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अविवि: वैज्ञानिकों का शोध सरहद की सुरक्षा में भी सहायक

फैजाबाद : डॉ.राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय का इंजीनिय¨रग कॉलेज शोध के क्षेत्र में विशेष

By JagranEdited By: Published: Sat, 15 Sep 2018 04:39 AM (IST)Updated: Sat, 15 Sep 2018 04:39 AM (IST)
अविवि: वैज्ञानिकों का शोध सरहद की सुरक्षा में भी सहायक
अविवि: वैज्ञानिकों का शोध सरहद की सुरक्षा में भी सहायक

फैजाबाद : डॉ.राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय का इंजीनिय¨रग कॉलेज शोध के क्षेत्र में विशेष हो गया है। यहां के वैज्ञानिक रविप्रकाश पांडेय व उनके साथियों के शोध कार्यों की चमक वैश्विक स्तर पर पहचान बना चुकी है। इन धुरंधरों के शोध नतीेजे नासा के साथ ही इसरो के लिए भी उपयोगी साबित हो रहे हैं। इनके चार शोध कार्य को पेंटेंट हासिल हो चुका है। इसमें दो शोध कार्य उपग्रहीय छायाचित्रों के संश्लेषण से संबंधित हैं। अन्य दो साफ्टवेयर अनुप्रयोगों के परीक्षण एवं दोष निवारण से संबंधित हैं। इसका प्रयोग सामरिक एवं रक्षा, कृषि, वैमानिकी, नगरीय नियोजन एवं आपदा प्रबंधन में किया जा सकता है। यहां के वैज्ञानिकों ने हाईटेक रडार से खींची तस्वीर पर छायी धुंध को नई तकनीक व गणितीय मॉडल से तुरंत स्पष्ट किया।

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इस शोध का मकसद दूर संवेदी आवश्यकताओं के लिए भारत की विदेशी निर्भरता को समाप्त करना है। वर्तमान में देश दूरसंवेदी आवश्यकताओं के लिए इजराइल ऐरोस्पेस इंडस्ट्री निर्मित रिसैट टू उपग्रह के ¨सथेटिक एपर्चर रडार पर निर्भर है। रिसैट टू उपग्रह का ¨सथेटिक एपर्चर रडार उन्नति किस्म का रडार है। इसके जरिए ही सीमा पर होने वाली हलचल व पार की तस्वीरें खींची जाती हैं। यहां के वैज्ञानिकों ने इन तस्वीरों की स्पष्टता व त्वरित उपलब्धता की दिशा में कार्य किया है। इसमें से कुछ कार्य आइटी के वैज्ञानिक रविप्रकाश ने और कुछ हिस्सा उनके साथियों ने किया। बता दें कि उपग्रहों एवं वायुयानों पर स्थापित ¨सथेटिक एपर्चर रडार द्वारा खींचे गए छायाचित्रों में अत्यधिक कोलाहल होता है। इन छायाचित्रों में दर्शित लक्ष्य का सही आंकलन करने में वक्त लगता है और ये कार्य भी कठिन होता है, जिससे इनकी उपयोगिता घट जाती है। अन्वेषकों ने इसी कोलाहल अथवा धुंध को एक नई तकनीक एवं कुछ गणितीय मॉडलो का प्रयोग कर वास्तविक समय में खत्म करते हुए इस छायाचित्र को अधिक सुग्राह्य बनाया है। नतीजतन यह रडार धुंध एवं बादलों के पार भी छायाचित्र खींचने में सक्षम होते हैं। वैज्ञानिक रवि कुमार पांडेय बताते हैं कि सामरिक एवं रक्षा, कृषि, वैमानिकी, नगरीय नियोजन एवं आपदा प्रबंधन में इसका प्रयोग किया जा सकता है। उनका दावा है कि भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो एवं अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा मिलकर एक नया ¨सथेटिक एपर्चर रडार बनाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं, जिसमें इस तकनीक का प्रयोग भी किया जा सकता है। बताया कि रिसैट-टू के रडार संश्लेषित छाया चित्रों का प्रयोग सेना द्वारा सितंबर 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति बनाने एवं निगरानी के लिए भी किया गया था। भारत में इस दिशा में शोध अभी प्रारंभिक चरण में है पर जल्द ही इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएंगे। शोध कार्य करने वालों में शामिल रविप्रकाश पांडेय विश्वविद्यालय आइइटी में वर्ष 2001 से ही असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं और डॉ. राजश्री एवं विवेक शुक्ला यहीं के पूर्व छात्र हैं। ये वर्तमान में लखनऊ स्थित बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्त हैं जबकि दो अन्य अन्वेषक प्रभिषेक ¨सह एवं शिल्पी ¨सह, डाक्टर राजश्री के शोध छात्र हैं। इनके शोध को गत दिनों ही पेटेंट मिला है।


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