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Terror Attack Verdict: आतंकी हमले के पीड़ित परिवार की मांग 'दोषियों को हो फांसी' Ayodhya News

अयोध्या आतंकी हमले का फैसला काफी नहीं पीड़ित परिवार चाहता है दोषियों को मिले फांसी।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Tue, 18 Jun 2019 07:39 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jun 2019 11:12 AM (IST)
Terror Attack Verdict: आतंकी हमले के पीड़ित परिवार की मांग 'दोषियों को हो फांसी' Ayodhya News
Terror Attack Verdict: आतंकी हमले के पीड़ित परिवार की मांग 'दोषियों को हो फांसी' Ayodhya News

अयोध्या [रघुवरशरण]। अधिग्रहीत रामजन्मभूमि परिसर में पांच जुलाई 2005 को आतंकी हमले के आरोपियों में से चार को आजीवन कारावास एवं ढाई-ढाई लाख जुर्माना की सजा रामनगरी के जख्म पर मरहम लगाने वाली भले हो पर पीड़ित परिवार उन्हें फांसी होते देखने चाहता है।

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नहीं भरे हैं हमले के जख्म 

यूं तो हमले को अंजाम देने आए सभी आतंकी अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो सके थे। उन्होंने विस्फोट से अधिग्रहीत परिसर के उत्तरी-पश्चिमी कोने की बैरीकेडिंग जरूर तोड़ दी थी पर आगे बढ़ते, इससे पूर्व ही उनका सामना परिसर में तैनात जवानों की गोलियों से हुआ था। काफी देर तक दोनों तरफ से हुई फायरिंग के बाद सभी पांचो आतंकी गोलियों से ङ्क्षबध कर अपने हश्र को प्राप्त हो चुके थे। कुछ पल में ही आतंकियों का यह हमला रामनगरी के विजय जश्न में तब्दील हो गया। हालांकि आतंकियों की गोलाबारी और फायरिंग के दौरान रमेश पांडेय नामक एक स्थानीय गाइड की मौत हो गई थी तथा एक महिला सहित दो नागरिकों एवं आधा दर्जन से अधिक पीएसी एवं सीआरपीएफ के जवान जख्मी हो गए थे। इनमें से कई के जख्म तो भर गए पर गाइड रमेश पांडेय की पत्नी सुधा एवं बेटी अंशिका के जख्म जैसे इतने वर्ष बाद भी नहीं सूखे हैं।

पीड़ित परिवार का दर्द 

आज बेटी अंशिका इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास करने के साथ भले ही मां सुधा की संबल बनने को है पर 14 वर्ष पूर्व वह दो वर्ष की थी और पति को खो देने के बाद पहाड़ जैसी जिंदगी से पार पाने का जिम्मा अकेले सुधा पर था। इस त्रासदपूर्ण सफर में उनका एक-एक पल पति के हत्यारोपियों की फांसी की चाहत में बीता। मंगलवार को मामले के बाकी बचे आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा भले ही उनकी चाहत के माकूल नहीं थी पर मां-बेटी के लिए यह खबर जख्म पर मरहम लगाने जैसी थी।  

छोड़कर चली गई पत्नी 

61 वर्षीय रामचंदर यादव को उम्र के जिस दौर में पत्नी शांतिदेवी की सर्वाधिक जरूरत थी, उस उम्र में वे विस्फोट की चपेट में आकर पति का साथ छोड़ गईं। रामचंदर ने पत्नी को बचाने का पूरा यत्न किया पर 21 दिनों तक चली सघन चिकित्सा बेअसर हुई और शांतिदेवी चल बसीं। इसके बाद तो रामचंदर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया। पत्नी, पांच पुत्रियों, दो पुत्रों एवं मां से युक्त रामचंदर के 10 सदस्यीय परिवार के पांच सदस्य गत 14 वर्ष के दौरान काल-कवलित हो चुके हैं। चाय की दुकान चलाकर एक अविवाहित बची बेटी के हाथ पीले करने की तैयारी में लगे रामचंदर की चाहत थी कि आतंकी हमले के आरोपियों को फांसी हो। इस चाहत के विपरीत आजीवन कारावास की सजा पर वे गहरी श्वांस छोड़ते हैं, जैसे यह बताने की कोशिश कर रहे हों कि उनके जीवन का खोया बसंत अब लौट के नहीं आने वाला है।  

नौ साल तक चला इलाज 

पिता कृष्णस्वरूप के दुलारे रविस्वरूप किशोरावस्था के स्वप्निल सफर से वंचित हो जीवन की पथरीली राह में अपनी जवानी हवन करने लगे। इस बदलाव का सामना उन्हें आतंकी हमले के दिन से ही करना पड़ा। मुकुट बनाने का काम करने वाले कृष्णस्वरूप आम दिनों की तरह कामकाज के सिलसिले में निकले थे। वे घर से कुछ ही फासले पर थे तभी विस्फोट की चपेट में आ गए। जख्मी कृष्णस्वरूप का इलाज नौ वर्ष तक चला पर वे अपने पैर पर खड़े हुए बिना इस दुनिया से कूच कर गए। पति का यह हश्र देखते-देखते टूट चुकीं श्यामादेवी भी बीमार रहने लगी हैं। परिवार की टूटन के बीच रविस्वरूप विस्फोट के आरोपियों को फांसी होते देख अपने सीने को ठंडक देना चाहते थे।

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