मुख्यमंत्री मौन रहकर भी एजेंडे को दे गए धार
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौन रहकर भी पार्टी के एजेंडे को धार दे गए। सामाजिक समरसता का जो मुद्दा भाजपा के चुनावी तरकश में अहम माना जा रहा है मुख्यमंत्री ने उसका बखूबी संधान किया। अनुसूचित जाति के महावीर के घर भोजन कर योगी ने संदेश दिया कि पार्टी समरसता की प्रतिष्ठा के लिए पूरी तरह से गंभीर है। वे महावीर के जिस घर में पहुंचे थे वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत नवनिर्मित है और इस तथ्य की नजीर है कि
अयोध्या : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मौन रहकर भी पार्टी के एजेंडे को धार दे गए। सामाजिक समरसता का जो मुद्दा भाजपा के चुनावी तरकश में अहम माना जा रहा है, मुख्यमंत्री ने उसका बखूबी संधान किया। अनुसूचित जाति के महावीर के घर भोजन कर योगी ने संदेश दिया कि पार्टी समरसता की प्रतिष्ठा के लिए पूरी तरह से गंभीर है। वे महावीर के जिस घर में पहुंचे थे, वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत नवनिर्मित है और इस तथ्य की नजीर है कि प्रधानमंत्री जरूरतमंदों और अभावग्रस्त लोगों की बुनियादी सुविधा के प्रति किस कदर संवेदनशील हैं। मुख्यमंत्री की स्वयं की विरासत हिदुत्व की है और पिछले कुछ समय से पार्टी को इस विरासत को जोड़ने की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं।
बुधवार को उन्होंने अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वहन पूरे कौशल से किया। मंगलवार को चुनाव आचार संहिता के तहत प्रचार पर पाबंदी लगते ही उन्होंने राजधानी के हनुमानमंदिर में दर्शन-पूजन कर यह संकेत दे दिया था कि तीन दिनों की पाबंदी का उपयोग वे हिदुत्व के प्रति अनुराग जताकर करना चाहते हैं। बुधवार को उनकी यह कोशिश परवान चढ़ रही थी। रामनगरी में प्रवास के दौरान साधु-संतों के प्रति अपनत्व-आत्मीयता के इजहार से बरबस यह बयां हुआ कि हिदुत्व के संवाहक संतों से वे अलग नहीं हैं। राममंदिर निर्माण की आकांक्षा के पर्याय माने जाने वाले महंत नृत्यगोपालदास से भेंट के साथ मुख्यमंत्री जहां इस आकांक्षा में शामिल नजर आए, वहीं हनुमानगढ़ी में हनुमानचालीसा का पाठ एवं सरयू पूजन से पारंपरिक संस्कारों के प्रति जुड़ाव परिभाषित किया। रामलला के दर्शन के बिना मुख्यमंत्री रामनगरी के अपने आगमन के संदेश को संभवत: पूर्णता नहीं दे पाते और इस सच्चाई को शिरोधार्य करते हुए वे जाते-जाते रामलला का दर्शन भी कर गए।
उनके रुख से अभिभूत नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास कहते हैं, योगी के अयोध्या आगमन का राजनीतिक निहितार्थ नहीं तलाशा जाना चाहिए और सच्चाई यह है कि रामनगरी से उनका जुड़ाव आस्थागत है। उनके बाबा गुरु दिग्विजयनाथ के समय से गोरक्षपीठ का रामनगरी से प्रगाढ़ जुड़ाव रहा है।