही रामलीला के संवादों को याद करने का सिलसिला आरंभ होता है। रामलीला के कुछ दिन पूर्व से रिहर्सल आरंभ हो जाता है। अंश कहते हैं, रामलीला से कभी ऊबन नहीं होती। जैसे-जैसे नवरात्र करीब आता है, वैसे-वैसे मन अन्यत्र लगता ही नहीं। हो भी क्यों... राम की लीला की बात ही ऐसी है।
ऐसे एकत्र होता है धन
कोठापार्चा रामलीला समिति के उपाध्यक्ष आशीष महेंद्रा कहते हैं कि सब भगवान राम की कृपा से ही होता है। समिति के सदस्य बनाए गए हैं, जिनसे वार्षिक सहयोग लिया जाता है। आयोजन पर दो से ढाई लाख रुपए का खर्च आता है, जिसे चंदे से पूरा कर लिया जाता है। चौक में 126 वर्षों से रामलीला हो रही है। चौक रामलीला के संयोजक कन्हैया अग्रवाल कहते हैं कि रामलीला की यात्रा को शताब्दी से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन आकर्षण कभी कम नहीं हुआ। श्रद्धालुओं की संख्या प्रत्येक वर्ष बढ़ती है। वह बताते हैं कि कमेटी की दुकानों से आने वाले किराये से रामलीला का खर्च निकल जाता है। किसी से चंदा मांगने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती।
संस्कार देती है रामलीला
लल्ली देवी गेस्ट हाउस में रामलीला देखने के लिए पूरे परिवार के साथ पहुंचे संजय त्रिपाठी कहते हैं कि ‘हम लोग प्रत्येक वर्ष रामलीला देखने आते हैं। रामायण की कथा वही है, लेकिन भगवान राम की ही कृपा है कि हर बार कुछ न कुछ नए गूढ़ रहस्य को जानने का अवसर मिलता है। रामलीला पिता, पुत्र, भ्राता, पति और मित्र का संस्कार देती है। बच्चे भी सीखते हैं कि घर, विद्यालय और समाज में कैसा आचरण करना है। कोठापार्चा में रामलीला देखने आए जैनेंद्र सोनी कहते हैं, रामलीला के प्रत्येक प्रसंग का मंचन हर बार नया लगता है। फिर चाहे वह भगवान की लीला हो, राम विवाह हो, राम-रावण युद्ध हो अथवा सबरी प्रसंग। कभी ऊबन नहीं होती। यही कारण है कि हम लोग प्रत्येक वर्ष रामलीला देखने आते हैं।