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विकास की संभावनाओं के बीच बंदरों की अनदेखी

निरंतर सिकुड़ रही वन संपदा के चलते आश्रय का संकट

By JagranEdited By: Published: Thu, 24 Sep 2020 10:59 PM (IST)Updated: Thu, 24 Sep 2020 10:59 PM (IST)
विकास की संभावनाओं के बीच बंदरों की अनदेखी
विकास की संभावनाओं के बीच बंदरों की अनदेखी

अयोध्या : राममंदिर निर्माण और रामनगरी के पर्यटन विकास की संभावनाओं के बीच बंदरों के भी पुनर्वास की जरूरत महसूस की जा रही है। बंदर युगों से रामनगरी की पहचान के रूप में जुड़े रहे हैं और उन्हें बजरंगबली का प्रतीक भी माना जाता है। संभवत: यही कारण है कि उदंड होने के बावजूद रामनगरी में उन्हें सहज स्वीकृति मिली रही। हालांकि वे रामनगरी की जिस वन संपदा के अनुकूलन में रहते थे, वह निरंतर सिकुड़ रही है। आज जब राम मंदिर निर्माण की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ संपूर्ण रामनगरी के विकास के लिए हजारों एकड़ भूमि अधिग्रहण की तैयारी चल रही है, तब यहां की वन संपदा और तेजी से सिकुड़ने की आशंका है। ऐसे में बंदरों के लिए आश्रय का संकट खड़ा हो रहा है।

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बंदरों को अपने हाल पर भी नहीं छोड़ा जा सकता। अव्वल तो यह कि वे नगरी की पारंपरिक पहचान से जुड़े हुए हैं और उनका बने रहना बाकी बची वन संपदा के लिए प्रतिकूल साबित होगा। आज जिस ग्रीन अयोध्या को विकसित करने की बात हो रही है, उसे बंदरों से बचाकर ही संभव बनाया जा सकता है। ऐसे में बंदरों का अभयारण्य विकसित करने की जरूरत बतायी जा रही है। इससे बंदरों को संरक्षित करने के साथ अयोध्या की बाकी बची वन संपदा को भी बचाया जा सकता है। घटती वन संपदा के मुकाबले बंदरों की बढ़ती संख्या एक-एक पौधे पर बहुत भारी पड़ रही है। गत एक दशक से शायद ही कोई पौधा हो, जो बंदरों के प्रकोप से बचकर अक्षुण्ण रह सका हो। भगवान की पूजा के लिए तुलसी-फूल तक बचाने के लिए संतों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है।

एक जमाने में कंटीली डाल और तार से पौधों का बचाव संभव था, पर बंदरों के बढ़ते दबाव के चलते बिस्वा-दो बिस्वा भूमि की हरियाली बचाने के लिए लाख-दो लाख की ग्रिल लगवानी पड़ती है। हालांकि यह बंदरों से निपटने का स्थायी उपाय नहीं है और इसके लिए बंदरों का अभयारण्य विकसित करना ही स्थायी समाधान होगा। अपने स्तर से बंदरों के संरक्षण की पहल करते रहने वाले निष्काम सेवा ट्रस्ट के व्यवस्थापक महंत रामचंद्रदास के अनुसार बंदरों के पुनर्वास की अनदेखी अब संभव नहीं है और सरकार को यह सोचना होगा कि बंदरों के साथ अयोध्या की वन संपदा का संरक्षण सुनिश्चित हो।


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