'लेखक को राजनेताओं के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए'
फैजाबाद : अपने पहले कविता संग्रह 'यदा -कदा' के विमोचन का आग्रह लेकर पहली बार अटल जी से ल
फैजाबाद : अपने पहले कविता संग्रह 'यदा -कदा' के विमोचन का आग्रह लेकर पहली बार अटल जी से लखनऊ में अपने पिता बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र और लालजी टंडन जी के साथ मिला था। यह 1997 की बात है। तब मैं 20 साल का था। अटल जी के भाषणों और उनके विराट व्यक्तित्व से प्रभावित था। उन्होंने बड़े प्यार से मुलाकात की। संग्रह देखा और हिदायत दी-'बेटा, मैं चाहता हूं कि आप इसे किसी साहित्य के विद्वान से, सीनियर कवि से लोकार्पित कराएं। मेरा निजी मत यह है कि एक कवि को, एक उभरते हुए नवोदित लेखक को राजनेताओं के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए और न ही किसी विचारधारा के हिमायती से किताब का अनुमोदन कराना चाहिए। आप का बहुत मन होगा, तो मैं लोकार्पण कर दूंगा, मगर इससे आपकी छवि सही ढंग से समाज में नहीं जाएगी। आप पर राजनीतिक छाया देखी जाएगी, जो किसी भी नए रचनाकार के लिए उचित नहीं। मैं आशीर्वाद देता हूं कि खूब बढि़या लिखिए और स्वतंत्र होकर अपना लेखन प्रकाशित कराइए। किसी भी राजनीतिक दल का स्टैंप लगना ठीक नहीं है। ये आपके स्वतंत्र निर्माण में बहुत काम आएगा।'ये कहकर उन्होंने संग्रह की एक दो कविताएं पढ़ीं। उनको सराहा और अपनी किताब'मेरी इक्यावन कविताएं'भेंट में हस्ताक्षर कर दी। उसके बाद से मैंने कभी किसी किताब को राजनेताओं से लोकार्पित कराने के बारे में सोचा ही नहीं। हालांकि मेरी खुद अटल जी के अलावा किसी और को लेकर कभी ये मंशा नहीं रही कि मैं अमुक कृति को किसी खास व्यक्ति से लोकार्पण के लिए आग्रह करूं। वो 20 साल की उम्र भी तब कुछ अलग तरह से अपने प्रभावों के साथ रूमानियत से भरी थी। तब से आज तक अटल जी की दी हुई नसीहत पर ही चला। आज तक वही निभाने का प्रयास रहता है। बाद में, मेरा पहला संग्रह पं विद्यानिवास मिश्र ने लोकार्पित किया, जो मेरे गुरु भी थे। कालांतर में जब अमेरिका में भारतीय प्रतिनिधि मंडल दल के नेता के रूप में वे जयप्रकाश नारायण शताब्दी समारोह में पहुंचे, जिसके सबसे युवा प्रतिनिधि के तौर पर मैं साहित्य अकादमी के माध्यम से शामिल था, तो वहां मिलकर आनंदित हुए कि नयी पीढ़ी को भी अवसर दिया जा रहा है। उन्होंने मेरी उपस्थिति को वहां सराहा था और अधिक से अधिक युवाओं को साहित्य और संगीत व कला अकादमियों से जुड़ने की बात कही थी।