सौहार्द की अग्निपरीक्षा देने को तैयार हो रही अयोध्या
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अयोध्या : रामनगरी एक बड़ी अग्निपरीक्षा के लिए तैयार हो रही है। राममंदिर आंदोलन के बाद अयोध्या हर साल विवादित ढांचा ध्वंस की बरसी पर अपने संयम और सद्भाव की परीक्षा देती है, लेकिन समय जब इस विवाद के फैसले का हो, तो इम्तिहान थोड़ा ज्यादा कठिन होता है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में अंतिम सुनवाई के बाद बहस पर विराम लग गया। अब शेष बचा तो निर्णय आना। मुकदमे को लेकर जैसे-जैसे अदालती कार्रवाई पूरी हो रही है, वैसे-वैसे रामनगरी के सौहार्द को सहेजने की चिता बढ़ती जा रही है। प्रशासन ने अभी से अयोध्या में निषेधाज्ञा लागू कर दी है।
कोई नापाक नजर अयोध्या को न देख सके, इसके लिए ड्रोन तक पर पाबंदी लगा दी गई है। सुरक्षा बलों की बढ़ती आमद सन्निकट पाबंदियों का एहसास कराने लगी हैं। ऐसे में रामनगरी धैर्य बांधे खड़ी है। फिलहाल निर्णय जो भी हो, इस मुद्दे पर दोनों पक्षों की ओर से मिल रहा सद्भाव का संकेत रामनगरी को राहत देने वाला है। पुलिस व प्रशासन भी दोनों पक्षों से संवाद स्थापित करने में लगा है। फैसले को लेकर लोगों में उत्सुकता है। संभावित फैसले की घड़ी के साथ दीपोत्सव का भी आयोजन है, जिसमें विदेशी मेहमान शामिल होंगे। ऐसे में बड़ी संख्या में फोर्स अयोध्या में मोर्चा संभालेगी। रामनगरी की आम जिदगी एकबार फिर पाबंदियों में जकड़ने को तैयार है। सोशल मीडिया की निगरानी बढ़ाने के साथ उन्माद फैलाने वालों को चिह्नित करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। .............. इन परिस्थितियों में दिखा अयोध्या का धैर्य
-मंदिर आंदोलन शुरू होने के बाद की अहम तिथियों में विवादित स्थल पर रामलला के प्राकट्योत्सव से लेकर शिलादान तक का लंबा कालखंड शामिल है। वर्ष 1989 में अधिग्रहीत परिसर में शिलान्यास, 30 अक्टूबर व दो नवम्बर 1990 को कारसेवा एवं कारसेवकों पर फायरिग, छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा को ध्वस्त किए जाने की घटना अयोध्या को काफी उथल-पुथल करने वाली रही। मंदिर निर्माण को लेकर शांत हलचल वर्ष 2002 में शिलादान के वक्त एक बार फिर सतह पर आई। रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष रहे महंत रामचंद्र दास परमहंस ने शिलादान कार्यक्रम का आयोजन कर फिर मामले को तूल दिया। हालांकि बाद में यह कार्यक्रम महज रस्मी रहा। इसके बाद वर्ष 2003 में विहिप ने अयोध्या चलो नामक कार्यक्रम के जरिये मंदिर मुद्दे को तूल देने का प्रयास किया, लेकिन शासन की सख्ती के कारण वह अभियान विफल रहा। 2013 में विहिप की 84 कोसी परिक्रमा ने इस मुद्दे को जरूर गर्म किया।