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रामनगरी में बिखरता है होली का आध्यात्मिक रंग

संवादसूत्र अयोध्या रामनगरी में होली का आध्यात्मिक रंग बिखरता है। संतों की होली में आम होली की तरह रंग-गुलाल तो होता है पर उसके केंद्र में आराध्य होते हैं। दशरथमहल बड़ास्थान के संस्थापक स्वामी रामप्रसादाचार्य की गणना प्राचीनतम आचार्य के रूप में होती है वे पैरों में घुंघरू बांध आराध्य को रिझाया करते थे। उनके पदों में होली के मौके पर भक्ति का चरम परिलक्षित है। स्वामी रामप्रसादाचार्य की परंपरा के वर्तमान आचार्य एवं

By JagranEdited By: Published: Tue, 19 Mar 2019 10:06 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 10:06 PM (IST)
रामनगरी में बिखरता है होली का आध्यात्मिक रंग
रामनगरी में बिखरता है होली का आध्यात्मिक रंग

अयोध्या : रामनगरी में होली का आध्यात्मिक रंग बिखरता है। संतों की होली में रंग-गुलाल तो होता है पर उसके केंद्र में आराध्य होते हैं। दशरथमहल बड़ास्थान के संस्थापक स्वामी रामप्रसादाचार्य की गणना प्राचीनतम आचार्य के रूप में होती है, वे पैरों में घुंघरू बांध आराध्य को रिझाया करते थे। उनके पदों में होली के मौके पर भक्ति का चरम परिलक्षित है। स्वामी रामप्रसादाचार्य की परंपरा के वर्तमान आचार्य एवं दशरथमहल पीठाधीश्वर महंत देवेंद्रप्रसादाचार्य के अनुसार प्रहलाद एवं होलिका के रूप में होली का सत्य और मूल्य अपनी जगह है पर एक भक्त के लिए होली का उल्लास और समर्पण अहम प्रेरक है। यह सच्चाई रामभक्ति के अन्य आचार्यों से भी बयां है।

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मधुर उपासना परंपरा की प्रमुख पीठ रंगमहल के संस्थापक आचार्य संत सरयूशरण का भी होली से सरोकार परिलक्षित है। होली के रंग में उनकी साधना किस कदर घुली थी, इसकी तस्दीक उनके पदों से होती है। मिसाल के तौर पर उनका यह पद है, रंगीले रंगमहल खेल रहे दोउ फाग/ सिय की सिय चुनरी भींज गई/ श्री रामलला की पाग। रंगमहल के वर्तमान महंत रामशरणदास भी पीठ की परंपरा के अनुरूप होली की आध्यात्मिकता में पगे हैं। वे कहते हैं, यह पर्व आराध्य की उपस्थिति शिरोधार्य करने का है। एक अन्य दिग्गज रसिक आचार्य स्वामी युगलानन्यशरण के भी पद होली के रंग में डूबे सुनाई पड़ते हैं। रामभक्तों की शीर्ष पीठ कनकभवन का जीर्णोद्धार कराने वाली ओरछा की रानी वृषभान कुंवरि की भी भक्ति होली के गीतों से बखूबी बयां है। ---------इनसेट----------------- आराध्य को गुलाल अर्पण से होती है शुरुआत -रामनगरी में प्रात: आराध्य को गुलाल अर्पित करने के साथ होली की शुरुआत होती है। मध्याह्न आराध्य को भांति-भांति के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। अपराह्न शयन के बाद भगवान को जगाए जाने के साथ उन्हें नई पोशाक धारण कराई जाती है और उन्हें करीने से गुलाल लगाया जाता है। तदुपरांत आराध्य के सम्मुख होली गीतों की महफिल सजती है। नगरी के हजारों मंदिरों में इस परंपरा का यथाशक्ति पालन होता है पर कनकभवन, मणिरामदासजी की छावनी, दशरथमहल बड़ास्थान, रामवल्लभाकुंज, लक्ष्मणकिला, जानकीमहल, बिड़ला मंदिर, तिवारी मंदिर, नाका हनुमानगढ़ी आदि मंदिरों में इस परंपरा का पूरे भाव से पालन होता है।


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